कतर की जेल से भारतीय नौसेना के आठ पूर्व कर्मियों की रिहाई उनके परिवारों के लिए बहुत बड़ा शुभ समाचार है। यह देश के लिए भी अत्यंत प्रसन्नता का विषय है। यह कहना ग़लत नहीं होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार अपने आठ नागरिकों को मौत के मुंह से निकालकर ले आई। यह भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत है, जिसके पीछे विदेश मंत्री एस जयशंकर और अन्य अधिकारियों का बहुत बड़ा योगदान है। इन आठ पूर्व कर्मियों पर कथित जासूसी के गंभीर आरोप थे। प्रायः हर देश में ऐसे आरोपों के तहत कड़ी सजा का प्रावधान होता है। कतर, सऊदी अरब, ईरान ... जैसे देशों में तो ऐसे आरोप लगने के बाद किसी व्यक्ति का बचना लगभग नामुमकिन समझा जाता है। वहां सार्वजनिक रूप से फांसी देने, तलवार से सिर कलम करने जैसी सजाएं देने का चलन है। हाल में ईरान ने चार लोगों को फांसी पर लटका दिया था, जिन पर इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद के लिए जासूसी करने का आरोप था। इतनी गंभीर परिस्थितियों से जुड़ा मामला होने के बावजूद भारत के आठ पूर्व नौसैनिकों की रिहाई बताती है कि भारत सरकार ने बहुत सूझबूझ से काम लिया। निश्चित रूप से यह फैसला भारत-कतर के मधुर संबंधों का भी प्रमाण है। इस मामले में कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल-थानी की भूमिका अत्यंत प्रशंसनीय रही, जिन्होंने अदालती फैसले के बाद हस्तक्षेप करते हुए उक्त कर्मियों की रिहाई का रास्ता खोल दिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में ही इस्लामी देशों के दौरे शुरू कर दिए थे। विभिन्न राष्ट्राध्यक्षों से उनकी मुलाकात और गहरी मैत्री कई अवसरों पर दिखाई दी थी। उनके इस कदम से पाकिस्तान अलग-थलग पड़ा और उसके रक्षा विशेषज्ञों ने टीवी कार्यक्रमों में इस तथ्य को कई बार स्वीकार किया। प्रधानमंत्री मोदी पिछले साल दुबई में ‘सीओपी28’ शिखर सम्मेलन के दौरान कतर के अमीर से मिले थे तो इस बात को लेकर चर्चाएं तेज हो गई थीं कि अब आठ पूर्व नौसैनिकों का जीवन बचाने के संबंध में कोई बड़ी घोषणा होगी। उसके बाद इन पूर्व कर्मियों की मौत की सजा को कम कर दिया गया। अब इनकी रिहाई हो गई। इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि जब इन पूर्व कर्मियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी तो पाकिस्तान में बहुत खुशी का माहौल था। पाकिस्तान की फौज, आईएसआई व कट्टरपंथी संगठनों के समर्थक यूट्यूबरों ने इसे सुनहरे मौके की तरह लिया था। वे पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव (जो पूर्व नौसैनिक हैं) का मामला उठाकर दुष्प्रचार को हवा दे रहे थे। कहीं ऐसा तो नहीं कि कतर में भारत के आठ पूर्व नौसैनिकों को झूठे आरोपों में फंसाने के पीछे पाक या चीन की खुफिया एजेंसियों की कोई साजिश हो? आज विदेशों, खासकर समृद्ध इस्लामी देशों में भारतीय कार्यबल बहुत मजबूत स्थिति में है। उनकी कंपनियों में भारतीय नागरिक बड़े-बड़े ओहदों पर हैं, जबकि पाकिस्तानी अपनी गलत हरकतों की वजह से कहीं भी विश्वसनीय नहीं समझे जाते। कंपनियां उन्हें महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी देने से परहेज करती हैं। विदेशी हवाईअड्डों पर किसी के पास पाकिस्तानी पासपोर्ट देखकर उसकी ‘अच्छी तरह’ से तलाशी ली जाती है और खूब जांच-पड़ताल होती है। भारत के जो पूर्व नौसैनिक कतर में कार्यरत थे, उन्हें विदेश में सैन्य कानूनों और उनके उल्लंघन के परिणामों की जानकारी थी। लिहाजा यह बात किसी के गले नहीं उतरती कि वे कतर जाकर (वह भी इतनी बड़ी संख्या में होकर) जासूसी जैसे कृत्य में शामिल हो जाएंगे! वहां सैन्य पृष्ठभूमि से आए विदेशी नागरिक के संवेदनशील स्थान पर तैनात होने का सीधा-सा मतलब है- एजेंसियों की कड़ी निगरानी में होना। इस सूरत में इतने लोग, वह भी एक ही देश से और एकसाथ जासूसी करने का खतरा क्यों मोल लेंगे? इस घटनाक्रम के तार कहीं और जुड़ते मालूम होते हैं। भविष्य में जब भी भारतीय नागरिक रोजगार के लिए विदेश जाएं तो उन्हें 'उचित' दिशा-निर्देश दिए जाएं, ताकि वे किसी साजिश के शिकार न हों।