विचारक संस्था ‘जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र-यूके’ (जेकेएससी) द्वारा ब्रिटेन के संसद भवन में आयोजित ‘संकल्प दिवस’ कार्यक्रम के दौरान कश्मीरी कार्यकर्ता याना मीर ने अपने संबोधन से पाकिस्तानी पाखंड के परखच्चे उड़ा दिए। इस जवाब की गूंज वर्षों तक सुनाई देती रहेगी। एक अंतरराष्ट्रीय मंच पर जम्मू-कश्मीर के बारे में यह शानदार जवाब था। पाकिस्तान द्वारा किए गए दुष्प्रचार का पर्दाफाश करने के लिए याना मीर जैसी भारत की और बेटियों को आगे आना होगा। इसके लिए उन्हें मंच उपलब्ध कराना होगा। पाकिस्तान ने पिछले कई दशकों में जम्मू-कश्मीर के बारे में जो झूठ फैलाया, उसका पाकिस्तानी जनता पर गहरा असर हुआ है। एक आम पाकिस्तानी का ख़याल होता है कि 'जम्मू-कश्मीर में हर घर के सामने चार-पांच फौजी हर वक्त खड़े रहते हैं, सालभर कर्फ्यू लगा रहता है, मस्जिदों में अज़ान और नमाज़ पर पाबंदी है, ईद नहीं मनाने दी जाती, लोगों को संवैधानिक अधिकार नहीं दिए जाते, स्कूल-कॉलेज बंद रहते हैं ...!' जबकि जम्मू-कश्मीर में ऐसे हालात बिल्कुल नहीं हैं। वहां आतंकवाद कुछ इलाकों तक सिमट गया है। पाकिस्तानी आतंकवादी एलओसी पार करते हुए मार गिराए जाते हैं। 'कर्फ्यू' की बात करने वाले लोग जम्मू-कश्मीर के कस्बों के ही वीडियो देख लें। वहां इतने पर्यटक उमड़ रहे हैं कि यातायात पुलिस का काम बढ़ गया है। आंतरिक सुरक्षा स्थानीय पुलिस संभाल रही है। मस्जिदों में पांचों वक्त अज़ानें, नमाज़ें हो रही हैं। ईद समेत विभिन्न त्योहार धूमधाम से मनाए जा रहे हैं। कश्मीरी बच्चे अखिल भारतीय स्तर की परीक्षाओं की मेरिट में स्थान प्राप्त कर रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर को जब से अनुच्छेद 370 और 35ए से निजात मिली है, यह केंद्र शासित प्रदेश खुली हवाओं में सांस लेने लगा है। पहले, जो अलगाववादी संगठन पत्थरबाजी और आगजनी करने का कैलेंडर जारी करते थे, अब न तो उन्हें उत्पात मचाने के लिए नौजवान मिल रहे हैं और न ही (उतना) 'चंदा' आ रहा है। याना मीर ने अपने संबोधन में नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई का उल्लेख कर पाकिस्तान के कथित बुद्धिजीवी वर्ग को भी आड़े हाथों ले लिया, जो ड्राइंग रूम में बैठकर सुनी-सुनाई बातों के आधार पर ट्वीट करता रहता है। याना ने उचित ही कहा, 'मुझे आप पर आपत्ति है मलाला यूसुफजई। आप मेरे देश, मेरी प्रगतिशील मातृभूमि को 'उत्पीड़ित' कहकर बदनाम कर रही हैं। मुझे सोशल मीडिया और विदेशी मीडिया पर ऐसे सभी 'टूलकिट सदस्यों' पर आपत्ति है, जिन्होंने कभी भी कश्मीर का दौरा नहीं किया, लेकिन वहां से 'ज़ुल्म' की कहानियां गढ़ते हैं। ... मैं मलाला यूसुफजई नहीं हूं, क्योंकि मैं अपने देश भारत में स्वतंत्र और सुरक्षित हूं। अपनी मातृभूमि कश्मीर में, जो भारत का हिस्सा है, मुझे कभी भी भागकर आपके देश में शरण लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी।' मलाला जैसे 'बुद्धिजीवी' जम्मू-कश्मीर की हकीकत को लेकर कितना जानते होंगे? उनकी जानकारी उस बौद्धिक कचरे पर आधारित है, जो स्कूली किताबों के जरिए उनके दिमागों में ठूंस-ठूंसकर भरा जाता है। इसलिए पाकिस्तान में कोई व्यक्ति कितना भी पढ़ा-लिखा क्यों न हो, वह गाहे-बगाहे ऐसी बातें कर ही देता है। उनकी अक्ल पर लगे झूठ व संकीर्णता के ताले खोलने के लिए बहुत जरूरी है कि उन्हें जम्मू-कश्मीर के नौजवानों से रूबरू कराया जाए। पाकिस्तान अपने अवैध कब्जे वाले पीओके से जिन लोगों को विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों और टीवी बहसों में 'कश्मीरी कार्यकर्ता' के तौर पर पेश करता है, अगर उनसे कश्मीरी भाषा में कोई सवाल पूछ लें तो वे बगलें झांकने लगते हैं। असल में उनमें से ज़्यादातर लोग कश्मीरी होते ही नहीं, वे (पाकिस्तानी) पंजाबी होते हैं। उनका कश्मीरी भाषा से उतना ही संबंध है, जितना जनरल आसिम मुनीर, जनरल क़मर जावेद बाजवा (से.नि.) ... का संबंध ईमानदारी से है!