'बदलाव' के नायक

सुनीता देवी का अनुभव ग्रामीण क्षेत्र की अन्य महिलाओं के लिए ड्रोन प्रशिक्षण के दरवाजे खोलेगा

जिस भाषा के पास मोहम्मद मानशाह और बनवंग लोसू जैसे विद्वान होंगे, उसका भविष्य निस्संदेह उज्ज्वल होगा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' की 110वीं कड़ी में जिन लोगों को अपने अनुभव साझा करने के लिए मंच दिया, वे असल में सकारात्मक बदलाव के ऐसे नायक हैं, जो प्रचार-प्रसार की चकाचौंध से कोसों दूर रहकर अपना काम कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के सीतापुर की 'ड्रोन दीदी' सुनीता देवी की कहानी तो बहुत प्रेरणादायक है। वे किसान परिवार से आती हैं, फूलपुर और इलाहाबाद में ड्रोन उड़ाने का प्रशिक्षण लिया। इससे पहले उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र में एक बार ड्रोन देखा था। आज वे बहुत कुशलता से ड्रोन उड़ा रही हैं। इससे उनके खेती के कामों में आसानी हो गई है। सुनीता देवी का अनुभव ग्रामीण क्षेत्र की अन्य महिलाओं के लिए ड्रोन प्रशिक्षण के दरवाजे खोलेगा। अभी गांवों में लोगों के पास ड्रोन के विभिन्न उपयोगों के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। शादियों में ड्रोन वीडियो रिकॉर्ड करते और तस्वीरें खींचते तो दिख जाते हैं। ये यंत्र खेती-किसानी के कामों में बहुत कमाल कर सकते हैं। किसानों के लिए उस समय बहुत कठिनाई होती है, जब फसल बढ़ रही हो और बरसात का मौसम हो। उस दौरान सांप-बिच्छू जैसे जहरीले जीव भी फसल में पनाह लिए मिल जाते हैं। ऐसे मौसम में, खासकर रात के समय किसी जरूरी काम से फसल में आना-जाना बड़ा मुश्किल होता है। हर साल कई किसान सर्पदंश और अन्य दुर्घटनाओं के शिकार हो जाते हैं। अब ड्रोन उनका भरोसेमंद साथी बनकर न केवल कई काम चुटकियों में कर देगा, बल्कि दुर्घटनाओं से भी बचाएगा। सुनीता देवी अब तक 35 एकड़ फसल पर स्प्रे कर चुकी हैं। इसके लिए उन्होंने बस एक जगह से ड्रोन को नियंत्रित किया। अगर यही काम परंपरागत ढंग से किया जाता तो उसमें ज्यादा समय और ज्यादा परिश्रम लगता। साथ ही, जोखिम भी ज्यादा होता।

बिहार में भोजपुर के भीम सिंह भवेश भी प्रशंसनीय कार्य कर रहे हैं। यहां अत्यंत वंचित मुसहर समुदाय के बच्चों की शिक्षा के लिए भीम सिंह के प्रयास उल्लेखनीय हैं। उन्होंने इस समुदाय के करीब आठ हज़ार बच्चों का स्कूल में नाम लिखवाया। यही नहीं, एक बड़ा पुस्तकालय भी बनवा दिया। पहले इस समुदाय के लोगों को जरूरी दस्तावेज बनवाने और फॉर्म आदि भरने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। भीम सिंह ने उनकी मदद करते हुए काम आसान कर दिया। इससे संसाधनों तक ग्रामीणों की पहुंच आसान हो गई है। लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं आसानी से मिलें, इसके लिए 100 से ज्यादा शिविर लगवाए गए। भीम सिंह ने लोगों को कोरोनारोधी वैक्सीन लगवाने के लिए बहुत प्रोत्साहित किया था। अगर अन्य गांवों में भी लोग 'भीम सिंह' बन जाएं, उनकी तरह हिम्मत और समर्पण दिखाएं तो ग्रामीण क्षेत्रों की तस्वीर बदल सकती है। जम्मू-कश्मीर में गांदरबल के मोहम्मद मानशाह ने गोजरी भाषा को संरक्षित करने के लिए तीन दशक लगा दिए। अपनी पढ़ाई-लिखाई के दिनों में रोजाना 20 किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर चुके मानशाह का अपनी भाषा को संरक्षित करने का दृढ़ संकल्प काबिले-तारीफ है। उन्होंने कई किताबों का गोजरी भाषा में अनुवाद किया है। अरुणाचल प्रदेश में तिरप के शिक्षक बनवंग लोसू 'वांचो भाषा' को बचाने में जुटे हैं। अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और असम के कुछ हिस्सों में बोली जाने वाली वांचो भाषा को लुप्त होने से बचाने के लिए बनवंग लोसू ने एक लिपि भी तैयार कर दी। उन्होंने एक भाषा विद्यालय बनवाया। वे नई पीढ़ी के बच्चों को अपनी भाषा सीखने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। जिस भाषा के पास मोहम्मद मानशाह और बनवंग लोसू जैसे विद्वान होंगे, उसका भविष्य निस्संदेह उज्ज्वल होगा।

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