द्रमुक के लोकसभा सदस्य दयानिधि मारन द्वारा उत्तर प्रदेश और बिहार के श्रमिकों पर महीनों पहले की गई कथित टिप्पणी का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद उसके विरोध में आवाजें उठना स्वाभाविक है। बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन के सबसे बड़े घटक राजद और तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रमुक, दोनों विपक्ष के ‘इंडि’ गठबंधन में शामिल हैं। इस तरह की टिप्पणियां आगामी लोकसभा चुनावों में ‘इंडि’ गठबंधन के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं।
नेताओं को धर्म और भाषा जैसे संवेदनशील मुद्दों पर टिप्पणी करते समय संयम बरतना चाहिए और लोगों की प्रतिक्रिया का खासतौर से ध्यान रखना चाहिए। हर व्यक्ति को अपनी भाषा प्रिय होती है। हर भाषा अपनी जगह सुंदर व श्रेष्ठ है। भारत में किसी समय खास हिस्सों में कुछ भाषाओं को लेकर तनाव देखने को मिलता था, लेकिन यह देशवासियों का विवेक एवं सद्भाव है कि अब हर भाषा के प्रति सम्मान बढ़ता जा रहा है। दक्षिण भारत की फिल्में उत्तर भारत में कमाई के रिकॉर्ड कायम कर रही हैं। दक्षिण भारतीय कलाकार उत्तर भारत में भी बहुत आदर पाते हैं। दक्षिण भारत में जन्मे कई वैज्ञानिक और विद्वान उत्तर भारत में नायक का दर्जा रखते हैं।
उत्तर-पूर्व के खिलाड़ी, योद्धा, सैन्य अधिकारी संपूर्ण भारत में युवाओं के आदर्श बन रहे हैं। उत्तर भारतीय साहित्य, संगीत, त्योहार, पहनावा, खानपान, परंपराएं आदि दक्षिण भारत के जनजीवन का हिस्सा बनते जा रहे हैं। लिहाजा नेताओं को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे ऐसा कोई बयान न दें, जिससे देश की सामाजिक समरसता को नुकसान होता है। हमारी भाषाएं हमारी शक्तियां हैं। आज बड़ी-बड़ी कंपनियां भारत में आकर कारोबार करती हैं तो उन्हें अंग्रेजी के अलावा हिंदी एवं अन्य भाषाओं के जानकार कर्मचारियों को नियुक्त करना होता है। भारत का सिनेमा विदेशों में इतना पसंद किया जा रहा है तो इसके पीछे हमारी भाषाएं भी हैं।
कई विदेशी नागरिक हिंदी, तमिल, कन्नड़, बांग्ला, गुजराती और विभिन्न भारतीय भाषाएं सीखकर हर महीने लाखों रुपए कमा रहे हैं। यूट्यूब ऐसे विदेशियों से भरा पड़ा है, जो हमारी भाषाएं सीखकर हमसे अच्छे-खासे व्यूज ले रहे हैं। बेशक मौजूदा दौर में रोजगार के अधिक अवसरों के लिए अंग्रेजी का ज्ञान होना जरूरी है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम अपनी भाषाओं को कमतर समझने लग जाएं।
प्राय: (कुछ नेताओं द्वारा) यह कहा जाता है कि अगर हिंदी सीखेंगे तो कुछ खास किस्म के काम ही कर पाएंगे, जबकि अंग्रेजी सीख लेने का मतलब है- ऊंचा पद और प्रतिष्ठा। इस धारणा को बदलने की जरूरत है। ब्रिटेन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में अंग्रेजीभाषी लोग भी वे काम करते मिल जाते हैं, जिन्हें भारत में हिंदी से जोड़कर देखा जाता है। यह दलील भी ग़लत है कि केवल कुछ काम ऊंचे और प्रतिष्ठा वाले हैं। अगर कोई व्यक्ति अपनी मेहनत और ईमानदारी से काम कर रहा है तो ऐसा हर काम श्रेष्ठ है। वह व्यक्ति एक बेहतर समाज के निर्माण में अपना योगदान दे रहा है। उसकी गरिमा और स्वाभिमान का सम्मान करना चाहिए।
जहां तक 'काम' का सवाल है, तो उसके लिए अवसरों की उपलब्धता समेत कई बिंदु मायने रखते हैं। आपको चीन, जापान व द. कोरिया जैसे देशों में कई कंपनियों में ऐसे शीर्ष अधिकारी मिल जाएंगे, जिनकी अंग्रेजी अच्छी नहीं है। वहां कई विशेषज्ञ चिकित्सक हैं, जिन्होंने अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई नहीं की थी। उन्होंने अपनी भाषा में कार्य-व्यवहार करते हुए तरक्की पाई। इसका यह अर्थ भी नहीं है कि हमें अंग्रेजी या किसी भाषा का विरोध करना चाहिए। हर भाषा को सीखने के फायदे होते हैं।
हम मातृभाषा सीखें, अन्य भाषाएं सीखें और अंग्रेजी भी सीखें। जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ता जाएगा, हर क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। आज हिंदी में चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई हो रही है। भविष्य में उच्च शिक्षा के अन्य पाठ्यक्रम हिंदी में उपलब्ध हो जाएंगे। तब हिंदी को कुछ खास कामों से जोड़ने की बातों पर अपनेआप विराम लग जाएगा।