भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने लोकसभा चुनाव के लिए जो 'संकल्प-पत्र' जारी किया है, वह लोगों में आशाएं तो जगाएगा ही, आलोचक भी उसका सख्ती से मूल्यांकन करेंगे। केंद्र में सत्तारूढ़ दल के चुनाव घोषणा-पत्र के संबंध में लोगों और आलोचकों का यह रुख स्वाभाविक है। इस चुनाव में जनता-जनार्दन किसे विजयश्री का वरदान देकर लोकसभा भेजेगी, यह तो 4 जून को पता चलेगा, लेकिन इतना तय है कि भाजपा के 'संकल्प-पत्र' को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच खूब शब्दबाण चलेंगे। बल्कि ये चलने शुरू हो गए हैं। इस समय भाजपा के पास 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत साल 2020 से लगातार मुफ्त राशन देने, 50 करोड़ से ज्यादा लोगों को पीएम-जनधन खातों के जरिए बैंकिंग प्रणाली से जोड़कर अर्थतंत्र की मुख्यधारा में शामिल करने, 34 लाख करोड़ रुपए डीबीटी के माध्यम से सीधे लाभार्थी परिवारों के बैंक खातों में भेजने, 34 करोड़ से ज्यादा लोगों को आयुष्मान भारत के अंतर्गत 5 लाख रुपए तक के मुफ्त इलाज की गारंटी देने, 4 करोड़ से ज्यादा परिवारों को पीएम आवास एवं अन्य योजनाओं के जरिए पक्के मकान देकर उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने, 14 करोड़ से ज्यादा परिवारों को जल जीवन मिशन के अंतर्गत नल से जल सुलभ कराने और 25 करोड़ से ज्यादा लोगों को गरीबी से बाहर निकालने जैसी 'उपलब्धियां' हैं, जिनका आम लोगों को काफी लाभ मिला है, लेकिन युवाओं में बेरोजगारी आज भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है। विपक्षी दल, खासतौर से कांग्रेस इसी मुद्दे को उठाकर भाजपा पर हमला बोल रही है। गरीबी उन्मूलन के लिए केवल कल्याणकारी योजनाएं चलाना पर्याप्त नहीं है। जब तक पर्याप्त संख्या में रोजगार के अवसरों का सृजन नहीं किया जाएगा, हालात नहीं बदलेंगे। बेरोजगारी और गरीबी का चक्र कालांतर में कई समस्याएं भी पैदा करता है।
राजनीतिक दल किन तरीकों से बेरोजगारी दूर करेंगे? बेहतर होगा कि वे अपनी जनसभाओं और प्रेसवार्ताओं में यह भी जनता को बताएं। कोरे भाषण देने और एक-दूसरे को आड़े हाथों लेने से बेरोजगारों का भला नहीं होगा। इस चुनाव में कुछ दल और उनके नेतागण बेरोजगारी दूर करने का सीधा-सा फॉर्मूला यह बता रहे हैं कि वे बड़ी तादाद में सरकारी नौकरियां दे देंगे! यह बात सुनने में तो बहुत भली लगती है कि लाखों-करोड़ों लोगों को सरकारी सेवा में ले लिया जाए। एक झटके में बेरोजगारी और गरीबी खत्म! लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या ऐसा फॉर्मूला धरातल पर लागू किया जा सकता है? क्या देश के पास इतना बजट है, जिससे ये वादे पूरे किए जा सकें? आज जिस तरह तकनीक का प्रभाव बढ़ता जा रहा है, उससे रोजगार का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। निस्संदेह देश का राज-काज चलाने के लिए सरकारी कर्मचारियों की जरूरत होती है, लेकिन बेरोजगारी दूर करने के लिए सरकारी नौकरियों पर ही जोर देना इस समस्या का ठोस समाधान प्रस्तुत नहीं कर सकता। दुनिया में सर्वाधिक संपन्न देश भी अपने सभी युवाओं को सरकारी नौकरी नहीं दे सकते। अगर बेरोजगारी दूर करनी है तो निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना बहुत जरूरी है। बच्चों को केवल किताबी ज्ञान न दिया जाए। उन्हें 'अच्छा व ईमानदार नागरिक बनने' और 'रोजगार संबंधी कौशल सीखने' के लिए प्रोत्साहित किया जाए। आज स्थिति यह है कि विद्यार्थियों को स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रतियोगी परीक्षाएं उत्तीर्ण करने के लिए अलग से तैयारी करनी पड़ती है। वहां एक-एक पद के लिए सैकड़ों उम्मीदवार मुकाबला कर रहे होते हैं। इससे कितने लोगों को रोजगार मिलेगा? इस व्यवस्था में सुधार होना चाहिए। हर युवा को रोजगार मिले, इसके लिए निजी क्षेत्र की शक्ति व सामर्थ्य का सदुपयोग किया जाए। निस्संदेह देश के लिए सैनिक, किसान, शिक्षक, चिकित्सक आदि बहुत जरूरी हैं। इसी तरह व्यवसायी का होना भी बहुत जरूरी है। वह एक ओर तो रोजगार के अवसरों का सृजन करता है। दूसरी ओर देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत भी करता है। युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित करना वक्त की ज़रूरत है। राजनीतिक दलों को इस मुद्दे पर बात करनी चाहिए।