मानवाधिकारों के क्षेत्र में कार्यरत ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ ने चीन के बारे में जो रिपोर्ट प्रकाशित की है, वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय होनी चाहिए। अब तक तो यही पढ़ने-सुनने में आया था कि चीन शिंजियांग में धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बना रहा है, लेकिन उसका अत्याचार यहीं तक सीमित नहीं है। वह शिंजियांग के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी ऐसी गतिविधियों में लिप्त है, जो 21वीं सदी में बिल्कुल स्वीकार्य नहीं हैं।
‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ के इस खुलासे पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि चीन शिंजियांग से बाहर अन्य क्षेत्रों में मस्जिदों को बंद करने की कार्रवाई कर रहा है। चूंकि वह ऐसी गतिविधियां करता रहा है। उसका रिकॉर्ड पहले ही खराब है। आश्चर्य की बात तो यह है कि पाकिस्तान, ईरान समेत कई देश उसकी हरकतों पर मौन साधे हुए हैं। वहां चीन के खिलाफ कोई जुलूस नहीं निकालता, कोई अख़बार इस पर संपादकीय लिखने का साहस नहीं जुटा पाता।
निस्संदेह हर व्यक्ति को अपनी आस्था के अनुसार पूजा-प्रार्थना का अधिकार होना चाहिए, लेकिन चीन इसे नहीं मानता। वहां सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी हर धार्मिक स्थल पर कड़ी नजर रखती है। कहा जाता है कि वहां आने वाले श्रद्धालुओं में से ही कुछ लोग कम्युनिस्ट पार्टी के गुप्त एजेंट होते हैं, जो समय-समय पर अपनी रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को भेजते रहते हैं। जब उन्हें लगता है कि कोई व्यक्ति धर्म के कारण लोकप्रिय हो रहा है और वह भविष्य में कम्युनिस्ट पार्टी के लिए चुनौती खड़ी कर सकता है, तो उसे 'नियंत्रित' करने के उपाय ढूंढ़े जाते हैं।
कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारी किसी धार्मिक स्थल की वास्तुकला के संबंध में भी बेहद 'सतर्क' रहते हैं। उस स्थल के निर्माणकर्ताओं को इस बात का ध्यान रखना होता है कि इमारत चीनी वास्तुकला के अनुसार ही बने। अरब, यूरोपियन, अमेरिकन या किसी अन्य विदेशी वास्तुकला को देखकर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की वक्र दृष्टि हो गई तो उसके बाद उस स्थल का बनना संभव नहीं है।
उत्तरी निंशिआ और गांसू प्रांत में ऐसी कई मस्जिदें हैं, जो ‘हुई मुसलमानों’ के लिए आस्था का केंद्र हैं। राष्ट्रपति शी जिनपिंग के 'निर्देशों' के बाद इन लोगों से बहुत अनुचित व्यवहार किया जा रहा है। शिंजियांग को लेकर तो चीन की दुनियाभर में खूब किरकिरी हो चुकी है, लेकिन उसके रवैए में कोई सुधार नहीं आया। आज भी लाखों उइगर अल्पसंख्यक अवैध ढंग से कैद में हैं। शिंजियांग के बारे में संयुक्त राष्ट्र की पिछले साल की एक रिपोर्ट पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं, जिसके अनुसार, चीन ने वहां ‘मानवता के विरुद्ध अपराध’ किए हैं। उसने गैर-न्यायिक नजरबंदी शिविरों के नेटवर्क का निर्माण किया है। इन शिविरों में दस लाख उइगर, हुई, कजाक और किर्गिज लोग कैद हैं।
चीन के एक विश्वविद्यालय में पढ़ा चुके प्रोफेसर की मानें तो शी जिनपिंग के नेतृत्व में शिंजियांग पर शिकंजा कसता ही जा रहा है। वहां खास तरह के मजहबी नाम रखने, खास तरह के कपड़े पहनने पर पाबंदी है। यही नहीं, चीन हर अल्पसंख्यक परिवार पर नजर रखने के लिए तकनीक का सहारा ले रहा है, जिसके तहत घर के बाहर क्यूआर कोड लगाए जा रहे हैं। ऐसे कोड को स्कैन करने के बाद सरकारी अधिकारियों को परिवार के बारे में पूरी जानकारी मिल जाती है। उन्हें इस बात का भी पूरा अधिकार होता है कि जब चाहें, किसी व्यक्ति / परिवार से पूछताछ करें। उस इलाके में किसी के यहां मेहमान आता है तो उसके बारे में अधिकारियों को सूचना देनी होती है।
अगर यह कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा कि चीन ने तिब्बत के बाद शिंजियांग को एक जेल बना रखा है, जहां उसके अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं। विश्व समुदाय को न केवल इसकी निंदा करनी चाहिए, बल्कि चीन के खिलाफ एकजुट होना चाहिए। आर्थिक व सैन्य दृष्टि से मजबूत, बेकाबू चीन पूरी दुनिया के लिए खतरा है।