संस्कृत की एक सूक्ति 'अति सर्वत्र वर्जयेत्' यानी 'किसी भी काम में अति या मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए' — इस सदी में अत्यंत प्रासंगिक है। आज 'अति' की वजह से कई समस्याएं पैदा हो रही हैं। रात को बहुत देर तक जागना और सुबह देर से उठना भी एक 'अति' है, जो रोगकारी होती है। संबंधों में मर्यादा का घटता स्तर 'अति' का परिणाम है। इससे परिवार टूट रहे हैं। मोबाइल फोन के 'अति' उपयोग ने तो मानव जीवन को इस हद तक प्रभावित कर दिया है कि अब इसकी 'लत' से निजात दिलाने के लिए कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
जर्मनी के रुर विश्वविद्यालय, बोचम और जर्मन सेंटर फॉर मेंटल हेल्थ के अनुसंधानकर्ताओं का यह कहना है कि अगर आपको अपना दिमाग दुरुस्त रखना है तो सोशल मीडिया से कुछ दूरी बना लें। दूसरे शब्दों में कहें तो सोशल मीडिया को कम समय दें, परिवार, मित्रों, समाज से मेलजोल बढ़ाएं। बेशक सोशल मीडिया से कई फायदे हैं। इसने लोगों को जोड़ने, किसी मुद्दे को लेकर आवाज उठाने, प्रतिभाओं को पहचान दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
कई लोगों के उद्यम में सफलता का श्रेय सोशल मीडिया को जाता है। अगर यह मंच न होता तो उन्हें अधिक लोग नहीं जान पाते। आज विज्ञान के इस वरदान का विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग करने और एक सीमारेखा निर्धारित करने की जरूरत है। जर्मन विवि के उक्त शोध के इन शब्दों पर ध्यान देने की जरूरत है - 'सोशल मीडिया से दूरी बनाने से लोगों को अपना काम करने का अधिक वक्त मिलता है और उन्हें ध्यान भटकने की समस्या भी कम होती है।'
इस संबंध में पत्रिका ‘बिहेवियर एंड इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी’ में प्रकाशित अध्ययन की लेखिका जूलिया ब्रेलोव्स्किया ने सत्य कहा है कि ‘जो लोग सोशल मीडिया फीड पर नजर रखने के लिए अपना काम रोक देते हैं, उनके लिए काम पर ध्यान केंद्रित करना और मुश्किल हो जाता है।’ प्राय: यह देखने में आता है कि कार्य-स्थल पर कुछ लोग अपने मोबाइल फोन में व्यस्त रहते हैं। इससे वे अपने काम पर पूरा ध्यान नहीं दे पाते। उनसे ग़लतियां हो जाती हैं। जो लोग सोशल मीडिया को बहुत ज्यादा समय देते हैं, वे कई बार जरूरी काम भूल जाते हैं।
हर चीज खोजने के लिए इंटरनेट का सहारा लेने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, जिससे कभी-कभार इतना समय और धन खर्च हो जाता है कि बहुत देर से पता चलता है। एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में उच्चाधिकारी भारतीय युवक को जब कानूनी पत्रावली के किसी शब्द का अर्थ जानना होता था तो वे इंटरनेट की मदद लेते थे। वहां उसका अर्थ तो मिल जाता, लेकिन शॉपिंग संबंधी विज्ञापन देखकर उनका ध्यान भटकता था। वे उन विज्ञापनों के जरिए दूसरी वेबसाइट पर चले जाते और वहां काफी समय तक नए-नए उत्पाद ढूंढ़ते रहते। वे सोशल मीडिया पर उस उत्पाद के रिव्यू पढ़ते रहते थे। जो उत्पाद उन्हें पसंद आता, उसे खरीद भी लेते थे।
एक दिन उन्होंने विचार किया कि वे इंटरनेट की दुनिया में इतने खो गए हैं कि न तो ठीक तरह से काम पूरा कर पाते हैं और न परिवार को समय दे पाते हैं। नींद भी पूरी नहीं होती। उसके बाद उन्होंने तय किया कि वे इंटरनेट का उतना ही उपयोग करेंगे, जितना जरूरी हो। सोशल मीडिया से पूरी तरह रिश्ता नहीं तोड़ेंगे, लेकिन इसके लिए समय सीमित रखेंगे।
उन्होंने एक प्रसिद्ध विद्वान का शब्दकोश खरीदा। साथ ही बांग्ला के एक प्रख्यात लेखक की दो किताबें खरीदीं, जिन्हें वे कॉलेज के समय में खरीदना चाहते थे, लेकिन तब आर्थिक तंगी की वजह से नहीं खरीद पाए थे। उन्होंने 'अति' से दूरी बनाई तथा 'मति' (बुद्धि) एवं विवेक का उपयोग किया। अब उनके जीवन में खुशियां हैं, सुकून है और परिवार, मित्रों व समाज के लिए पर्याप्त समय है।