वायु प्रदूषण दुनिया के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। अगर सरकारों ने समय रहते गंभीरता दिखाई होती तो हालात इतने मुश्किल नहीं होते। पाकिस्तान का लाहौर तो दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार हो गया है। वैश्विक वायु गुणवत्ता निगरानी मंच आईक्यूएयर डॉट कॉम की रिपोर्ट हमारे लिए इसलिए भी चिंताजनक है, क्योंकि यह (लाहौर) हमारे पड़ोसी देश का शहर है, जो सीमा पर स्थित है। अगर उसकी आबो-हवा बिगड़ेगी तो उसका असर भारत पर भी हो सकता है।
बारह करोड़ की आबादी वाले पाकिस्तानी पंजाब में ऐसे हालात तब हैं, जब वहां 'स्मॉग आपातकाल' लागू किया जा चुका है। अगर यह कदम न उठाया जाता तो अब तक लाहौर एक गैस चैंबर बन गया होता। वहां पराली जलाने पर सख्ती बरती जा रही है, धुआं छोड़ने वाले वाहनों को जब्त किया जा रहा है। क्या ये कोशिशें पर्याप्त हैं? क्या इनसे ही वायुमंडल स्वच्छ हो जाएगा? अगर एक-डेढ़ दशक पहले यह रणनीति बनाई जाती कि अधिक धुआं छोड़ने वाले वाहनों को सड़कों से हटाया जाएगा, कचरा जलाने पर पाबंदी होगी, सौर ऊर्जा पर जोर दिया जाएगा और अधिकाधिक पौधे लगाए जाएंगे तो आज हालात कुछ और होते।
भारत के भी कई शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर चिंताजनक है। राष्ट्रीय राजधानी में हर साल इन्हीं दिनों वायु प्रदूषण बहुत सुर्खियों में रहता है। सत्ता पक्ष और विपक्ष में आरोप-प्रत्यारोप के शब्दबाण चलते हैं। आम जनता परेशान होती है। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय तो इस समस्या से निपटने के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्री से ‘सक्रिय’ होने की अपील कर रहे हैं। उनके द्वारा यह कहा जाना कि न केवल राष्ट्रीय राजधानी, बल्कि समूचा उत्तर भारत प्रदूषण की चपेट में है, अपनी जिम्मेदारी दूसरों पर डालने जैसा है। उधर, भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा दिल्ली के मुख्यमंत्री से बढ़ते प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए 'स्मॉग टावर', 'एयर प्यूरिफायर' और पानी का छिड़काव करने वाले यंत्रों की स्थिति के बारे में पूछ रहे हैं।
दिल्ली के कई इलाकों में तो हालत यह है कि जो लोग रोज़ाना प्रात: कालीन सैर और व्यायाम के लिए निकलते थे, वे इन गतिविधियों से परहेज कर रहे हैं। प्रदूषित हवा में गहरी सांस लेने से स्वास्थ्य को लाभ की जगह हानि हो सकती है। लोग सोशल मीडिया पर भी इसकी तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं। ज्यादा दिक्कत उन लोगों को है, जिन्हें सांस संबंधी कोई बीमारी है। तो इस समस्या का समाधान क्या है? वास्तव में हमें अपने गांवों-शहरों को इस समस्या से निपटने के लिए तैयार करना होगा। जितनी देरी होगी, उतना ही नुकसान है।
हमें पेट्रोल-डीजल की जगह इलेक्ट्रिक तथा एथनॉल जैसे पर्यावरण-अनुकूल वैकल्पिक ईंधन तथा हरित हाइड्रोजन से चलने वाले वाहनों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। सार्वजनिक परिवहन को बेहतर बनाना होगा। इसके साथ ही साइकिल में संभावनाएं तलाशनी होंगी। खासतौर से इलेक्ट्रिक साइकिल एक अच्छा विकल्प बन सकती है। जिन दफ्तरों में वर्क फ्रॉम होम संभव है, वहां हफ्ते के आधे दिनों में यह सुविधा दी जाए। हमें भविष्य में सौर ऊर्जा के अधिकाधिक उपयोग की रणनीति बनाकर उस पर अमल करना होगा। यह धरतीवासियों के लिए ऐसा वरदान है, जिसका अब तक बहुत कम उपयोग किया गया है।
आज कई स्थानों पर सौर ऊर्जा का उपयोग सिंचाई, प्रकाश, विद्युत उपकरणों के परिचालन और भोजन बनाने के लिए किया जा रहा है। केंद्रीय बिजली मंत्री आरके सिंह ने ऊर्जा बचत के दो कार्यक्रमों की शुरुआत की है, जिनके तहत कम बिजली खपत करने वाले एक करोड़ पंखे और 20 लाख चूल्हे वितरित किए जाएंगे। इन कार्यक्रमों का ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से विस्तार होना चाहिए। वहीं, सौर ऊर्जा से चलने वाले चूल्हों पर जोर देना चाहिए।
आज भी कई गांवों में खाना पकाने, दूध गर्म करने और पशुओं के लिए खाद्य सामग्री तैयार करने के लिए लकड़ियों और परंपरागत ईंधन का उपयोग किया जा रहा है, जिससे वायु प्रदूषित हो रही है। जिन राज्यों में पराली जलाने की घटनाएं सामने आती हैं, वहां ‘बायोमास’ संयंत्रों की स्थापना होनी चाहिए, ताकि किसानों को लाभ हो। आज कई किसान पराली बेचकर अच्छी कमाई कर रहे हैं।