पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा ईद के अवसर पर एक सभा को संबोधित करते हुए सीएए, यूसीसी और एनआरसी के बारे में की गईं टिप्पणियां वास्तविकता से परे हैं। उनमें तथ्यों का अभाव है और विरोध के पीछे स्पष्ट वजह भी नहीं बताई गई। अगर किसी नीति या कानून का विरोध किया जाए - भले ही वह अस्तित्व में हो या न हो - तो उसके पीछे कोई ठोस वजह बतानी चाहिए। खासकर वरिष्ठ नेताओं और उन लोगों को, जो केंद्र और राज्य सरकारों में बड़े-बड़े पदों पर रहे हैं। जब सीएए लाने की बातें हो रही थीं तो राष्ट्रीय राजधानी में अप्रिय घटनाएं हुईं, जिनमें कई लोगों ने प्राण गंवाए थे। जबकि यह स्पष्ट था कि सीएए में किसी की नागरिकता छीनने का कोई प्रावधान नहीं है। यह तो नागरिकता देने का कानून है। जिसके पास पहले से भारत की नागरिकता है, उसका इससे कोई लेना-देना नहीं है। फिर भी कई नेताओं ने अफवाहें फैलाईं, लोगों को भड़काया। इससे क्या हासिल हुआ? देश का ही नुकसान हुआ। अब सीएए लागू हो चुका है। क्या किसी की नागरिकता गई? नेतागण जब सार्वजनिक रूप से कोई टीका-टिप्पणी करें तो वोटबैंक की राजनीति से ऊपर उठकर उन्हें देशहित के बारे में भी सोचना चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कहीं मेरे शब्दों से देश के सद्भाव पर तो कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा, देशहित पर तो कोई आंच नहीं आएगी, लोगों तक ग़लत सूचना तो नहीं जाएगी? सीएए की ज़रूरत क्यों पड़ी? यह जानने के लिए नेतागण को कम से कम एक बार उन हिंदू, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसियों से मिलना चाहिए, जिन्होंने अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से अपनी जान बचाकर भारत में शरण ली है। उनकी दास्तां सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
जहां तक यूसीसी और एनआरसी का सवाल है तो अब तक केंद्र सरकार ने इनके बारे में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की है। जब ऐसा कोई कानून ही नहीं बना तो लागू करने के विरोध का सवाल कहां से आ गया? हां, इनसे जुड़े मुद्दों पर चर्चा जरूर होनी चाहिए। उत्तराखंड ने इस ओर (यूसीसी) कदम बढ़ाया है। उसके अनुभवों का अध्ययन करना चाहिए। वास्तव में यूसीसी सामाजिक समानता और न्याय की दिशा में बड़ा कदम है। क्या हमें इसकी जरूरत नहीं है? इससे कानूनों का सरलीकरण हो जाएगा। परिणामस्वरूप विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने, भरण-पोषण आदि मामलों में महिलाओं को समान अधिकार मिलेंगे। क्या हमें इन सुधारों को नहीं अपनाना चाहिए? निस्संदेह ऐसे कानूनों का प्रभाव बहुत गहरा और व्यापक होता है, इसलिए देश-विदेश के अनुभवों का अध्ययन करने के बाद पूरी तैयारी के साथ ही इस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे 'विरोध के लिए विरोध' करने के बजाय इसे बेहतर बनाने के लिए सुझाव दें और रचनात्मक भूमिका निभाएं। आज देश में घुसपैठ भी एक बड़ी समस्या बन चुकी है। खासकर बांग्लादेश और म्यांमार से आकर काफी लोग अवैध रूप से देशभर में फैल चुके हैं। इनके कारण भविष्य में गंभीर चुनौतियां पैदा हो सकती हैं। आए दिन खबरें छपती हैं कि फलां शहर में अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशी पकड़े गए ... रोहिंग्या पाए गए! क्या हमें इस बात की इजाजत देनी चाहिए कि हमारे देश में कोई भी व्यक्ति बिना किसी नियम-कानून का पालन किए कभी भी और कहीं से भी दाखिल हो जाए और जहां तथा जब तक उसकी मर्जी हो, वह रहता रहे? इससे तो कानून व्यवस्था भंग हो जाएगी। हम अपने घरों में ऐसे किसी व्यक्ति को आने और रहने की इजाजत नहीं दे सकते, तो देश के मामले में किसी को इजाजत क्यों मिलनी चाहिए? देश में घुसपैठियों की पहचान करने और उन्हें स्वदेश रवाना करने को लेकर ठोस काम होना चाहिए। इसके लिए सभी दलों के बीच सहमति होनी जरूरी है। वोटबैंक नहीं, देशहित सर्वोच्च होना चाहिए।