जम्मू-कश्मीर के सांबा जिले के रामगढ़ सेक्टर में बृहस्पतिवार तड़के अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास पाकिस्तानी रेंजर्स की गोलीबारी में बीएसएफ के हेड कॉन्स्टेबल लाल फाम कीमा का वीरगति को प्राप्त होना अत्यंत दु:खद है। इस समय पूरा देश दीपावली की तैयारियां कर रहा है, जबकि हेड कॉन्स्टेबल कीमा के परिवार के लिए शोक की घड़ी आई है। पाकिस्तानी रेंजर्स द्वारा की गई इस गोलीबारी की घटना के तीन बिंदु अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं: गोलीबारी बृहस्पतिवार तड़के की गई, यह नियंत्रण रेखा पर नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय सीमा पर की गई और बिना उकसावे के की गई। सीमा पर गोलीबारी एक तरह से युद्ध को न्योता देने जैसा होता है। पिछले कई सालों का पैटर्न देखें तो पता चलता है कि पाकिस्तान दीपावली के आस-पास अचानक गोलीबारी करता है। अंतरराष्ट्रीय सीमा पर तड़के गोलीबारी के पीछे उसका इरादा घुसपैठियों की मदद करना भी हो सकता है। हम भारतवासी दीपावली के पर्व पर प्रभु श्रीराम के स्वागत की तैयारियां कर रहे हैं, लेकिन दीपोत्सव से पहले एक और रावण का वध करना होगा, जो सरहद पार बैठा है। इसके संहार के बिना न तो हम सुख-शांति से त्योहार मना सकते हैं और न सुरक्षित रह सकते हैं। भारत के एक भी सैनिक का लहू बहता है तो यह केवल उसकी और उसके परिवार की पीड़ा नहीं, बल्कि समस्त भारतवासियों की पीड़ा होनी चाहिए। हेड कॉन्स्टेबल कीमा का बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। इसके जवाब में पाकिस्तान में लंका-दहन होना चाहिए, आतंकवाद के रावण की नाभि में अग्निबाण मारना चाहिए। भारतीय सैनिकों पर हमला करने के लिए पाकिस्तान इतना दुस्साहस कहां से लाता है? इसके लिए अतीत में हमारे द्वारा बरती गई नरमी के साथ कुछ नीतियां भी जिम्मेदार हैं। पाकिस्तान जानता है कि अगर भारत जवाबी कार्रवाई करेगा तो आतंकवादियों के कैंप नष्ट होंगे, कुछ आतंकवादी भी मारे जाएंगे।
अगर एक कैंप नष्ट हो गया तो कुछ दिनों में दूसरा बन जाएगा। एक आतंकवादी मारा गया तो दूसरा आतंकवादी पहले से तैयार खड़ा है। लिहाजा वह भारतीय कार्रवाई से ज्यादा विचलित नहीं होता। अगर पाकिस्तान को हकीकत में सबक सिखाना है तो उसके सुरक्षा प्रतिष्ठानों पर चोट करनी होगी। उसके रेंजर्स, सैनिकों को निशाना बनाना होगा। जब भारत के एक सैनिक की वीरगति के बाद पाकिस्तान के 50 सैनिक ढेर होंगे तो उसे समझ में आएगा कि आतंकवाद का खेल बहुत महंगा होता है। अभी, जब पाकिस्तान के आतंकवादी घुसपैठ के दौरान भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा मार गिराए जाते हैं तो रावलपिंडी को कोई फर्क नहीं पड़ता। चूंकि आतंकवादियों के परिवारों को न तो कोई पेंशन दी जाती है और न ऐसी कोई विशेष सुविधा, जिससे सरकारी खजाने पर बोझ पड़े। पाकिस्तान तो आतंकवादियों के शव लेने से भी साफ इन्कार कर देता है। बाद में वे यहीं किसी गुमनाम कब्र में दफना दिए जाते हैं। पाकिस्तान को दर्द तब होता है, जब उसके सैनिक मारे जाते हैं और उनके शव (पाकिस्तानी) पंजाब पहुंचते हैं। अगर कोई सैनिक सिंध, बलोचिस्तान या खैबर पख्तूनख्वा से हो, तो उसकी भी ज्यादा परवाह नहीं की जाती। जिस तरह पुरानी कहानियों में जादूगर की जान तोते में बताई जाती थी, उसी तरह पाक फौज की जान उसके पंजाब में है। वहीं से ज्यादातर भर्तियां होती हैं। इसलिए हमें अपना निशाना बदलना होगा। बेशक जवाबी कार्रवाई में आतंकवादियों का खात्मा किया जाए, लेकिन पहली प्राथमिकता पाकिस्तान के सुरक्षा बल होने चाहिएं। बल्कि भारत को पहले ही इतना दबाव बना देना चाहिए कि जवाबी कार्रवाई करने की नौबत ही न आए।