अनुच्छेद 370 हमेशा के लिए इतिहास का हिस्सा बन गया। उच्चतम न्यायालय ने पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के इस अनुच्छेद के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र सरकार के फैसले को सर्वसम्मति से बरकरार रखकर केंद्र शासित प्रदेश को सही मायनों में उन बेड़ियों से आजादी दी है, जो दशकों तक इसकी शांति व प्रगति में बाधक थीं।
जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार जिन परिस्थितियों में अनुच्छेद 370 लेकर आई थी, उसकी जरूरत तब रही होगी, लेकिन 21वीं सदी में ऐसे प्रावधान स्पष्ट रूप से गैर-जरूरी थे। आश्चर्य की बात है कि जम्मू-कश्मीर इसे दशकों तक ढोता रहा। यह अनुच्छेद कालांतर में अलगाववाद, अशांति और तुष्टीकरण की वजह बना।
सरकारें जानती थीं कि अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को देश की मुख्य धारा में नहीं आने देगा, लेकिन उन्होंने इसे हटाने के लिए आम राय बनाने की कोई कोशिश नहीं की। अगर उन्होंने इच्छाशक्ति दिखाई होती तो इसे हटा सकती थीं। इससे जम्मू-कश्मीर की प्रगति की राह में बड़ा अवरोध वर्षों पहले हट सकता था।
खैर, इतिहास की एक बड़ी भूल को अगस्त 2019 में सुधारने की कोशिश हुई और अब उच्चतम न्यायालय के फैसले के साथ उस पर 'पक्की' मुहर लग चुकी है। न्यायालय की यह टिप्पणी भी इस केंद्र शासित प्रदेश में लोकतंत्र का नया सवेरा लेकर आएगी कि ‘हम निर्देश देते हैं कि भारत का निर्वाचन आयोग 30 सितंबर, 2024 तक पुनर्गठन अधिनियम की धारा 14 के तहत गठित जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव कराने के लिए कदम उठाए। राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाए।’
जम्मू-कश्मीर के लोग बहुत मेहनती और प्रतिभाशाली हैं। अखिल भारतीय परीक्षाओं की योग्यता सूची में कश्मीरी बच्चे शीर्ष स्थान प्राप्त कर चुके हैं। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर यह इलाका अपनी शक्ति व सामर्थ्य का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाया।
अनुच्छेद 370 ने यहां की बेटियों से भेदभाव को बढ़ावा दिया। इसने एक समुदाय के युवाओं के मन में यह गलत धारणा पैदा की कि 'हम दूसरों से अलग हैं'! हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने यह सपना तो नहीं देखा था कि अंग्रेजों के चले जाने के इतने वर्षों बाद भी देश के एक अभिन्न अंग में विभाजनकारी प्रावधान लागू रहें।
निस्संदेह जम्मू-कश्मीर के मामले में सरकारों से गलतियां हुई थीं। अनुच्छेद 370 को एक-दो दशक में ही हटा देते तो आज इस पर चर्चा करने की जरूरत नहीं होती। अब जम्मू-कश्मीर में चुनाव प्रक्रिया के लिए आवश्यक कदम उठाने के साथ पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के भारत में विलय की योजना पर भी काम होना चाहिए। आज जम्मू-कश्मीर आजादी की खुली हवा में सांस ले रहा है। यह अधिकार पीओके को क्यों नहीं मिलना चाहिए? वह भी हमारा भूभाग है।
भारत मां का मुकुट तब तक अधूरा है, जब तक कि समूचे गिलगित, बाल्टिस्तान समेत पीओके का भारत में विलय नहीं हो जाता। इस संबंध में भारत सरकार का रुख पहले ही स्पष्ट है। भारतीय संसद फरवरी 1994 में ध्वनिमत से प्रस्ताव पारित कर संकल्प ले चुकी है। अब 'उचित' समय पर 'उचित' कार्रवाई होनी चाहिए, जिससे जम्मू-कश्मीर के हर निवासी को पूरा इन्साफ मिले।
इस साल पीओके में पाकिस्तान की ज्यादती के खिलाफ जिस कदर विद्रोह की भावनाएं भड़कीं, उनके मद्देनजर भविष्य में भरपूर संभावनाएं हैं कि वहां लोग इस्लामाबाद के खिलाफ डटकर खड़े हो जाएं। अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विकास योजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाया जाए। युवाओं के लिए अधिकाधिक रोजगार के अवसरों का सृजन किया जाए। अब पीछे मुड़कर देखने का वक्त नहीं है। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिए सुनहरा भविष्य इंतजार कर रहा है।