भारत में कैंसर के मामलों की बड़ी तादाद का होना चिंता का विषय है। ‘द लांसेट रीजनल हेल्थ साउथ-ईस्ट एशिया’ के इस अध्ययन पर सबको ध्यान देना चाहिए, जिसके अनुसार, भारत में साल 2019 में कैंसर के 12 लाख नए मामले सामने आए, जबकि 9.3 लाख लोगों ने कैंसर के कारण जान गंवाई। न केवल भारत, बल्कि एशिया के कई देशों में कैंसर जन स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बना हुआ है।
उक्त शोध करने वाली टीम के अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कुरुक्षेत्र, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, जोधपुर और बठिंडा के शोधकर्ता भी शामिल थे, जो भारत में लोगों की दिनचर्या, खानपान, आदतों और स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न चुनौतियों से भलीभांति परिचित हैं। इन विशेषज्ञों ने कैंसर के लिए जिम्मेदार जिन कारकों का उल्लेख किया है, लोग चाहें तो उनसे बच सकते हैं। ये विशेषज्ञ मानते हैं कि धूम्रपान, मदिरापान और प्रदूषक कण कैंसर के लिए जिम्मेदार 34 कारकों में से प्रमुख पाए गए हैं।
यही नहीं, मुंह के कैंसर के 50 प्रतिशत से ज्यादा मामलों का संबंध तंबाकू के सेवन से है। ज्यादा चिंता की बात यह है कि हाल के दिनों में भारत समेत दक्षिण एशिया में इसका चलन ज्यादा देखने को मिला है। धूम्रपान और मदिरापान से बचने के लिए कई तरह की चेतावनी जारी की जाती हैं। जो व्यक्ति इन पदार्थों का सेवन करता है, वह जानता है कि ये नुकसानदेह हैं, लेकिन इनसे पीछा छुड़ाना बहुत मुश्किल होता है। कई स्कूली बच्चे खैनी, गुटखा जैसे पदार्थों का सेवन कुसंगति के कारण कर बैठते हैं।
शुरुआत में ये चीजें अत्यंत प्रिय लगती हैं, लेकिन एक समय ऐसा आता है, जब ये जी का जंजाल बन जाती हैं। वे बच्चे कॉलेज तक पहुंचते-पहुंचते इनके आदी हो जाते हैं। कई यह शिकायत करते हैं कि अगर वे इन चीजों का सेवन न करें तो पढ़ाई में मन नहीं लगता और बेचैनी महसूस होने लगती है। जो उम्र ज्ञानार्जन, चरित्र के निर्माण और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण होती है, अगर उसी में नशे की लत लग गई तो भविष्य कैसा होगा?
उक्त शोध युवाओं में खैनी, गुटखा जैसे पदार्थों के सेवन से होने वाले दुष्प्रभावों के संबंध में दक्षिण एशियाई देशों का खास तौर से उल्लेख करता है, जिस पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इसकी ये पंक्तियां युवाओं को जरूर पढ़नी चाहिएं - 'भारत, बांग्लादेश और नेपाल जैसे दक्षिण एशियाई देशों में खैनी, गुटखा, पान मसाले के रूप में तंबाकू का सेवन चिंता का विषय है। इनसे साल 2019 में दुनियाभर में होने वाली ऐसी कुल मौतों में से भारत में 32.9 प्रतिशत मौतें हुईं। वहीं, होंठ और मुंह के कैंसर के 28.1 प्रतिशत नए मामलों का पता चला।'
गुटखा, जर्दा, खैनी जैसे पदार्थों का युवाओं के बीच तेजी से प्रसार होने के पीछे कई कारण हैं, जिनमें से एक है- दोस्तों का दबाव। जिन्हें इनकी लत लग जाती है, जब वे दूसरों को भी इनका आदी बनाना चाहते हैं तो सबसे बड़ी दलील यही देते हैं कि 'दोस्ती के नाम पर आज ले लो, एक दिन में क्या हो जाएगा?' यह 'मनुहार' बाद में ऐसी लत लगा देती है, जो स्वास्थ्य व धन, दोनों का नाश करती है। कई लोग तो जीवन गंवा बैठते हैं। ऐसी दोस्ती, ऐसी मनुहार किस काम की? सच्ची दोस्ती तो वह होती है, जो ऐसी बुराइयों से सावधान करे।
दिसंबर 1971 में जब बांग्लादेश बना तो (पश्चिमी) पाकिस्तान में पान की आपूर्ति बहुत कम हो गई थी। चूंकि पहले पान पूर्वी पाकिस्तान से आता था, जो आजाद होकर बांग्लादेश बन गया था। इसके कुछ साल बाद पाकिस्तान के कई इलाकों में मुंह के कैंसर के मरीज तेजी से बढ़ने लगे। इससे स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी हैरान थे। बाद में इसकी हकीकत सामने आई। दरअसल जब पाकिस्तान में पान की आवक कम हो गई तो कराची जैसे बड़े शहरों में कुछ लोगों ने इसे सुनहरे मौके की तरह लिया।
उन्होंने कारखाने लगाए तथा अंधाधुंध रसायन मिलाकर गुटखा, खैनी और अन्य नशीले पदार्थों के आकर्षक पाउच बनाकर बेचने लगे। लोगों ने भी इसे हाथोंहाथ लिया। कुछ ही वर्षों में नशे का यह धंधा चल पड़ा। बाद में कई लोगों को मुंह और गले के कैंसर जैसी बीमारियों ने आ घेरा। स्पष्ट रूप से यह बीमारी उन आकर्षक पाउचों की देन थी, जिनके सेवन की लोगों ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई। आज भी यह 'विष' खूब बिक रहा है। मन पर नियंत्रण रखते हुए, इसके लोभ से दूर रहने में ही भलाई है।