सरकार गरीबों को अपने बच्चे निजी स्कूलों में भेजने के लिए मजबूर कर रही: कर्नाटक उच्च न्यायालय

मुख्य न्यायाधीश प्रसन्ना बी वराले और न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित की पीठ ने कहा ...

क्या शिक्षा सिर्फ विशेषाधिकार वाले बच्चों के लिए आरक्षित है?

बेंगलूरु/भाषा। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा है कि विद्यालयों में बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने में सरकार की विफलता ने उन गरीब लोगों को अपने बच्चों को निजी विद्यालयों में भेजने के लिए मजबूर किया, जो तीन वक्त का खाना तक नहीं जुटा सकते।

मुख्य न्यायाधीश प्रसन्ना बी वराले और न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित की पीठ ने कहा, 'क्या शिक्षा सिर्फ विशेषाधिकार वाले बच्चों के लिए आरक्षित है?'

पीठ ने मीडिया की खबरों के आधार पर वर्ष 2013 में अदालत में दाखिल की गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह सवाल किया।

अदालत ने कहा कि सरकारी विद्यालयों में शौचालयों की कमी और पीने के पानी की सुविधाओं से संबंधित खामियां वर्ष 2013 में सामने लाई गई थीं, लेकिन इन कमियों को दूर करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई।

अदालत ने कहा कि अभी तक 464 सरकारी विद्यालयों में शौचालयों की कमी है और 32 में तो पीने के पानी की सुव‍िधा तक नहीं है।

सरकार की निष्क्रियता पर नाखुशी जाहिर करते हुए अदालत ने आठ सप्ताह के भीतर सभी विद्यालयों में मुहैया कराई जा रही बुनियादी सुविधाओं पर एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।

अदालत ने सोमवार को कहा, 'क्या राज्य को यह सब बताना हमारा काम है? यह सब कई वर्षों से चला आ रहा है। बजट में विद्यालयों और शिक्षा विभाग के लिए कुछ राशि दिखाई जाती है। उस राशि का क्या हुआ?'

गरीबों के लिए राज्य सरकार की मुफ्त योजनाओं का संदर्भ देते हुए सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि उन्हें इस तरह की योजनाओं से कोई परेशानी नहीं है, लेकिन जिन विद्यालयों में गरीब छात्र पढ़ते हैं, वहां आवश्यक और बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना सर्वोपरि होना चाहिए।

अदालत ने कहा, ‘शिक्षा एक मौलिक अधिकार है। लेकिन सरकार सरकारी विद्यालयों में सुविधाएं मुहैया कराने में विफल रही, जिसकी वजह से गरीब लोगों को अपने बच्चे निजी विद्यालयों में भेजने के लिए मजबूर होना पड़ा। इससे अप्रत्यक्ष रूप से निजी विद्यालयों को फायदा पहुंच रहा है।'

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