देश के भूजल स्तर में वृद्धि होना राहत की ख़बर है। निश्चित रूप से यह सरकार की ओर से लोगों को वर्षाजल द्वारा पुनर्भरण (रिचार्ज) के प्रयासों को प्रोत्साहित करने का परिणाम है। पिछले कुछ दशकों में भूजल का अतिदोहन किया गया है। देश के कई इलाकों में तो अप्रैल-मई आते-आते कुएं सूख जाते हैं। उसके बाद पानी को लेकर दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। पानी प्रकृति का ऐसा अनमोल उपहार है, जिसका विवेकपूर्ण तरीके से किया गया उपयोग बहुत खुशहाली ला सकता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण इज़राइल है, जो बंजर, रेतीली, पथरीली और शुष्क ज़मीन पर होने के बावजूद खाद्यान्न और फल-सब्जियों से मालामाल है। उसने पानी की एक-एक बूंद का बहुत सावधानी से उपयोग किया है। इसके साथ ही समुद्र के खारे पानी को मीठे पानी में बदलने के संयंत्र लगाकर दुनिया को हैरान कर दिया है। हमें इज़राइल के अनुभवों से लाभ लेना चाहिए। उसने जिस प्रकार विज्ञान और तकनीक का अधिकाधिक उपयोग करते हुए जल-संरक्षण को बढ़ावा दिया, वह बेमिसाल है। भारत में कई बड़ी नदियां, झीलें और तालाब हैं। विशाल समुद्र तट है। मानसून में अच्छी बारिश भी होती है। इसके बावजूद हर साल कई इलाकों में जल-संकट आ जाता है। क्या हम इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं कर सकते?
निस्संदेह कर सकते हैं। जिस तरह हर घर तक शौचालय जैसी सुविधा पहुंचाई गई, उसी तरह वर्षाजल के पुनर्भरण की सुविधा पहुंचाई जाए। हर साल मानसून आने से पहले छतों की सफाई को एक राष्ट्रीय उत्सव का रूप देते हुए हर घर में ऐसी प्रणाली स्थापित की जाए, ताकि जब बादल बरसें तो पानी के लिए जमीन में जाने का रास्ता आसान हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विभिन्न मंचों पर अपने संबोधन से डिजिटल पेमेंट को एक बड़ा अभियान बना दिया है। आज ‘वोकल फाॅर लोकल’ राष्ट्रप्रेम का प्रतीक बन गया है। सौर ऊर्जा के लिए छतों पर सोलर पैनल लगवाने के आह्वान को शानदार प्रतिक्रिया मिल रही है। अगर इसी तरह वर्षाजल संग्रह और पुनर्भरण का आह्वान किया जाए तो उसके परिणाम भी बहुत बेहतर होंगे। प्रायः महानगरों और शहरों में बारिश के बाद वर्षाजल या तो नालियों में बह जाता है या रास्तों पर गड्ढों में भर जाता है। इससे लोगों को आवागमन में दिक्कतें होती हैं। कई बार तो दुर्घटनाएं हो जाती हैं। प्रकृति द्वारा बरसाए गए इस ‘अमृत’ का सदुपयोग करना चाहिए। अगर हर मोहल्ले में वर्षाजल के पुनर्भरण के लिए व्यवस्था की जाए और हर घर की छत को पाइपों के जरिए उससे जोड़ दिया जाए तो कुछ ही वर्षों में भूजल स्तर में भारी वृद्धि हो सकती है। वहीं, नालियों, सड़कों पर पानी भरने जैसी दिक्कतों से भी निजात मिलेगी। नई इमारतों का निर्माण, चाहे वे आवासीय हों या व्यावसायिक, वहां ऐसी प्रणाली अनिवार्य होनी चाहिए। वर्षाजल की एक-एक बूंद सहेजने पर जोर देना होगा। जब प्रकृति इतनी उदारता से ‘अमृत’ बरसा रही है तो उसका संग्रह क्यों नहीं करना चाहिए? हमने अब तक इस ओर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया। अगर वर्षाजल के संग्रह का काम दशकों पहले शुरू किया गया होता तो भूजल स्तर में गिरावट की नौबत ही नहीं आती। अब इसे दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ करना होगा। इसके जो परिणाम आएंगे, उनसे अन्य देश भी लाभान्वित होंगे।