भारत मंडपम में पहले 'राष्ट्रीय रचनाकार पुरस्कार' समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने युवाओं में ड्रग्स के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए जो सुझाव दिया, वह आज अत्यंत प्रासंगिक है। ड्रग्स और अन्य तरह की नशाखोरी के नकारात्मक प्रभावों के बारे में बताने के लिए सोशल मीडिया बेहतरीन मंच हो सकता है। प्रधानमंत्री ने इन शब्दों - 'क्या हम ऐसा कंटेंट और ज्यादा बना सकते हैं, जो युवाओं में ड्रग्स के नकारात्मक प्रभावों को लेकर जागरूकता लाए? हम बिल्कुल दावे से, रचनात्मक तरीके से समझा सकते हैं कि युवाओं के लिए ड्रग्स ठीक नहीं हैं?' - में एक ज्वलंत समस्या का उल्लेख किया है। नशा सस्ता हो या महंगा, वह नुकसान ही करता है। इसकी चपेट में आने के लिए युवावस्था एक नाजुक समय होता है। कुसंगति और दोस्तों के उकसावे में आने से कई युवाओं को इसका चस्का लग जाता है। पिछले कुछ वर्षों में फिल्मी गानों में ऐसे शब्दों का प्रयोग बढ़ा है, जो नशे का महिमा-मंडन करते प्रतीत होते हैं। स्थानीय सिनेमा और गीतों में भी नशाखोरी को बढ़ावा देने वाले शब्दों की बाढ़-सी आई हुई है। ये गीत शादियों में बजाए जाते हैं, जिन पर किशोरों से लेकर बड़ी उम्र तक के लोग थिरकते दिख जाएंगे। उन्हें सुनकर अच्छे-भले आदमी को यह भ्रम हो सकता है कि 'नशाखोरी बहुत बहादुरी और दिलेरी का काम है!' कला का उपयोग मानव जीवन से बुराइयों को दूर करने के लिए होना चाहिए, न कि उसके जरिए किसी ऐब को बढ़ावा मिलना चाहिए।
हाल में एक सरकारी सर्वेक्षण के जो आंकड़े आए, वे चिंता बढ़ाने वाले हैं। उसके अनुसार, पिछले एक दशक में पान, तंबाकू और नशीले पदार्थों पर खर्च बढ़ गया है। इस तरह लोग अपनी कमाई का ज्यादा हिस्सा ऐसे पदार्थों पर खर्च करने लगे हैं। घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2022-23 बताता है कि कुल घरेलू खर्च के एक हिस्से के रूप में पान, तंबाकू और नशीले पदार्थों पर खर्च शहरी क्षेत्रों में ही नहीं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी बढ़ा है। ग्रामीण क्षेत्रों में इन पदार्थों पर खर्च वर्ष 2011-12 के 3.21 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 3.79 प्रतिशत हो गया है। वहीं, शहरी क्षेत्रों में खर्च वर्ष 2011-12 के 1.61 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 2.43 प्रतिशत हो गया है। जो राशि परिवारों की उन्नति और खुशहाली पर खर्च होनी चाहिए थी, वह नशाखोरी को बढ़ावा देने वाली कंपनियों के खजाने में बरस रही है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा अगस्त 2022 से जुलाई 2023 तक किए गए घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस) का एक और बिंदु कड़वी हकीकत बयान करता है। इसके अनुसार, शहरी क्षेत्रों में शिक्षा पर खर्च का अनुपात वर्ष 2011-12 के 6.90 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2022-23 में 5.78 प्रतिशत रह गया। ग्रामीण क्षेत्रों में यह अनुपात वर्ष 2011-12 के 3.49 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2022-23 में 3.30 प्रतिशत रह गया। इसी तरह शहरी क्षेत्रों में पेय पदार्थों और प्रसंस्कृत भोजन पर खर्च वर्ष 2011-12 के 8.98 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 10.64 प्रतिशत हो गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़ा वर्ष 2011-12 के 7.90 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 9.62 प्रतिशत हो गया। आसान शब्दों में कहें तो अपनी सेहत को नुकसान पहुंचाने वाली चीजों पर ज्यादा राशि खर्च होने लगी है। यह स्थिति भविष्य में बड़ी स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकती है। समय रहते लोगों, खासकर किशोरों और युवाओं को सजग होना पड़ेगा। अगर अपनी ऊर्जा, समय और संसाधनों को हानिकारक आदतों में लगाएंगे तो वे भविष्य में कई गुणा ज्यादा नुकसान पहुंचाएंगी।