चीन द्वारा जारी की गई अरुणाचल प्रदेश के विभिन्न स्थानों के लिए कथित 30 और नामों की सूची यह दर्शाती है कि ड्रैगन विदेश नीति जैसे गंभीर विषय को हास्यास्पद बनाने को आमादा है। भारत ऐसी कथित सूचियों और नामों की बिल्कुल भी परवाह नहीं करता। ये चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उनकी 'मंडली' की मधुर कल्पनाओं के अलावा और कुछ नहीं हैं। चीन पहले भी ऐसी हरकतें करता रहा है, जिनका उद्देश्य भारत पर दबाव डालना और संबंधित इलाकों में रहने वाले लोगों को आतंकित करने की कोशिश करना था। शी जिनपिंग और उनकी 'मंडली' इस तथ्य से भलीभांति परिचित हैं कि ऐसी सूचियों का महत्त्व रद्दी से ज्यादा कुछ नहीं है। वे एक सूची जारी करें या करोड़ों सूचियां छपवाकर चीन के गली-मोहल्लों तक में चिपका दें, उससे धरातल पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। हां, ऐसी सूचियों से चीन की जग-हंसाई खूब हो रही है। पहले उसके नेताओं और प्रवक्ताओं की बातों को कुछ गंभीरता से सुना जाता था। अब उन पर चुटकुले व कार्टून बनाए जा रहे हैं। सोशल मीडिया पर लोग शी जिनपिंग को यह 'अनूठा' सुझाव दे रहे हैं कि वे बार-बार 'नामकरण' संबंधी सूचियां बनवाने, छपवाने में अपने संसाधन खर्च करने के बजाय पूरी धरती का ही नाम बदल दें। इससे उन्हें बार-बार इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ेगी! वास्तव में चीन की हालत उस शरारती बच्चे जैसी हो गई है, जो अपना खिलौना तो अपने पास रखना चाहता ही है। उसके अलावा आस-पास के सभी बच्चों के खिलौने भी छीनना चाहता है। चीन को सब देशों का सबकुछ अपनी मुट्ठी में चाहिए। इसलिए कभी वह एलएसी पर घुसपैठ के लिए अपने फौजी भेजता है तो कभी नामकरण की सूची जारी करता है!
वैसे चीन को पिछले चार-पांच वर्षों में यह बात अच्छी तरह से समझ में आ गई कि अब एलएसी पर घुसपैठ की कोशिश बहुत महंगी पड़ सकती है। पहले गलवान और उसके बाद तवांग सेक्टर में भारतीय सेना ने पीएलए के चॉकलेटी फौजियों की जिस तरह धुनाई की, उससे ड्रैगन की दुर्गति दुनिया के सामने आ चुकी है। खासकर तवांग सेक्टर की घटना के बाद तो पीएलए के कई फौजियों ने हफ्तों मरहम-पट्टी करवाकर पीड़ानाशक औषधियों का सेवन किया होगा। दुनिया कोरोना वायरस का 'सच' नहीं जान पाई, लेकिन शी जिनपिंग जान गए कि घुसपैठ की हरकतों में जोखिम बहुत बढ़ गया है। अगर एक-दो दर्जन चीनी फौजी परलोक सिधार गए तो जनता के सामने जवाब देना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए भलाई इसी में है कि चीनी कर्मचारी बीजिंग स्थित अपने एसी कक्ष में बैठकर खुराफातें करते रहें, 'नामकरण' सूचियां बनाते-बांटते रहें। कहीं जाना नहीं, किसी तरह का जोखिम नहीं। हर्र लगे न फिटकरी, रंग चोखा होय! ऐसी सूचियों को भारत हमेशा खारिज करता रहा है। निस्संदेह अरुणाचल प्रदेश हमारे देश का अभिन्न अंग है और चीन या किसी और द्वारा रचे गए काल्पनिक नामों से वास्तविकता में कोई बदलाव नहीं आएगा। अरुणाचल पर चीन की लंबे अरसे से कुदृष्टि है। जब भी प्रधानमंत्री, भारत सरकार के मंत्री, उच्चाधिकारी या दलाई लामा जैसे विख्यात आध्यात्मिक गुरु वहां का दौरा करते हैं तो बीजिंग की छाती पर सांप लोटने लगता है। उसके बाद चीन अनर्गल बयान जारी कर देता है, जिसे खारिज करने में भारत बिल्कुल भी समय नहीं लगाता। अरुणाचल में ऐसे दौरे जरूर होने चाहिएं, बल्कि उनकी संख्या में बढ़ोतरी होनी चाहिए। चीन इस बात को लेकर स्वतंत्र है कि वह पूरी दुनिया के सभी इलाकों के काल्पनिक नाम रखने के लिए समय और संसाधन खर्च करे। भारत उसकी इन हरकतों को कोई महत्त्व नहीं देता।