भोपाल/भाषा। मध्य प्रदेश का मध्य क्षेत्र, राजधानी भोपाल और आसपास के अन्य इलाकों में फैला हुआ है, जो पिछले तीन दशकों में भाजपा के गढ़ के रूप में उभरा है। वहीं शुक्रवार को होने वाले चुनावों में विपक्षी दल कांग्रेस भी यहां वापसी के लिए जोर लगा रहा है।
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का कहना है कि उसने सामाजिक-राजनीतिक समीकरणों के अनुसार काम किया है और अपने गढ़ में बढ़त हासिल की है, वहीं विपक्षी कांग्रेस का दावा है कि उसने अपनी गलतियों को सुधार लिया है और इस बार क्षेत्र में परिणाम अलग होंगे।
एक राजनीतिक पर्यवेक्षक ने हालांकि दावा किया कि इस बार भी क्षेत्र में भाजपा का दबदबा कायम रहने की संभावना है।
प्रदेश का मध्य क्षेत्र जिसे कुछ लोग 'मध्य भारत' भी कहते हैं, में भोपाल और नर्मदापुरम राजस्व संभाग शामिल हैं। इसकी 36 विधानसभा सीटें आठ जिलों - भोपाल (7), विदिशा (5), राजगढ़ (5), सीहोर (4), रायसेन (4), नर्मदापुरम (4), हरदा (2) और बैतूल (5) में फैली हुई हैं।
2013 में भाजपा को इस क्षेत्र से 30 सीटें मिली थीं, जबकि 2018 के विधानसभा चुनावों के बाद उसके क्षेत्र में 24 विधायक रहे जबकि कांग्रेस की सीटों की संख्या 12 रही।
यह क्षेत्र मध्य प्रदेश के मालवा, बुन्देलखंड, महाकौशल या ग्वालियर-चम्बल क्षेत्र को अलग-अलग दिशाओं में छूता है।
मध्य क्षेत्र में मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का विधानसभा क्षेत्र बुधनी भी शामिल है। कांग्रेस ने इस बार वरिष्ठ भाजपा नेता चौहान के खिलाफ टीवी धारावाहिक में हनुमान की भूमिका निभाने वाले अभिनेता विक्रम मस्तल को मैदान में उतारा है।
समाजवादी पार्टी ने 2019 में भोपाल लोकसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार दिग्विजय सिंह की जीत के लिए मिर्ची से हवन करने वाले मिर्ची बाबा को मैदान में उतारा है।
भोपाल शहर के बाहरी इलाके में स्थित रायसेन जिले की एक और महत्वपूर्ण सीट भोजपुर 1982 से भाजपा के पास है। केवल साल 2003 में इसके विधायक सुरेंद्र पटवा कांग्रेस के राजेश पटेल से हार गए थे।
भाजपा के दिग्गज नेता रहे सुरेंद्र पटवा के पिता और पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय सुंदरलाल पटवा ने इस सीट से चार बार जीत हासिल की थी। इस सीट से सुरेंद्र पटवा एक बार फिर मैदान में हैं।
होशंगाबाद सीट पर भी मुकाबला दिलचस्प हो गया है, क्योंकि दो भाई गिरिजाशंकर शर्मा (कांग्रेस) और सीताशरण शर्मा (भाजपा) एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में हैं।
इस क्षेत्र में एक अन्य पारिवारिक लड़ाई में, मौजूदा भाजपा विधायक संजय शाह अपने भतीजे और कांग्रेस उम्मीदवार अभिजीत शाह के खिलाफ हरदा जिले की टिमरनी सीट से लगातार दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं।
कमल पटेल (हरदा), प्रभुराम चौधरी (सांची) और विश्वास सारंग (भोपाल-नरेला) सहित राज्य के मंत्री भी इस क्षेत्र से मैदान में हैं।
पिछले चुनावों में यह एकमात्र क्षेत्र था जहां से दो मुस्लिम नेता आरिफ अकील (भोपाल उत्तर) और आरिफ मसूद (भोपाल मध्य) - चुने गए थे।
अकील के बेटे आतिफ और मौजूदा विधायक मसूद इस बार क्रमशः भोपाल उत्तर और भोपाल मध्य सीटों से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।
पीटीआई भाषा से बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार गिरिजा शंकर ने कहा कि मध्य प्रदेश का गठन अलग-अलग राजनीतिक प्रभाव वाले पुराने प्रांतों के विभिन्न हिस्सों को मिलाकर किया गया था।
उन्होंने कहा, भोपाल स्टेट को बाद में आजादी मिली, लेकिन आरएसएस ने सीहोर, आष्टा, भोपाल और आसपास के इलाकों पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे इस क्षेत्र में जनसंघ और बाद में भाजपा का प्रभाव बढ़ा।
उन्होंने कहा कि इस बार भी स्थिति वैसी ही नजर आ रही है क्योंकि भाजपा का दबदबा कायम रहने की संभावना है।
प्रदेश भाजपा सचिव रजनीश अग्रवाल ने कहा कि उनकी पार्टी पहले कुछ गलतियों के कारण मध्य क्षेत्र के बैतूल और राजगढ़ जिलों में कुछ सीटें हार गई थी।
उन्होंने कहा कि इस बार पार्टी ने इन गलतियों को सुधार लिया है। उन्होंने दावा किया कि इसने भोपाल और नर्मदापुरम संभागों में सामाजिक-राजनीतिक समीकरणों के अनुसार काम किया है एवं बढ़त हासिल की है।
मप्र कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष केके मिश्रा ने इस क्षेत्र में अपनी पार्टी के खराब प्रदर्शन के लिए 'कमजोर संगठनात्मक ढांचे' को जिम्मेदार ठहराया।
उन्होंने भी दावा किया कि इस बार कांग्रेस ने अपनी गलतियों को सुधारते हुए बूथ स्तर तक संगठनात्मक ढांचे को मजबूत किया है। उन्होंने दावा किया कि इस बार इन 36 सीटों पर नतीजे अलग होंगे।
मध्य प्रदेश की 230 सदस्यीय विधानसभा के लिए मतदान शुक्रवार को होगा और वोटों की गिनती तीन दिसंबर को होगी।