आतंकियों का प्रत्यर्पण करे पाक

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची के शब्दों से इस्लामाबाद में हड़कंप मचा हुआ है

क्या पाक ने भारत से हुई किसी संधि या समझौते का कभी सम्मान किया है, जो अब उसकी ओर से यह दलील दी जा रही है?

पाकिस्तान में रहने वाले कुख्यात आतंकवादी हाफिज सईद के प्रत्यर्पण की मांग कर भारत ने इस पड़ोसी देश को संदेश दे दिया है कि अगर वह संबंधों को सामान्य करना चाहता है तो अपने पाले हुए उन आतंकवादियों को हमें सौंपना होगा, जो यहां वांछित हैं। 

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची के इन शब्दों से इस्लामाबाद में हड़कंप मचा हुआ है कि 'हमने प्रासंगिक सहायक दस्तावेजों के साथ पाकिस्तान सरकार को एक अनुरोध भेज दिया है।' इस पर पाकिस्तानी विदेश कार्यालय की प्रवक्ता मुमताज जहरा बलूच का बयान हास्यास्पद है कि ‘यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि पाकिस्तान और भारत के बीच कोई द्विपक्षीय प्रत्यर्पण संधि मौजूद नहीं है।’ 

क्या पाक ने भारत से हुई किसी संधि या समझौते का कभी सम्मान किया है, जो अब उसकी ओर से यह दलील दी जा रही है? संधि को तोड़ना और समझौते का उल्लंघन करना तो पाकिस्तान का राष्ट्रीय चरित्र है! अगर दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि हुई होती, तो भी पाकिस्तान खुद का कोई आतंकवादी नहीं सौंपता। पाक जानता है कि अगर उसने अंतरराष्ट्रीय दबाव में आकर हाफिज सईद को भारत को सौंप दिया तो वह भारतीय जांच एजेंसियों की पूछताछ में टूट जाएगा और तोते की तरह सारे राज़ उगल देगा। 

उधर, पाकिस्तान की जनता भी सड़कों पर उतरकर इस्लामाबाद की ईंट से ईंट बजा देगी। बहुत मुमकिन है कि अगर हाफिज सईद को सौंपने की नौबत आ ही जाए तो आईएसआई खुद ही उसकी हत्या कर देगी! इन दिनों पाकिस्तान में 'अज्ञात' हमलावर खूब सक्रिय हैं, जिन्होंने कई खूंखार आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया है। हो सकता है कि किसी दिन हाफिज सईद के बारे में भी ऐसी ख़बर आ जाए!

वास्तव में पाकिस्तान जानता है कि ये पुराने आतंकवादी उसके लिए अब खास उपयोगी नहीं हैं। इनकी वजह से उसे वैश्विक मंचों पर भारत खूब आड़े हाथों लेता है। लिहाजा वह इनसे 'पीछा छुड़ाना' चाहता है। लेकिन इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि पाक का हृदय-परिवर्तन हो गया है। वह आतंकवादियों की नई पौध तैयार कर चुका है, जिनका कोई खास रिकॉर्ड नहीं है। 

आज भारत सरकार की ओर से पाकिस्तान को चिट्ठी भेजकर किसी आतंकवादी के प्रत्यर्पण की मांग की जाती है तो इसे सामान्य घटना नहीं समझना चाहिए, चूंकि पिछली सरकारें भी समय-समय पर ऐसी चिट्ठियां लिखती रही हैं। हर कोई जानता है कि पाकिस्तान ऐसी सभी चिट्ठियों का जवाब 'ना' में ही देगा, लेकिन अब यह मुद्दा फिर से चर्चा का विषय बन गया है। दोनों देशों के बयान वैश्विक संगठनों के नीति-निर्माताओं की नजरों में भी आएंगे। खासतौर से फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) के अधिकारी इन पर गौर करेंगे। 

पाकिस्तान अक्टूबर 2022 में चार साल बाद एफएटीएफ की 'ग्रे लिस्ट' से बाहर निकला था। उस पर आतंकियों को वित्तपोषण और धनशोधन जैसे गंभीर आरोप लगे थे। पाकिस्तान ने स्वीकार किया है कि अब उसे भारत की ओर से जो अनुरोध प्राप्त हुआ है, उसमें धनशोधन के मामले का उल्लेख कर हाफिज सईद का प्रत्यर्पण चाहा गया है। एफएटीएफ की नजरों में आने के बाद पाकिस्तान में आतंकियों को वित्तपोषण और धनशोधन का मामला फिर उठ सकता है। इससे पाक को फिर से 'ग्रे लिस्ट' में ले जाने में मदद मिलेगी। 

पाकिस्तानी मीडिया पर उसके विशेषज्ञ कई बार स्वीकार कर चुके हैं कि 'ग्रे लिस्ट' में जाने के बाद मुल्क दिवालिया होने के कगार पर आ गया है। अगर पिछले तीन वर्षों की घटनाओं पर ही ध्यान दें तो पता चलता है कि इस अवधि में पाक में विदेशी मुद्रा बहुत कम आई, इससे डॉलर का भाव आसमान छूने लगा, ईंधन, आटा, सब्जियों आदि की किल्लत हो गई। 

अगर पाक एक बार फिर 'ग्रे लिस्ट' में चला गया तो उसकी अर्थव्यवस्था ताश के महल की तरह ढह जाएगी। इसलिए कल्याण इसी में है कि हाफिज सईद, दाऊद इब्राहिम जैसे तमाम वांछित आतंकवादियों को भारत को सौंपने का तुरंत इंतजाम करे।

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