बहुत आगे बढ़ना है ...

हर दिन नई टेक्नोलॉजी आ रही है, लेकिन स्वदेशी का महत्त्व अपनी जगह बरकरार है

पहले, कई दशकों से ऐसे माल को 'लोकल' समझा जाता था, जिसकी गुणवत्ता ठीक न हो

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' की 106वीं कड़ी में जिन बातों का उल्लेख किया, वे आज अत्यंत प्रासंगिक हैं। खासतौर से ‘वोकल फॉर लोकल’ तो ऐसा आह्वान है, जिस पर देशवासियों को बहुत गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। कोरोना काल ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए स्थानीय कारोबार का मजबूत होना बहुत जरूरी है। जब महात्मा गांधी ने स्वदेशी अपनाने का आह्वान किया था तो इस पर कई सवाल उठाए गए थे। कहा जाता था कि जिन अंग्रेजों के साम्राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता, वहां चरखा चलाकर अपने उद्योगों को कैसे ज़िंदा रखा जा सकता है? लेकिन वही चरखा बाद में स्वदेशी का प्रतीक बन गया। 

आज भीमकाय मशीनों का ज़माना है। हर दिन नई टेक्नोलॉजी आ रही है, लेकिन स्वदेशी का महत्त्व अपनी जगह बरकरार है। प्रधानमंत्री ने उचित ही कहा कि 'हमारे त्योहारों में हमारी प्राथमिकता हो ‘वोकल फॉर लोकल’ और हम मिलकर उस सपने को पूरा करें, हमारा सपना है- आत्मनिर्भर भारत। इस बार ऐसे उत्पाद से ही घर को रोशन करें, जिसमें मेरे किसी देशवासी के पसीने की महक हो, मेरे देश के किसी युवा की प्रतिभा हो। उसके बनने में मेरे देशवासियों को रोज़गार मिला हो।' 

दूसरा विश्वयुद्ध समाप्त होने तक जापान खंडहरों का ढेर बन चुका था। उसके बाद इस देश ने जिस तरह अपनी अर्थव्यवस्था को संजीवनी देते हुए उसमें ऊर्जा भरी, वह 'स्वदेशी अपनाने' का परिणाम था। जापान ने अपनी ज़रूरत का सामान तो बनाया ही, दुनिया को निर्यात भी किया। हमसे आबादी और क्षेत्रफल में बहुत छोटा यह देश आज दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है। अगर हम अपनी शक्ति और सामर्थ्य का पूर्ण उपयोग करते हुए स्वदेशी को अपनाएं, उद्यमिता को प्रोत्साहित करें तो दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकते हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने हाल के वर्षों में ‘वोकल फॉर लोकल’ को इतनी बार दोहराया है कि अब 'लोकल' शब्द की कुछ अहमियत तो ज़रूर बढ़ गई है। पहले, कई दशकों से ऐसे माल को 'लोकल' समझा जाता था, जिसकी गुणवत्ता ठीक न हो। आपने भी लोगों को यह कहते सुना होगा- 'अरे भैया! यह लोकल माल नहीं, कोई अच्छा माल दिखाओ। ... हमसे रुपए तो अच्छे माल के ले लिए, लेकिन यह तो लोकल निकला। ... हम उस बाज़ार में गए थे, वहां शानदार चीज़ें मिलती हैं, लोकल का कहीं नाम ही नहीं!' 

ऐसा कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा कि हमारे दिलो-दिमाग में साजिशन यह बात बैठाई गई कि 'लोकल' का अर्थ 'खराब' होता है। अगर किसी सामान्य व्यक्ति से पूछा जाए कि 'लोकल माल' सुनते ही आपके मन में कैसी तस्वीर उभरती है, तो उसका जवाब यही होगा- 'जो माल अच्छा न हो।' हालांकि अंग्रेज़ी के विख्यात शब्दकोशों में 'लोकल' के अर्थ ये बताए गए हैं- 'स्थानीय, स्थानिक, मुक़ामी, किसी विशिष्ट स्थान का।' 

लोकल के साथ 'खराब गुणवत्ता' के दुष्प्रचार को इस तरह जोड़ दिया गया कि अब इसे दूर करने के लिए खूब मेहनत करनी होगी। प्रधानमंत्री के ये शब्द इसी दिशा में अच्छी कोशिश कहे जा सकते हैं- 'रोज़मर्रा की ज़िंदगी की कोई भी आवश्यकता हो, हम लोकल ही लेंगे। लेकिन आपको एक और बात पर गौर करना होगा। ‘वोकल फॉर लोकल’ की यह भावना सिर्फ त्योहारों की खरीदारी तक के लिए सीमित नहीं है और कहीं तो मैंने देखा है, दीपावली का दीया लेते हैं, फिर सोशल मीडिया पर डालते हैं ‘वोकल फॉर लोकल’ – नहीं जी, वह तो शुरुआत है। हमें बहुत आगे बढ़ना है ...।'

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