अमेरिका के न्यूयॉर्क स्थित हिक्सविले गुरुद्वारे में भारतीय राजदूत तरणजीत सिंह संधू से धक्का-मुक्की किए जाने की घटना अत्यंत निंदनीय है। स्थानीय प्रशासन को इन उपद्रवियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। गुरुद्वारा, जो अत्यंत पावन और पवित्र स्थल होता है, वहां ऐसे उपद्रवी तत्त्वों की मौजूदगी होनी ही नहीं चाहिए। उन्होंने भारतीय राजदूत से न केवल धक्का-मुक्की की, बल्कि खालिस्तानी अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर, जिसकी इस साल जून में हत्या हो गई थी, के बारे में कई सवाल भी किए!
इस घटना के बाद अमेरिका को सतर्क हो जाना चाहिए, चूंकि 'खालिस्तान' नामक अलगाववाद का जो उन्माद कनाडा में जड़ें मजबूत कर रहा है, वह उसके यहां भी जमीन तलाशनी शुरू कर सकता है। अभी ऐसे लोगों के प्रति अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उदारवाद के नाम पर नरमी बरती जा रही है, लेकिन कालांतर में ये अमेरिका के लिए बड़ा सिरदर्द बन सकते हैं। बाइडन प्रशासन को चाहिए कि वह इनके पर कतरे और जेल में डाले। जिस अलगाववादी निज्जर के मारे जाने की इन उपद्रवियों को इतनी पीड़ा हो रही है, क्या वे जानते नहीं कि वह कौन था?
आज कनाडा में बैठकर खालिस्तान के नाम पर अलगाववाद भड़काने वाले कोई मानवता के हितैषी और क्रांतिकारी नहीं हैं। इनके दिमाग में नफरत का जहर भरा हुआ है। इनके कथित नेता, जिनके इशारों पर ये नाच रहे हैं, उनका रिकॉर्ड देखा जाना चाहिए। वे हिंसा, ड्रग्स, शराब समेत कई अनैतिक गतिविधियों व अपराधों में लिप्त हैं।
'खालिस्तान' के नाम पर धन इकट्ठा करने के बाद उसमें से ज्यादा हिस्सा पाने के लिए इनमें सिर-फुटौवल जोरों पर है। जो कोई एक-डेढ़ दर्जन लोगों को लेकर नारेबाजी कर लेता है, वह खुद को बड़ा नेता समझ लेता है। अपना नाम बड़ा करने के लिए इनकी मंडली में संघर्ष होता रहता है। इसका नतीजा प्रतिद्वंद्वी को 'रास्ते से हटाने' के रूप में सामने आता है। जब बुरे मकसद के लिए एकजुट होंगे तो नतीजा अच्छा कैसे हो सकता है?
कनाडाई सरकार के हालिया रुख को देखकर तो ऐसा लगता है कि उसने हताहत अलगाववादी के मामले को जीवन-मरण का प्रश्न बना लिया है। प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो खुलकर उसकी हिमायत कर रहे हैं! कनाडा जैसा लोकतांत्रिक देश, जिसकी मिसाल भी दी जाती रही है, का प्रधानमंत्री दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश द्वारा आतंकवादी घोषित किए गए शख्स का इस तरह पक्ष क्यों ले रहा है? क्या कोई सियासी मजबूरी है? सूझबूझ वाले नेता जब बड़े ओहदे पर जाते हैं तो अन्य देशों से संबंध मधुर बनाने की कोशिश करते हैं।
ट्रूडो ऐसे नेता हैं, जिन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद न केवल अपराधियों को संरक्षण दिया, बल्कि भारत से संबंध बिगाड़ने में पूरी ताकत लगा दी। इससे क्या हासिल हुआ? क्या ट्रूडो यह सोचते हैं कि खालिस्तान समर्थक अलगाववादियों के पक्ष में खड़े होकर वे इनके जीवन को सुरक्षित बना लेंगे? कर्म की गति ऐसी होती है कि उसका फल लौटकर आएगा ही आएगा। आज भले ही ट्रूडो उनकी हिमायत करें, लेकिन देर-सबेर अलगाववादियों में आपसी संघर्ष इतना तेज होगा कि ये एक-दूसरे पर धावा बोलेंगे। इसका ज्वलंत उदाहरण पाकिस्तान के रूप में सामने है, जहां आतंकवादियों को 'अच्छे आतंकवादी' और 'बुरे आतंकवादी' में बांटा गया था और आज वे एक-दूसरे के ठिकानों में बम फोड़ रहे हैं।
निज्जर मामले में कनाडाई सरकार सबूत जुटाने के बजाय अंधेरे में तीर चला रही है। इसके जवाब में कनाडा में भारत के उच्चायुक्त संजय कुमार वर्मा ने उचित कहा कि 'जांच पूरी हुए बिना ही भारत को दोषी ठहराया गया। क्या यही कानून का शासन है? ... क्योंकि भारत को सहयोग करने के लिए कहा गया था। और यदि आप विशिष्ट आपराधिक शब्दावली को देखें, जब कोई हमसे सहयोग करने के लिए कहता है, तो इसका अर्थ है कि आपको पहले ही दोषी ठहराया जा चुका है और बेहतर होगा कि आप सहयोग करें। इसलिए हमने इसे बिल्कुल अलग अर्थ में लिया।’ निस्संदेह यह एक 'प्रेरित' और 'बेतुका' आरोप है।