रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से आई सीएनएन की रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत के हस्तक्षेप से करोड़ों लोगों का जीवन बच गया। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन पर परमाणु हमले का मंसूबा बना चुके थे! इस रिपोर्ट को इसलिए भी नहीं नकारा जा सकता, क्योंकि पुतिन को उनके बचपन से जानने वाले लोग कहते हैं कि वे इस सोच में विश्वास रखते हैं कि अगर लड़ाई होनी तय हो तो पहला मुक्का पड़ने का इंतजार नहीं करना चाहिए। पुतिन ने जिस तरह यूक्रेन पर हमला बोला, उससे दोनों ओर जन-धन का भारी नुकसान हुआ। यूक्रेन क्षेत्रफल, सैन्य शक्ति और संसाधनों के मामले में रूस से बहुत छोटा है, लेकिन उसने डटकर मुकाबला किया। अब तक इस युद्ध का निर्णय नहीं हो सका है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो पुतिन के सामने कह दिया था कि यह युद्ध का समय नहीं है। उनके इस बयान को वैश्विक स्तर पर सराहा गया था। भारत का रुख इन दोनों देशों के बीच टकराव को टालने और शांति स्थापना के प्रयासों पर जोर देने का रहा है। पुतिन के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्होंने युद्ध में अरबों डॉलर और हथियार झोंक दिए, बहुत बड़ी तादाद में रूसी सैनिक मारे जा चुके हैं, लेकिन मनचाहे नतीजे नहीं मिल रहे हैं। पुतिन अपनी 'विजेता' की छवि बनाए रखना चाहते हैं। जैसे-जैसे युद्ध लंबा खिंचता जा रहा है, उनकी इस छवि पर भी चोट पड़ती जा रही है। कोई आश्चर्य नहीं, अगर उन्होंने साल 2022 में यूक्रेन पर परमाणु हमले का इरादा कर लिया हो।
जब रूस ने धावा बोला था, तब कई विश्लेषकों को लगा था कि यूक्रेन ज्यादा दिन नहीं टिक पाएगा, पुतिन एक पखवाड़े या एक महीने में उसकी सेना से घुटने टिकवा देंगे, लेकिन हुआ इसका उल्टा। रूसी सेना की 'तूफानी रफ्तार' थम गई थी। उस पर ड्रोन हमले होने लगे थे। जमीन पर भी यूक्रेन की ओर से भरपूर जवाब दिया गया। खासतौर से खेरसॉन में स्थिति अत्यधिक चिंताजनक थी। वहां रूस की अग्रिम रक्षा पंक्तियों पर तबाह होने का खतरा मंडरा रहा था। हजारों रूसी सैनिकों के जान गंवाने की आशंका थी। रूस में अंदरूनी हालात बिगड़ते जा रहे थे। हजारों की तादाद में नागरिक दूर-दराज के इलाकों में जाने लगे थे, क्योंकि उन्हें भय था कि पुतिन के आदेश पर जबरन फौज में भर्ती कर लिया जाएगा। लोगों ने मोर्चे पर जाने से बचने के लिए कई तरह के बहाने बनाने शुरू कर दिए थे। यही नहीं, पुतिन के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए थे। ऐसे में रूसी राष्ट्रपति पर बहुत दबाव था कि वे कुछ बड़ा करें, निर्णायक करें, जिससे उनकी छवि 'महान और अजेय' नेता के तौर पर बनी रहे। निश्चित रूप से परमाणु हमला वह विकल्प हो सकता था, जिससे पुतिन अपनी छवि को चमकाने की कोशिश करते, लेकिन उसका नतीजा भयंकर होता। पुतिन यूक्रेन पर परमाणु हमला कर खुद निश्चिंत नहीं हो सकते थे। उसके बाद अमेरिका के नेतृत्व में रूस पर 'घातक हमला' हो सकता था। इस समूचे घटनाक्रम में हजारों या लाखों नहीं, बल्कि करोड़ों लोग जान से हाथ धो बैठते। उस तबाही के निशान सदियों तक पीछा नहीं छोड़ते। दूसरे विश्वयुद्ध में जापान के हिरोशिमा व नागासाकी में परमाणु हथियारों के दुष्परिणाम सब देख चुके हैं। आज जो परमाणु हथियार मौजूद हैं, वे उनसे कई गुणा ज्यादा शक्तिशाली हैं, लिहाजा कई गुणा ज्यादा तबाही मचा सकते हैं। ऐसे हमले को टालने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने का मतलब है- 'करोड़ों लोगों के जीवन की रक्षा करना।' भविष्य में जब आधिकारिक दस्तावेज पूरे सबूतों के साथ सार्वजनिक किए जाएंगे तो दुनिया जानेगी कि भारत ने कितने बड़े संकट को टाल दिया था।