अमेरिका के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध शिक्षाविद् डॉ. अनुराग मैराल ने सत्य कहा है कि पश्चिमी मीडिया भारत की प्रगति को समझ नहीं पा रहा है और उससे दूर बैठकर अलग कहानी लिख रहा है, जिसकी कोई विश्वसनीयता नहीं है। वास्तव में अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के मीडिया का एक बड़ा तबका ऐसा है, जो भारत को लेकर कई तरह के पूर्वाग्रहों से ग्रस्त है। वह जान-बूझकर भारत की ऐसी छवि दिखाता है, जिससे लोगों में भ्रांतियां फैलें। अगर उसे भारत की प्रगति से संबंधित कोई खबर दिखानी ही पड़े, तो इस तरह दिखाएगा, जिससे उसका महत्त्व घटाया जा सके। जब भारत ने चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण किया तो पश्चिमी मीडिया ने इस खबर को यह कहते हुए दिखाया कि प्रक्षेपण तो हो गया, लेकिन इस देश के पास वैसी विशेषज्ञता नहीं है, जैसी अमेरिका के पास है। जब चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग हो गई तो वही मीडिया यह कहने लगा कि ऐसे मिशन की कोई जरूरत नहीं थी ... भारत को इस पर लगने वाला धन अन्य क्षेत्रों पर खर्च करना चाहिए था! सोशल मीडिया आने के बाद पश्चिमी देशों के लोग भारत को बेहतर ढंग से समझने लगे हैं। उससे पहले ज्यादातर लोग यह मानते थे कि 'भारत ऐसा देश है, जहां गली-गली में हाथी घूमते हैं ... लोगों के पास भोजन नहीं है ... वे बैलगाड़ी से सफर करते हैं ... तकनीक से उनका दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है ...!' जबकि वास्तविकता यह है कि आज भारत की हर गली में महंगी गाड़ियां देखने को मिल जाएंगी ... अगर भारत चावल, गेहूं और खानपान से संबंधित चीज़ों का निर्यात बंद कर दे तो कई देशों में हाहाकार मच जाए ... दुनिया में सबसे ज्यादा और सबसे स्वादिष्ट पकवान भारत में मिलेंगे ... भारत के हवाईअड्डों और रेलवे स्टेशनों पर हमेशा रौनक छाई रहती है ... रही बात तकनीक की, तो भारत डिजिटल पेमेंट के क्षेत्र में हर साल नया रिकॉर्ड बना रहा है ... इस देश में नौजवान से लेकर बुजुर्ग तक, हर कोई ईवीएम का बटन दबाकर मतदान करता है!
भारत की बहुत बड़ी शक्ति है- इसका अध्यात्म। अगर अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस जैसे देशों को किसी आयोजन के लिए पांच-दस लाख लोग इकट्ठे करने हों तो उसके प्रचार-प्रसार पर करोड़ों डॉलर खर्च करने पड़ेंगे। घर-घर जाकर बताना होगा कि आपको वहां आना है। भारत में इससे ज्यादा लोग तो हर हफ्ते खाटू श्यामजी, सालासर बालाजी, वैष्णो देवी के दर्शन करने आ जाते हैं। उन्हें बुलाने के लिए ऐसा खर्चीला प्रचार-प्रसार भी नहीं करना पड़ता। वे अपने आराध्य के प्रेम से ही चले आते हैं। श्रीराम मंदिर की शोभा पूरी दुनिया देख रही है, जहां हर दिन लाखों लोग भगवान के दर्शन करने और अयोध्या को निहारने आ रहे हैं। कुंभ मेलों की तो बात ही क्या, जहां हर घंटे इतने लोग नदी में स्नान के लिए डुबकी लगाते हैं, जितनी यूरोप के कई देशों की जनसंख्या है! वहां कई देशों के महानगरों का जितना पुराना इतिहास है, उससे ज्यादा पुराने कुएं-बावड़ी भारत के छोटे-छोटे गांवों में मिल जाएंगे। हां, यह एक कड़वी हकीकत है कि हमने उनका संरक्षण करने में उतनी गंभीरता नहीं दिखाई, जितनी दिखानी चाहिए थी। इस तरह हम पर्यटन को अपनी शक्ति व सामर्थ्य के अनुसार बढ़ावा नहीं दे सके। यूरोप में दूसरे विश्वयुद्ध के ज़माने की इमारत को भी इस तरह पेश किया जाता है, गोया इससे पहले दुनिया में किसी को इमारतें बनानी ही नहीं आती थीं, जबकि भारत में सदियों पुराने किले (जिनमें से कई खंडहर हो चुके हैं) आज भी सीना तानकर शान से खड़े हैं। पश्चिम के लोगों को ये बातें तब पता चलती हैं, जब वे भारत आकर अपनी आंखों से देख लेते हैं। तब उन्हें मालूम होता है कि उनका मीडिया भारत के बारे में अब तक कितना झूठ परोसता रहा है! झूठ के इस पर्दे को हटाने के लिए जरूरी है कि जो भी विदेशी पर्यटक भारत आए, उसके साथ हमारा व्यवहार ऐसा हो, जिससे वह मधुर यादें लेकर अपने देश जाए और सबसे कहे- 'भारत जैसा सुंदर व अद्भुत देश कोई नहीं!'