पाक की 'राष्ट्रीय हताशा'

काकड़ क्यों भूल जाते हैं कि पाकिस्तान एक कृत्रिम राष्ट्र है?

आयातित संस्कृति के भरोसे रहने वाले पाकिस्तानी अपनी असल पहचान के संबंध में हीन भावना से ग्रस्त हैं

पाकिस्तान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनवारुल हक काकड़ का (भारतीय) संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने को बरकरार रखने वाले उच्चतम न्यायालय के फैसले के बारे में दिया गया बयान गैर-जरूरी है। यह उनकी 'राष्ट्रीय हताशा' को भी दर्शाता है। काकड़ ने पीओके की कथित विधानसभा के 'विशेष सत्र' का इस्तेमाल अपने देश की मुख्य समस्याओं से लोगों का ध्यान हटाने के लिए किया है। उनका यह कहना कि 'कश्मीर के बिना पाकिस्तान शब्द अधूरा है', अत्यंत हास्यास्पद है। 

काकड़ क्यों भूल जाते हैं कि पाकिस्तान एक कृत्रिम राष्ट्र है? जिन लोगों ने पाकिस्तान की मांग की थी, उन्होंने साल 1971 के इसी दिसंबर महीने में बांग्लादेश बना लिया था। आज काकड़ जिस देश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने हुए हैं, वह हर दशक में अपनी फर्जी पहचान तलाश करता है। 

जब पाकिस्तान बना था तो 'पाकिस्तानी' नेता, सैन्य अधिकारी और जनता 'अरब' बनना चाहते थे। उसके बाद वे ईरानी बनने की कोशिश करने लगे। बीच में कुछ साल ऐसे आए, जब वे तुर्क बनने की कोशिश करने लगे। चीन से यारी निभाने के चक्कर में आधे-अधूरे चीनी भी बन गए। काबुल में तालिबान के लौटने के बाद पाकिस्तानियों में 'अफगान' बनने-दिखने की होड़ शुरू हो गई थी। अब उससे भी मोहभंग हो चुका है। 

आयातित संस्कृति के भरोसे रहने वाले पाकिस्तानी अपनी असल पहचान के संबंध में हीन भावना से ग्रस्त हैं। वे यह मानने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं कि उनके पूर्वज भारतीय थे। काकड़ भी इसी मानसिकता से पीड़ित हैं। अगर उनके बयानों पर गौर किया जाए तो पांचवीं कक्षा का सामान्य विद्यार्थी भी बता देगा कि उनका इतिहास का ज्ञान शून्य है। 

काकड़ कहते हैं कि उनके देश पर कश्मीर को लेकर तीन बार जंग थोपी गई! इस पड़ोसी देश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री को सुनकर यह पता लगाना आसान हो जाता है कि उनके यहां शिक्षा प्रणाली की इतनी दुर्गति क्यों हुई!

काकड़ को यह भी नहीं पता कि भारत-पाक के बीच जितने भी युद्ध हुए, उनकी शुरुआत हमेशा पाकिस्तान ने की थी। चाहे साल 1947 में कबाइली लश्करों की घुसपैठ हो, साल 1965 का हमला हो, साल 1971 का हवाई हमला या फिर साल 1999 की कारगिल घुसपैठ ... हर जगह पाक ने पहल की थी, जिसके बाद भारत ने आत्मरक्षा में जवाबी हमला बोला था। 

काकड़ चाहें तो अपने देश के पूर्व एयर मार्शल असगर खान की किताब पढ़ लें, जिन्होंने पाक फौज की कलई खोली थी। अगर यह भी नहीं पढ़ सकें तो हमूदुर्रहमान कमीशन की रिपोर्ट ही पढ़ लें, जिसमें पाक फौज के उच्चाधिकारियों की लूट-खसोट और बुजदिली का कच्चा चिट्ठा खोला गया था। 

काकड़ यह कहकर पाकिस्तानियों की आंखों में धूल झोंक सकते हैं कि 'अगर तीस बार जंग थोपी जाएगी तो हम तीन सौ बार लड़ने के लिए तैयार हैं', लेकिन इस हकीकत से तो वे परिचित होंगे कि पाक फौज की हालत पतली है। उसके पास एक हफ्ते तक लड़ने के लिए भी तेल का भंडार नहीं है। खजाना खाली पड़ा है। देश में आटा, सब्जी, दवाइयों के लिए हाहाकार मचा है। क्या ऐसी स्थिति में काकड़ एक और जंग बर्दाश्त कर सकते हैं? 

कश्मीर मांगते-मांगते आटा मांगने की नौबत आ गई, लेकिन ये कार्यवाहक प्रधानमंत्री अपने देश की अर्थव्यवस्था पर ध्यान देने के बजाय जंगी जुनून को बढ़ावा दे रहे हैं! काकड़ यह न भूलें कि वे 'कार्यवाहक प्रधानमंत्री' हैं, जो अपने आकाओं के आशीर्वाद के कारण इस कुर्सी पर हैं। आम चुनाव के बाद उन्हें चलता कर दिया जाएगा। उनके पास कोई शक्ति नहीं है। 

पाक में चुनाव लड़कर आने वाले प्रधानमंत्री के पास कोई शक्ति नहीं होती तो कार्यवाहक प्रधानमंत्री के पास कितनी शक्ति होगी? काकड़ जानते हैं कि उन्हें यह कुर्सी मिलना बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने जैसा है। इसलिए वे सरकारी खर्चे पर खूब सैर-सपाटा कर रहे हैं, नए-नए सूट पहनकर फोटो खिंचवा रहे हैं। लगे हाथ 'रावलपिंडी' से आया भाषण भी पीओके में बांच आए। 

काकड़ याद रखें, अगर उन्हें कश्मीर के बिना पाकिस्तान अधूरा लगता है तो हमें भी कटासराज और हिंगलाज तीर्थ के बिना भारत अधूरा लगता है। जिस दिन भारत ने इन्हें वापस पाने का संकल्प ले लिया तो पाकिस्तान का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।

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