कतर की एक अदालत द्वारा जासूसी के कथित मामले में भारतीय नौसेना के आठ पूर्व कर्मियों की मौत की सजा को कम करने का फैसला एक बड़ी राहत है। निश्चित रूप से यह भारत सरकार के प्रयासों की जीत भी है। इन पूर्व कर्मियों को जब अक्टूबर में मौत की सजा सुनाई गई तो यह इनके परिवारों के लिए किसी वज्रपात से कम नहीं थी। उसके बाद इनका जीवन बचाने के लिए देशभर से आवाजें उठनी शुरू हो गई थीं।
हालांकि इस बात को लेकर भरोसा भी था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर जरूर कुछ ऐसा करेंगे, जिससे नौसेना के इन पूर्व कर्मियों का जीवन सुरक्षित रहेगा। इस मामले में भारत सरकार की ओर से दिए गए बयान बहुत संतुलित थे। उसके शब्दों से न तो ऐसा प्रतीत हो रहा था कि कतर की न्याय प्रणाली पर सवाल उठाए जा रहे हैं और न ही वहां कैद भारतीय नागरिकों की उपेक्षा की जा रही है।
सोशल मीडिया पर जरूर कुछ लोगों ने भावावेश में आकर ऐसी प्रतिक्रिया दी, जिससे उन्हें परहेज करना चाहिए था। कतर और भारत के संबंध बहुत पुराने तथा मैत्रीपूर्ण हैं। भारत से खाद्यान्न, दवाइयां और कई चीजें कतर को निर्यात की जाती हैं। वहां बड़ी तादाद में भारतीय नागरिक काम कर रहे हैं। वे इस देश के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। वहीं, कतर हमें गैस व पेट्रो केमिकल्स का निर्यात करता है।
अगर उक्त मामले में भारतीय नौसेना के पूर्व कर्मियों के जीवन को हानि होती तो दोनों देशों के संबंधों में कड़वाहट आ सकती थी। हां, सोशल मीडिया पर एक समूह जरूर सक्रिय था, जो कतर की ओर टकटकी लगाए देख रहा था कि कब वहां कुछ 'गड़बड़' हो और उसे भारत को घेरने का मौका मिले!
नौसेना के ये पूर्व कर्मी पिछले साल अगस्त में गिरफ्तार किए गए थे, जिसके बाद से उनके परिजन घोर चिंता में डूबे थे। जब मौत की सजा सुनाई गई तो यहां सबको हैरानी हुई थी। भारत सरकार ने भी इसे बेहद ‘स्तब्ध’ करने वाला फैसला बताया था।
प्रधानमंत्री मोदी ने दुबई में ‘सीओपी28’ शिखर सम्मेलन के दौरान कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल-थानी के साथ मुलाकात की, तो कुछ उम्मीद बंधी थी। प्रधानमंत्री ने उस मुलाकात के बाद कहा था कि उन्होंने कतर में भारतीय समुदाय के 'कल्याण' को लेकर चर्चा की थी। इससे संकेत मिला था कि प्रधानमंत्री ने इन आठ पूर्व कर्मियों का मुद्दा जरूर उठाया है और कतर के अमीर उनकी बात नहीं टालेंगे।
अभी अपीलीय अदालत का फैसला आया है, जिसमें सजा कम हुई है। इसके बाद उच्चतम न्यायालय तक विभिन्न चरण हैं। आखिर में क्षमादान का विकल्प तो है ही, जिसको देखते हुए यह उम्मीद की जा सकती है कि इन पूर्व कर्मियों की बाकी सजा कम हो जाएगी और ये सकुशल घर लौट आएंगे। इस मामले के जिस पहलू पर ताज्जुब भी होता है, वह है- एकसाथ इतनी बड़ी संख्या में लोगों को सजा सुनाना। चूंकि ये लोग भारतीय नौसेना में वर्षों सेवा दे चुके हैं। ये कैप्टन और कमांडर रहे हैं, लिहाजा सैन्य कानूनों को भलीभांति जानते हैं। साथ ही इस बात की पूरी समझ रखते हैं कि जिस देश (कतर) में नौकरी कर रहे हैं, वहां उनके अधिकार बहुत कम हैं और जासूसी जैसे मामलों में बहुत भयानक सजाएं दी जाती हैं।
वहां एकसाथ आठ लोगों का ऐसे कथित गंभीर अपराध में लिप्त होना कई सवाल खड़े करता है। कहीं इस मामले में विदेशी षड्यंत्र तो नहीं है? आज खाड़ी देशों में ऐसे कई संगठन काम कर रहे हैं, जो वहां भारत की छवि को धूमिल करने के लिए जी-जान से जुटे हैं। उन्हें भारत-विरोधी एजेंसियां फंडिंग करती हैं।
अगर उक्त मामले में भारत-कतर संबंधों में तनाव आ जाता, तो वे उसका फायदा उठाने की पूरी कोशिश करते। लेकिन दोनों देशों ने संयम व सूझबूझ का परिचय दिया। भारत के विदेश मंत्रालय का यह कहना कि 'इस मामले की कार्यवाही की प्रकृति गोपनीय और संवेदनशील होने के कारण, इस समय कोई और टिप्पणी करना उचित नहीं होगा', प्रासंगिक है। मामले की गंभीरता के कारण सभी बिंदु सार्वजनिक नहीं करने चाहिएं, अन्यथा कुछ ताकतें उनका इस्तेमाल सनसनी फैलाने, फायदा उठाने और दोनों देशों के बीच तनाव पैदा करने के लिए कर सकती हैं।