नई दिल्ली/दक्षिण भारत/भाषा। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध करने वाली 21 याचिकाओं पर फैसला सुनाया। इस संबंध में न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ बैठी।
प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि इस मामले में चार अलग-अलग फैसले हैं। यह अदालत कानून नहीं बना सकती, केवल इसकी व्याख्या कर सकती है और इसे प्रभावी बना सकती है। समलैंगिकता केवल शहरी अवधारणा नहीं है या समाज के उच्च वर्ग तक ही सीमित नहीं है।
बता दें कि प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 10 दिनों की सुनवाई के बाद 11 मई को याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा शामिल हैं।
सुनवाई के दौरान केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा था कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का आग्रह करने वाली याचिकाओं पर उसके द्वारा की गई कोई भी संवैधानिक घोषणा 'कार्रवाई का सही तरीका' नहीं हो सकती, क्योंकि अदालत इसके परिणामों का अनुमान लगाने, परिकल्पना करने, समझने और उनसे निपटने में सक्षम नहीं होगी।
केंद्र ने अदालत को यह भी बताया था कि उसे समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर सात राज्यों से प्रतिक्रियाएं मिली हैं और राजस्थान, आंध्र प्रदेश तथा असम की सरकारों ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के याचिकाकर्ताओं के आग्रह का विरोध किया है। शीर्ष अदालत ने मामले पर सुनवाई 18 अप्रैल को शुरू की थी।