घुसपैठ पर लगाम

जंगल, नदियां, पहाड़, रेगिस्तान ... जैसी कई भौगोलिक चुनौतियां हैं, जिससे सीमा की रखवाली करना बहुत मुश्किल होता है

आए दिन किसी न किसी शहर से अवैध बांग्लादेशियों के पकड़े जाने की खबरें मिलती रहती हैं

बांग्लादेश और पाकिस्तान से लगती हमारी सीमाओं के उन हिस्सों को बाड़ तथा अन्य तरीकों से मजबूत बनाने की जरूरत है, जहां से घुसपैठ होती है। हालांकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा दी गई यह जानकारी कि 'इन दोनों ही मोर्चों पर करीब 60 किलोमीटर क्षेत्र में खुली जगहों पर बाड़ लगाने का काम जारी है', से पता चलता है कि सरकार इस मामले को गंभीरता से ले रही है। भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमा हजारों किमी लंबी है। 

जंगल, नदियां, पहाड़, रेगिस्तान ... जैसी कई भौगोलिक चुनौतियां हैं, जिससे सीमा की रखवाली करना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन सुरक्षा बलों के जवान यह काम मुस्तैदी से कर रहे हैं। आमतौर पर यह देखने में आता है कि पाकिस्तान की ओर से जो घुसपैठ होती है, उसके प्रति हमारा रुख बेहद सख्त होता है। चूंकि उस ओर से घुसपैठ करने वालों में आतंकवादी और तस्कर होते हैं। 

वहीं, बांग्लादेश की ओर से घुसपैठ करने वालों के प्रति ऐसी सख्ती नहीं होती। उनमें से ज्यादातर आम लोग होते हैं। कई बार तस्कर पकड़े जाते हैं। बेशक आम बांग्लादेशियों के प्रति हमारा वह व्यवहार नहीं हो सकता, जो किसी आतंकवादी के प्रति होता है, लेकिन घुसपैठ का यह स्वरूप भी भविष्य में गंभीर समस्या बन सकता है। आए दिन किसी न किसी शहर से अवैध बांग्लादेशियों के पकड़े जाने की खबरें मिलती रहती हैं। 

ऐसी कई रिपोर्टें आ चुकी हैं, जिनसे पता चलता है कि इन्होंने विभिन्न स्थानों पर अवैध कब्जे कर रखे हैं। कई गंभीर अपराधों में बांग्लादेशी घुसपैठिए लिप्त पाए गए हैं। जहां इनकी ठीक-ठाक तादाद हो जाती है, वहां कुछ पार्टियां तुष्टीकरण करने लगती हैं। यही दिसंबर का महीना था, जब साल 1971 में भारतीय जवानों ने अपना लहू देकर बांग्लादेश को आज़ाद करवाया था। अब बांग्लादेशियों के पास अपना देश है, लिहाजा उन्हें वहां रहना चाहिए। अगर किसी काम से भारत आएं तो कानूनी तरीके से आएं।

आज उत्तर-पूर्व के कई इलाकों में बांग्लादेशियों के कारण आक्रोश देखने को मिलता है। रोहिंग्याओं की घुसपैठ भी एक समस्या है। बड़ा सवाल यह है कि ये लोग सीमा पार करने में कामयाब कैसे हुए? चूंकि बांग्लादेश से लगती सीमा पर ऐसे कई इलाके हैं, जहां जंगल, दलदल या नदी के कारण बाड़बंदी नहीं हो पाई है। हालांकि ये इलाके छोटे-छोटे हिस्सों में हैं, लेकिन घुसपैठिए इनका फायदा उठा लेते हैं। ये भारतीय सीमा में घुसकर स्थानीय लोगों में घुलमिल जाते हैं। कुछ साल यहां रहने के बाद बोली, लहजा आदि पर पकड़ बना लेते हैं। कुछ बांग्लादेशी घुसपैठिए फेरी लगाकर छोटा-मोटा सामान बेचते रहते हैं, जिससे उन पर नजर रखना मुश्किल होता है। 

देश में फर्जी तरीके से आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र बनाने वाले गिरोह सक्रिय हैं, जो इनकी मदद कर देते हैं। कालांतर में ये लोग खुद को जन्म से भारतीय बताने लगते हैं। इस तरह अवैध ढंग से आना और रहना कानून-व्यवस्था के लिए तो बड़ी चुनौती है ही, स्थानीय लोगों के हितों के लिए भी खतरा है। इससे उनके लिए रोजगार सीमित हो जाते हैं। सार्वजनिक सुविधाओं पर बोझ बढ़ता है। हाल के वर्षों में जिस तरह आईएसआई के एजेंट और स्लीपर सेल पकड़े गए हैं, उसके मद्देनजर हमें विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। जो व्यक्ति घुसपैठ कर हमारे देश में आया है, जिसका सरकार के पास कोई रिकॉर्ड नहीं, कोई पहचान नहीं, क्या देशविरोधी तत्त्व उसका इस्तेमाल नहीं कर सकते? 

बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाकों में तस्करों का भी जाल फैला हुआ है, जिसका समय-समय पर भारतीय सुरक्षा बल पर्दाफाश करते रहते हैं। यहां गाय और नशीली सामग्री की तस्करी के कई मामले सामने आ चुके हैं। इसके अलावा नकली नोटों को खपाने के लिए इस रास्ते के इस्तेमाल की कोशिशें होती हैं। बीएसएफ, गुवाहाटी फ्रंटियर ने इस साल भारत-बांग्लादेश सीमा पर 47 बांग्लादेशी नागरिकों समेत 200 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है। 

इसके अलावा लगभग 12 करोड़ रुपए का तस्करी का सामान जब्त किया है। इनमें 5,695 मवेशियों के सिर, 3.39 लाख रुपए के नकली नोट, 1,516.965 ग्राम सोना और 2,804 किलोग्राम गांजा शामिल है। स्पष्ट है कि भारत को अपनी सीमाओं की सुरक्षा को और मजबूत बनाना होगा। यहां घुसपैठियों को जरा-सा भी मौका मिला तो देश की सुरक्षा व शांति खतरे में पड़ सकती हैं।

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