नई दिल्ली/दक्षिण भारत/भाषा। उच्चतम न्यायालय ने पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने संबंधी केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सोमवार को अपना फैसला सुनाया।
न्यायालय ने कहा कि अब प्रासंगिक नहीं है कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की घोषणा वैध थी या नहीं। अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था।
न्यायालय ने कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। उसके पास आंतरिक संप्रभुता नहीं थी। राष्ट्रपति द्वारा 370 निरस्त करने का आदेश संवैधानिक तौर पर वैध है।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की अधिसूचना देने की राष्ट्रपति की शक्ति जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के भंग होने के बाद भी बनी रहती है।
बता दें कि प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ तीन अलग-अलग, परंतु सर्वसम्मत फैसले सुनाने के लिए सुबह 10 बजकर 56 मिनट पर बैठी थी।
सीजेआई ने कहा कि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा को स्थायी निकाय बनाने का इरादा कभी नहीं था। जम्मू-कश्मीर में युद्ध की स्थिति के कारण संविधान का अनुच्छेद 370 अंतरिम व्यवस्था थी।
सीजेआई ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 370 अस्थायी था, राष्ट्रपति के पास इसे रद्द करने की शक्ति अब भी है। जम्मू-कश्मीर के पास देश के अन्य राज्यों से अलग आंतरिक संप्रभुता नहीं है।
सीजेआई ने कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बना, यह संविधान के अनुच्छेद एक और 370 से स्पष्ट है। सीजेआई ने कहा कि राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य की ओर से केंद्र द्वारा लिए गए हर फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती है।
सीजेआई ने कहा कि जब जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा का अस्तित्व समाप्त हो गया, तो जिस विशेष स्थिति के लिए अनुच्छेद 370 लागू किया गया था, उसका भी अस्तित्व समाप्त हो गया।
सीजेआई ने कहा कि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की सिफारिश राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी नहीं थी।
उच्चतम न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं की उन दलीलों को खारिज कर दिया कि राष्ट्रपति शासन के दौरान केंद्र द्वारा कोई अपरिवर्तनीय कार्रवाई नहीं की जा सकती है।
बता दें कि उच्चतम न्यायालय ने 16 दिनों की सुनवाई के बाद पांच सितंबर को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
शीर्ष न्यायालय ने सुनवाई के दौरान अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का बचाव करने वालों और केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ताओं हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी, वी गिरि और अन्य की दलीलों को सुना था।
याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, राजीव धवन, जफर शाह, दुष्यंत दवे और अन्य वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने बहस की थी।
केंद्र सरकार ने पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को पांच अगस्त, 2019 को निष्प्रभावी कर दिया था और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया था।
शांति भंग करने वालों पर रहेगी नजर
अनुच्छेद 370 मामले पर उच्चतम न्यायालय के फैसले से पहले ‘कानून एवं व्यवस्था’ मुद्दे पर चर्चा करने के लिए पुलिस और प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों ने शुक्रवार को बैठक की थी।
पुलिस ने कहा है कि किसी भी उपद्रव या सोशल मीडिया के दुरुपयोग में लिप्त पाए जाने वाले व्यक्ति के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
बैठक के दौरान सभी अधिकारियों ने कानून-व्यवस्था की स्थिति और फैसले के मद्देनजर हो सकने वाली ऐसी किसी भी घटना के बारे में चर्चा की गई।
इस दौरान सभी जिला प्रमुखों को नजर रखने और शांति भंग करने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया।