बिल्ली के गले में घंटी

पाकिस्तान में कोई सरकार फौज के रहमो-करम से सत्ता में रहती है

क्या फैज ईसा इतनी आसानी से फौज को लगाम डाल देंगे?

पाकिस्तान में उच्चतम न्यायालय ‘बिल्ली के गले में घंटी’ बांधने की कोशिश कर रहा है। क्या इस पड़ोसी देश के प्रधान न्यायाधीश काजी फैज ईसा को नहीं मालूम कि यह ‘बिल्ली’ (फौज) बहुत पहले ही ‘रंगा सियार’ बन चुकी है? फैज ईसा द्वारा पाक सरकार से यह सुनिश्चित करने के वास्ते आश्वासन मांगा जाना अत्यंत हास्यास्पद है कि फौज ‘कारोबार’ के बजाय केवल रक्षा संबंधी मामलों पर ध्यान दे! अगर सरकार लिखित में ऐसा आश्वासन दे भी दे तो उसकी हैसियत रद्दी की टोकरी में पड़े कागज से ज्यादा नहीं है। पाक के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने भी फौज को ‘खूंटे से बांधने’ के कई प्रयास किए थे, लेकिन आखिर में उन्हें फंदे पर लटका दिया गया। पाकिस्तान में कोई सरकार खुद फौज के रहमो-करम से सत्ता में रहती है। उसमें इतनी शक्ति नहीं कि फौज को आंखें दिखा सके। ऐसे में ‘बिल्ली के गले में घंटी’ कौन बांधेगा? फैज ईसा खुद इतनी हिम्मत क्यों नहीं दिखाते? वे एक आदेश जारी करें। उसके बाद खुद उसका ‘असर’ देख लें! कहा जाता है कि जब शेर के मुंह इन्सान का खून लग जाता है तो वह नरभक्षी हो जाता है। यहां पाक फौज की समानता ‘शेर’ के बजाय बिल्ली या सियार से बैठाना ही उचित है। उसके मुंह इतने लोगों का खून लग चुका है कि अब उसका अपनी मर्यादाओं तक सीमित रहना असंभव है। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री लियाकत अली खान, जुल्फिकार अली भुट्टो, बेनजीर भुट्टो तो चुनिंदा नाम हैं। उसने पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में 30 लाख लोगों का कत्ले-आम किया था। उसके बाद हजारों बलूचों का नरसंहार कर दिया।

क्या फैज ईसा इतनी आसानी से फौज को लगाम डाल देंगे? जहां तक ‘कारोबार’ का सवाल है तो पाकिस्तान में फौज सबसे बड़ा कारोबारी समूह है। वह आवासीय काॅलोनियों से लेकर शाॅपिंग माॅल तक ... हर चीज बनाती है। उसके सीमेंट कारखाने, होटल, मैरिज हॉल भी चलते हैं। वह डायपर बनाती है। इसके अलावा बड़े शहरों में पानी के टैंकरों के जरिए खूब पैसा कमाती है। पाक फौज ईरान से तेल और अफगानिस्तान से अफीम की तस्करी करती है। इससे सिपाही से लेकर सेना प्रमुख तक, सब कमाई करते हैं। आमतौर पर सरहदी इलाका सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील माना जाता है, जहां बसावट को प्रोत्साहित नहीं किया जाता, लेकिन पाक फौज ने ऐसे कई इलाकों में प्लाॅट काट दिए हैं। इसका सीधा-सा मतलब है कि उसने यह स्वीकार कर लिया कि अब उसमें युद्ध लड़ने की शक्ति नहीं रही है। अगर उसमें शक्ति होती तो सरहदी इलाकों में आवासीय योजनाएं चलाने के बजाय बंकर बनाती। पाकिस्तान की शीर्ष अदालत द्वारा इस बात पर जोर दिया जाना कि ‘देश के सभी संस्थानों को अपनी संवैधानिक सीमाओं के भीतर रहना चाहिए’, कोरे उपदेश से ज्यादा कुछ नहीं है। चूंकि वहां हर कोई वह काम करता है, जो उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। पाक में फौज सरकार को हांकती है, सरकार जनता को हांकती है और इन दोनों को आतंकवादी संगठन हांकते हैं। खुफिया एजेंसियां अपनी टांग अड़ाती रहती हैं। यह तमाशा देखकर विदेशी शक्तियां भी हस्तक्षेप करने के लिए आ जाती हैं। फैज ईसा इस तथ्य से भलीभांति परिचित हैं। वे जानते हैं कि उनके कहने मात्र से फौज को नकेल डालना संभव नहीं है, लेकिन ऐसी टिप्पणी कर ‘इतिहास में नाम’ दर्ज कराना चाहते हैं, ताकि उनके सेवानिवृत्त होने के बाद भी लोग उन्हें यह कहते हुए याद करें कि पाकिस्तान में एक न्यायाधीश ऐसे हुए थे, जिन्होंने फौज को नियंत्रित करने की कोशिश की थी! पाक फौज का जब तक अस्तित्व रहेगा, वह अपने ही लोगों का लहू पीती रहेगी। अगर वे इससे मुक्ति पाना चाहते हैं तो वही रास्ता अपनाना होगा, जो बांग्लादेश ने अपनाया था।

About The Author: News Desk