उत्तरी चीन में बच्चों में श्वसन संबंधी बीमारियों और एच9एन2 संक्रमण के मामलों को देखते हुए दुनिया को सावधानी बरतने की जरूरत है। साल 2020 में कोरोना वायरस संक्रमण फैलने से पहले चीन ने जिस तरह लापरवाही बरती थी, उसका नतीजा सब देख चुके हैं। जिन परिवारों ने कोरोना महामारी में स्वास्थ्य, जीवन और धन का बड़ा नुकसान देखा, वे अब तक उन बुरी यादों से मुक्त नहीं हुए हैं। कहीं चीन दुनिया को फिर किसी बड़ी मुसीबत में न डाल दे, इसलिए बेहद जरूरी है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और संबंधित शोध संस्थान उक्त मामले में हस्तक्षेप करें और नमूनों का किसी अंतरराष्ट्रीय लैब में परीक्षण कराया जाए।
डब्ल्यूएचओ ने चीनी बच्चों में श्वसन संबंधी बीमारियों और निमोनिया के मामलों में संभावित चिंताजनक वृद्धि के बारे में जानकारी देने के लिए आधिकारिक अनुरोध भी किया, लेकिन बीजिंग का रवैया लीपा-पोती करने वाला ही प्रतीत हो रहा है। उसके अधिकारी कह रहे हैं कि उनके देश में कोई ‘असामान्य या नई बीमारी’ सामने नहीं आई है! अगर सच में ऐसा है तो यह अच्छी बात है, लेकिन इसके साथ ही चीन को डब्ल्यूएचओ से सहयोग करना चाहिए। इतना कह देना काफी नहीं है कि हमारे यहां ऐसी कोई बीमारी नहीं आई है।
जब साल 2020 की शुरुआत में चीन में अचानक बुखार, जुकाम और श्वसन रोग संबंधी लक्षणों वाले कई मरीज सामने आए तो जिन डॉक्टरों ने सरकार का इस ओर ध्यान दिलाने की कोशिश की, उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ा था। एक युवा डॉक्टर ली वेनलियांग, जिन्होंने इस बीमारी से आगाह किया था, वे न केवल सरकारी कोप के शिकार हुए, बल्कि संक्रमण के कारण उनकी जान भी चली गई थी।
चीन के पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए जरूरी है कि वहां के ताजा हालात पर कड़ी नजर रखी जाए। इस बात की कोशिश की जाए कि चीन संक्रमण के नमूने अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के साथ साझा करे, जांच में सहयोग करे। अगर कहीं कुछ भी संदिग्ध लगे तो चेतावनी जारी की जाए। चीन से तब तक संबंध निलंबित किए जाएं, जब तक कि खतरा टल न जाए। दुनिया अभी इस स्थिति में नहीं है कि कोरोना के बाद एक और आफत का सामना करे। चीनी रवैए के मद्देनजर वैज्ञानिकों का कहना उचित है कि इस स्थिति पर कड़ी निगरानी की जरूरत है, लेकिन यह बात पक्के तौर पर नहीं कह सकते कि वहां श्वसन संबंधी बीमारियों में हालिया वृद्धि किसी नए वैश्विक संक्रमण की शुरुआत का संकेत है या नहीं।
वास्तव में हकीकत तो तब सामने आएगी, जब अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य विशेषज्ञों को चीन स्वतंत्रतापूर्वक जांच की अनुमति देगा। संपूर्ण घटनाक्रम पर बीजिंग की ओर से जो कुछ कहा जा रहा है, उस पर सवाल उठ सकते हैं। चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग ने डब्ल्यूएचओ को श्वसन संबंधी बीमारियों में वृद्धि की सूचना दी थी। अधिकारियों ने वजह बताई कि कोविड-19 संक्रमण से निपटने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन से संबंधित पाबंदियां हटा दी गई थीं।
सवाल है- जब दुनियाभर में लॉकडाउन के प्रतिबंध हट चुके थे तो चीन में ये इतनी लंबी अवधि तक क्यों लागू थे? चूंकि वह तो दावा करता रहा है कि उसके यहां संक्रमण बहुत कम फैला था, क्योंकि उसने बढ़िया प्रबंधन किया था! अगर दुनिया से लुका-छिपी रखते हुए लॉकडाउन जैसे कड़े प्रतिबंध काफी समय से लागू थे तो क्या इसका अर्थ यह नहीं है कि चीन में कोरोना संक्रमण के मामले बहुत ज्यादा थे?
अगर संक्रमण के मामले काफी ज्यादा थे तो प्रतिबंधों में ढील क्यों दी गई? बेहतर तो यह होता कि हालात सामान्य होने तक प्रतिबंध जारी रखे जाते। चीन के पास इन सवालों के जवाब नहीं हैं, जिससे उसकी नीयत में खोट होने का पता चलता है। भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय का यह कहना राहत की बात है कि चीन में सामने आए मामलों से हमारे देश के लिए कम जोखिम है।