मालदीव की संप्रभुता की रक्षा करने के संबंध में दिया गया चीन का बयान हकीकत से कोसों दूर है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन के बयान कि ‘चीन मालदीव की क्षेत्रीय संप्रभुता की रक्षा करने और स्वतंत्र रूप से सभी पक्षों के साथ मैत्रीपूर्ण सहयोग करने में उसका समर्थन करता है’, पर उनसे यह जरूर पूछा जाना चाहिए कि - चीन ने तिब्बत की संप्रभुता का कितना सम्मान किया? अगर उसके हृदय में दूसरे देशों की संप्रभुता के लिए इतना ही सम्मान है तो वह तिब्बत को आजाद क्यों नहीं कर देता? वह क्यों उस पर कुंडली मारकर बैठा है? चीन क्यों हर साल भारत के साथ सीमा विवाद को भड़काता है और उसके इलाकों पर कुदृष्टि रखता है? सवाल तो कई हैं, लेकिन उन सबकी जगह यही कहा जाना चाहिए कि चीनी माल की तरह चीनी विदेश मंत्रालय का उक्त बयान भी नकली है। यह निश्चित है कि समय आने पर ड्रैगन मालदीव को धोखा देगा। वह उस पर कर्ज का बोझ लादकर उसके इलाकों पर कब्जा करना चाहता है। अगर चीन अपने इन मंसूबों में कामयाब हुआ तो वह स्थिति भारत के लिए तो चुनौतीपूर्ण होगी ही, वहीं मालदीव के लोग न घर के रहेंगे, न घाट के! एक तरफ उनकी सरकार भारत से संबंध बिगाड़ चुकी होगी, दूसरी तरफ चीन सख्ती दिखाकर अपने कर्ज की 'वसूली' करेगा। वह न तो मालदीव की संस्कृति का सम्मान करेगा और न ही नागरिकों के साथ गरिमापूर्ण व्यवहार करेगा। उस दिन मालदीव की सरकार मदद के लिए किसके सामने हाथ फैलाएगी?
चीन सरकार के रवैए को भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के इस बयान से भलीभांति समझा जा सकता है कि 'पिछले चार साल के तनाव से न तो भारत को कुछ हासिल हुआ और न ही चीन को ...।' चीन ने जिस तरह सीमा विवाद को हवा दी और गलवान में षड्यंत्रपूर्वक भारतीय सैनिकों पर हमला किया, उससे दोनों देशों के संबंधों में कड़वाहट आई। दोनों ओर से कई दौर की बातचीत के बावजूद संबंध मधुर नहीं हो पाए हैं, क्योंकि चीन चाहता ही नहीं कि संबंधों में मधुरता आए। यह उसकी रणनीति का हिस्सा है, जिसे 'सुन त्ज़ू' कहा जाता है। इसके तहत चीन अपने प्रतिद्वंद्वियों / शत्रुओं पर कई तरीकों से मनोवैज्ञानिक दबाव डालने की कोशिश करता है। वह खुद को बहुत शक्तिशाली की तरह पेश करते हुए यह भ्रम फैलाता है कि उसकी सेना अजेय है, उसके सामने कोई टिक नहीं सकता। वह अपनी कमजोरियां छिपाता है और दुष्प्रचार के जरिए प्रतिद्वंद्वियों / शत्रुओं पर धाक जमाने का दांव चलता है। भारत के साथ भी उसने यही करने की कोशिश की, लेकिन भारत सरकार ने 'चीनी गुब्बारे' की हवा निकाल दी। जब जून 2020 में गलवान घाटी में झड़प हुई तो चीन यह आशा कर रहा था कि भारत की ओर से बहुत नरम शब्दों वाला बयान आएगा, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था- 'देश को गर्व है, हमारे जवान मारते-मारते मरे हैं।' उसके बाद विभिन्न अवसरों पर भारत सरकार के रुख में सख्ती दिखाई दी। जब पीएलए के जवानों ने तवांग सेक्टर में घुसपैठ की कोशिश की तो भारतीय जवानों ने उनका खूब 'स्वागत-सत्कार' किया था, जिसके बाद वे उल्टे पांव लौटने को मजबूर हो गए थे। नत्थी वीजा मामले में भी भारत ने चीन को कड़ा जवाब दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अरुणाचल प्रदेश की हालिया यात्रा पर भी चीन ने आपत्ति की, जिसे दृढ़ता से खारिज करते हुए कहा गया कि यह राज्य हमेशा भारत का अभिन्न एवं अविभाज्य हिस्सा ‘था, है और रहेगा।’ चीन की गीदड़-भभकियों का इसी तरह जवाब देना चाहिए। वह अन्य देशों पर धौंस जमा सकता है। भारत के सामने उसकी दाल नहीं गलने वाली।