उद्यमिता को बढ़ावा दें

विदेशों में स्थित कई उद्योग भारतीय ग्राहकों की वजह से चल रहे हैं

क्या हम अपनी इस शक्ति व सामर्थ्य का बेहतर ढंग से उपयोग नहीं कर सकते?

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कोचिंग कक्षाओं, प्रतियोगी परीक्षाओं और नौकरी के अवसरों के बारे में जो बयान दिया, उससे सहमत या असहमत हो सकते हैं, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि आज विद्यार्थियों को सरकारी पद पाने से इतर अन्य अवसरों की तलाश करने के बारे में भी जरूर सोचना चाहिए। किसी देश की प्रगति और खुशहाली में विभिन्न पेशों से जुड़े लोगों की महत्त्वपूर्ण भागीदारी होती है। मजदूर, किसान, शिक्षक, सैनिक, चिकित्सक, सरकारी कर्मचारी ... हर कोई अपने-अपने स्तर पर योगदान देता है। इनके महत्त्व को समाज द्वारा स्वीकारा जाता है। आजादी के बाद भारत में उद्यमिता को बढ़ावा देने के पर्याप्त प्रयास नहीं हुए, बल्कि शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य नौकरी हासिल करना रह गया। नौकरी भी सरकारी होनी चाहिए! निस्संदेह सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों का देश के विकास में बड़ा योगदान है, लेकिन हमें उद्यमिता को भी बढ़ावा देना होगा। हर व्यक्ति को सरकारी नौकरी देना संभव नहीं है। आज भारत की जनसंख्या जिस आंकड़े तक पहुंच गई है, वहां सरकार कितने लोगों के लिए सरकारी नौकरी के अवसरों का सृजन कर सकती है? वहीं, दूसरी ओर इस जनसंख्या के साथ उद्यमिता से संबंधित अपार संभावनाएं जुड़ी हुई हैं। विदेशी कंपनियां हमारे बाजारों से मोटा मुनाफा कमाकर ले जाती हैं। विदेशों में स्थित कई उद्योग भारतीय ग्राहकों की वजह से चल रहे हैं। क्या हम अपनी इस शक्ति व सामर्थ्य का बेहतर ढंग से उपयोग नहीं कर सकते?

भारत में आजादी के बाद बनीं कई फिल्मों में कारोबारी वर्ग का गलत चित्रण किया गया। लोगों के दिलो-दिमाग में यह बात बैठाने की पुरजोर कोशिश की गई कि 'पढ़ाई-लिखाई के बाद सरकारी नौकरी ढूंढ़नी चाहिए' ... 'जो व्यक्ति किसी भी तरह सरकारी नौकरी पा जाए, वही सफल है' ... 'स्वरोजगार करना, दुकान खोलना, अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाना ... जैसे काम प्रतिभाशाली लोगों के लिए नहीं हैं!' इसका नतीजा यह हुआ कि भारत में अपार संभावनाएं होने के बावजूद उनका ठीक तरह से उपयोग नहीं किया गया। अमेरिका, जापान, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया ... जैसे देशों में उद्यमिता पर बहुत जोर दिया गया। ये देश जनसंख्या की तुलना में भारत के आस-पास भी नहीं हैं। इन्होंने नवाचार को बढ़ावा दिया, कोरे किताबी ज्ञान के बजाय प्रयोगों को प्रोत्साहन दिया। अमेरिका में स्कूली बच्चा ऐसे लोगों के बारे में पढ़ता-सुनता बड़ा होता है, जिन्होंने उद्यमिता का रास्ता अपनाते हुए कई कीर्तिमान रचे हैं। स्वाभाविक रूप से बच्चों के मन में वैसा बनने के सपने आकार लेने लगते हैं। बच्चों को नया सोचने और नया काम करने के लिए अनुकूल वातावरण दिया जाता है। उन्हें समय-समय पर ऐसे उद्यमियों से मिलने के मौके उपलब्ध कराए जाते हैं, जो अपने प्रयोगों के लिए चर्चा में रहते हैं। अगर कोई बच्चा ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में अनूठा काम करता है तो उसका पेटेंट दिलाने में मदद की जाती है। ये ही बच्चे भविष्य में उद्योग जगत के बड़े सितारे बनकर चमकते हैं। अगर वैसा वातावरण और प्रोत्साहन भारतीय विद्यार्थियों को उपलब्ध कराया जाए तो यहां भी बड़े-बड़े काम हो सकते हैं। पिछले दिनों राजस्थान में कोटा जिले के एक स्कूली बच्चे द्वारा बनाया गया रोबोट बहुत चर्चा में था, जो किसानों के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है। ऐसे बच्चे हर जिले में मौजूद हैं। बस, जरूरत है तो उन्हें अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराने की और प्रोत्साहन देने की। इसके बाद वे अपने रास्ते खुद बना लेंगे।

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