प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कुछ महीनों से समुद्र की ओर 'विशेष' ध्यान है। पिछली बार जब उन्होंने लक्षद्वीप में समुद्र तट की तस्वीरें 'साझा' की थीं तो मालदीव का पूरा पर्यटन उद्योग हिल गया था। अब उन्होंने द्वारका के पास ‘स्कूबा डाइविंग’ की है तो हर किसी के मन में जिज्ञासा पैदा हो गई है कि समुद्र की गहराइयों में क्या-क्या छुपा है! प्रधानमंत्री ने गहरे समुद्र में जाकर प्राचीन द्वारकाजी के दर्शन करने को ‘अत्यंत दिव्य अनुभव’ बताया है। यह कहना ग़लत नहीं होगा कि भविष्य में काफी लोग वहां जाकर ‘स्कूबा डाइविंग’ करने के लिए प्रेरित होंगे। वे भी समुद्र में डुबकी लगाकर भगवान श्रीकृष्ण की प्राचीन नगरी के दर्शन करेंगे। भारत के पास अध्यात्म, संस्कृति, इतिहास, पर्यटन ... इन सबसे जुड़ा इतना विशाल खजाना है, जिसका हम ठीक-ठीक आकलन नहीं कर पाए हैं। यहां हर गांव के साथ इतिहास की कोई-न-कोई अनूठी घटना जुड़ी मिल जाएगी, हर तहसील विशिष्ट खानपान और कलाओं की भूमि है, हर जिले में कोई बड़ा आध्यात्मिक स्थल मिल जाएगा ...। हमें तो इन्हें सहेजकर 'ठीक तरह से प्रस्तुत' करना चाहिए, ताकि देश-दुनिया के अनगिनत लोग लाभान्वित हों। भारत में ‘स्कूबा डाइविंग’ को लेकर व्यापक संभावनाएं हैं। अभी लोग इस संबंध में तो काफी बातें जानने लगे हैं कि 'धरातल' पर क्या है, लेकिन समुद्र की गहराइयों से अपरिचित हैं। समुद्र की एक अलग ही दुनिया है, जिसका खास तरह का रोमांच है। इसमें मानव इतिहास से जुड़े कई रहस्य समाए हुए हैं। आज भी समुद्र से प्राचीन सिक्के, तीर, बर्तन ... जैसी चीजें मिल जाती हैं। इतिहास के विद्यार्थियों, शोधार्थियों और शिक्षकों की तो इनमें विशेष रुचि होती है।
भगवान श्रीकृष्ण ने जब द्वारका नगरी बसाई थी तो उसका सौंदर्य और ऐश्वर्य अद्भुत था। कालांतर में वह गहरे समुद्र में चली गई। आज हर साल लाखों श्रद्धालु भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करने द्वारका आते हैं, लेकिन प्राचीन द्वारका कहां है, इस बात की उन्हें बहुत कम जानकारी होती है। प्रधानमंत्री मोदी ने यहां ‘स्कूबा डाइविंग’ से उन श्रद्धालुओं के लिए मार्ग खोल दिए हैं। स्थानीय प्रशासन को चाहिए कि वह सुरक्षा व सावधानियों से संबंधित पर्याप्त इंतजाम करने के बाद भविष्य में अन्य श्रद्धालुओं को भी प्राचीन द्वारका के दर्शन कराए। निस्संदेह समुद्र की गहराई में जाना कई लोगों के लिए उचित नहीं है। इसके पीछे उम्र और स्वास्थ्य संबंधी कारण हो सकते हैं। उनके लिए वहां लाइव दर्शन जैसी व्यवस्था की जा सकती है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा देश के सबसे लंबे केबल-आधारित पुल ‘सुदर्शन सेतु’ के उद्घाटन से बेयट द्वारका द्वीप को मुख्य भूमि ओखा से जोड़ने में आसानी होगी। इससे श्रद्धालुओं के लिए आवागमन सहज हो जाएगा। पहले, यहां श्रद्धालुओं को बोट का इंतजार करना पड़ता था। खासकर गर्मियों के दिनों में कई लोगों की तबीयत बिगड़ जाती थी। अब ‘सुदर्शन सेतु’ उनकी ये सभी मुश्किलें दूर कर देगा। श्रद्धालु वाहनों से बेयट द्वारका जाएंगे तो भारतीय इंजीनियरिंग के इस अद्भुत प्रतीक को भी नमन करेंगे। हमारे प्राचीन तीर्थों से श्रद्धालुओं को जोड़ने के लिए जहां जरूरी हो, आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए। गुजरात में स्थित सोमनाथ मंदिर में रात को लाइट एंड साउंड शो इसका बेहतरीन उदाहरण है। एक ओर जहां इस शो में मंदिर का इतिहास बताया जाता है, वहीं समुद्र में उठतीं लहरें शिवजी की वंदना करती प्रतीत होती हैं। ऐसे आयोजन अन्य मंदिरों में भी किए जा सकते हैं। श्रद्धालु उन्हें बहुत ध्यान से देखेंगे। यह उन्हें अपने इतिहास से परिचित कराने का बहुत आसान और रोचक माध्यम हो सकता है।