प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब से चुनावी राजनीति में आए हैं, हर चुनाव (विधानसभा और लोकसभा) से पहले विपक्ष उन पर हमला करते हुए जाने-अनजाने में कुछ ऐसे 'शब्दबाण' छोड़ देता है, जिनका रुख उसकी ही ओर हो जाता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि मोदी ऐसे 'शब्दबाणों' पर बड़ी ही सूझबूझ से काबू पा लेते हैं तथा उन पर कुछ और धार चढ़ाते हुए दोबारा विपक्ष की ओर छोड़ देते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि विपक्ष ने इस बार भी वह बाण छोड़ दिया है, जिसे मोदी ने न केवल लपक लिया, बल्कि विपक्ष की ओर रवाना भी कर भी दिया है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव पटना में एक रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी पर ऐसे अनेक शब्दबाण छोड़ सकते थे, जिनके जरिए उनकी सरकार पर कई बार निशाना साधने का मौका मिलता, लेकिन उन्होंने उनके निजी जीवन पर प्रहार किया, जो ग़ैर-ज़रूरी था। उनका यह बयान कि 'अगर नरेंद्र मोदी के पास अपना परिवार नहीं है तो हम क्या कर सकते हैं', राजनीतिक शुचिता और मर्यादा का उल्लंघन है। किसी भी व्यक्ति के निजी जीवन को इस तरह निशाना नहीं बनाना चाहिए। कौन व्यक्ति घर-बार बसाता है, कौन वैराग्य धारण करता है, यह उस व्यक्ति का निजी मामला है। स्वयं की स्थिति के आधार पर न तो किसी से ऐसी तुलना करनी चाहिए और न ही किसी को ताना मारना चाहिए। लालू यहीं नहीं रुके। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की माता के बारे में भी कुछ ऐसी टिप्पणियां कीं, जो उन जैसे अनुभवी नेता को नहीं करनी चाहिए थीं।
अब इन सबके जवाब में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सोशल मीडिया पर ‘मोदी का परिवार’ अभियान शुरू कर दिया। लोग अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर नाम के साथ ‘मोदी का परिवार’ लिख रहे हैं। इस तरह लालू ने बातों ही बातों में मोदी को 'एक और सुनहरा मौका' दे दिया। पिछले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने मोदी पर हमलावर होते हुए ‘चौकीदार ही ... है’ का नारा दिया था, जिसके जवाब में भाजपा ने ‘मैं भी चौकीदार’ अभियान चलाकर पूरी तस्वीर ही बदल डाली थी। चुनाव नतीजों के बाद कई विश्लेषकों ने माना कि मोदी पर निजी हमले का कांग्रेस को नुकसान हुआ था। उससे पहले, मणिशंकर अय्यर ने मोदी के बारे में 'चायवाला' और '... आदमी' जैसी टिप्पणियां की थीं, जो कांग्रेस को ही महंगी पड़ी थीं। मोदी ने कांग्रेस नेताओं के उन शब्दों को ऐसे घुमाया कि वे कालांतर में उन पर ही भारी पड़ गए। कांग्रेस की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी मोदी को '... का सौदागर' कहा था, जिसका परिणाम सब देख चुके हैं। नेतागण को चाहिए कि वे निजी और सार्वजनिक जीवन में ऐसे शब्दों का प्रयोग न करें, जो शिष्टाचार और मर्यादा के विरुद्ध हों। याद करें, महात्मा गांधी, पं. जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री और अटलजी जैसे नेता सामान्य बयान देने से लेकर भाषण तक में कितने नपे-तुले शब्द बोलते थे! उनके शब्दों में प्रतिपक्ष से असहमति होने के बावजूद सम्मान का भाव होता था। वे किसी के निजी जीवन के बारे में ऐसी टिप्पणी नहीं करते थे, जिसे सुनकर उसे कष्ट हो। शास्त्रीजी ने वर्ष 1965 के युद्ध के समय जो भाषण दिया था, उसे सुनकर मालूम होता है कि अपनी बात प्रभावशाली ढंग से कहने के लिए न तो क्रोधित होने की जरूरत होती है और न ही किसी के निजी जीवन पर टीका-टिप्पणी करनी होती है। वरिष्ठ नेताओं को ऐसे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए, जिनसे अन्य नेता और कार्यकर्ता भी शिक्षा प्राप्त करें।