रामराज्य की प्रासंगिकता

भगवान श्रीराम के अयोध्या स्थित मंदिर में विधिपूर्वक विराजमान होने के बाद हमें 'रामराज्य' की ओर कदम बढ़ाना चाहिए

हमने इतिहास के एक कालखंड में भगवान के आदर्शों को भूलने का अपराध किया

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 'रामराज्य' के बारे में जो बयान दिया है, उससे कई भ्रम दूर हो जाने चाहिएं। उन्होंने उचित ही कहा कि 'रामराज्य' का आशय किसी 'थियोक्रेटिक स्टेट' से नहीं है, बल्कि जनसामान्य के अंदर एक जिम्मेदारी की भावना या कर्तव्य बोध का संचार करने से है। दुर्भाग्य की बात है कि भारत में दशकों से 'रामराज्य' और 'राम-मंदिर' के बारे में कई गलत बातें फैलाई गईं। उन लोगों को बहुत बड़ा बुद्धिजीवी माना गया, जो कहते थे- 'राम-मंदिर बन जाने से क्या होगा? क्या इससे लोगों को रोजगार मिल जाएगा? क्या राम-मंदिर से लोगों के घरों में रोटियां पहुंच जाएंगी? क्या मंदिर बन जाने से देश की अर्थव्यवस्था में सुधार आ जाएगा?' उनका पूरा जोर इस बात पर था कि लोगों की आस्था पर चोट करते हुए खुद को ऐसे पेश करें, गोया उनसे बड़ा ज्ञानी धरती पर न तो कोई आया और न कभी आएगा! सदियों के संघर्ष के बाद राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ। देश की सबसे बड़ी अदालत ने इसके लिए आदेश दिया। अयोध्या स्थित इस मंदिर में भगवान श्रीराम की प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा हुए लगभग चार महीने ही हुए हैं। इस अवधि में अब तक करोड़ों लोगों ने वहां जाकर भगवान के दर्शन कर लिए। करोड़ों ही लोग अयोध्या जाने की योजना बना रहे हैं। क्या इससे लोगों को रोजगार नहीं मिला है? क्या लोगों के घरों तक रोटियां नहीं पहुंच रही हैं? क्या इससे अर्थव्यवस्था को ऊर्जा नहीं मिल रही है? भगवान श्रीराम भारत की आत्मा हैं। अगर उनकी उपेक्षा करेंगे तो सबकुछ निष्प्राण हो जाएगा। भारतीय समाज को पश्चिमी चश्मे से देखते हुए यहां 'आयातित' सामाजिक और आर्थिक सिद्धांत हूबहू लागू करेंगे तो कई गंभीर समस्याएं पैदा होंगी।

भगवान श्रीराम के अयोध्या स्थित मंदिर में विधिपूर्वक विराजमान होने के बाद हमें 'रामराज्य' की ओर कदम बढ़ाना चाहिए। हमने 23 जनवरी के अंक में यहीं लिखा था कि अब 'रामराज्य' आए। लेकिन कैसे? कई लोगों के मन में यह गलत धारणा है कि 'रामराज्य किसी एक समुदाय के हितों की बात करता है, जिसमें सामाजिक-वैज्ञानिक प्रगति के लिए कोई जगह नहीं हो सकती!' जबकि प्रभु श्रीराम ने लोककल्याण पर बहुत ज्यादा जोर दिया था, जिसमें सभी समुदायों के हितों की रक्षा सुनिश्चित की गई थी। रामचरितमानस में ऐसे अनेक प्रसंग मिलते हैं, जिनसे पता चलता है कि श्रीराम ने तत्कालीन समाज में व्याप्त कई तरह के भेदभाव व कुरीतियों को हटाते हुए समानता की स्थापना का पक्ष लिया था। उन्होंने माता शबरी के बेर खाकर उन्हें भी अमर कर दिया! हमने इतिहास के एक कालखंड में भगवान के उन आदर्शों को भूलने का अपराध किया, जिससे समाज कमजोर हुआ और कई तरह की समस्याएं पैदा हुईं। कालांतर में विदेशी आक्रांता यहां आए। उन्होंने हमारी कमजोरियों का फायदा उठाया। आज जब 'रामराज्य' की स्थापना की बात की जाती है तो इसका एक अर्थ यह भी है कि उसमें सामाजिक समानता पर विशेष जोर रहेगा। पंथ, जाति, भाषा, प्रांत आदि के नाम पर किसी के साथ भेदभाव नहीं होगा। आज रामराज्य का संकल्प लिया जाता है तो इसका अर्थ है- जनता का हर दृष्टि से कल्याण सुनिश्चित करना। सरकारी तंत्र में किसी तरह की सुस्ती और विकार के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। हर हाथ को काम मिलना चाहिए। हर पेट को स्वाभिमान के साथ रोटी मिलनी चाहिए। रामराज्य का अर्थ यह भी है कि देश में गुप्तचर व्यवस्था सुदृढ़ होनी चाहिए। जमाखोरी, कालाबाजारी, रिश्वतखोरी, नकली मुद्रा के प्रसार, अपराध, कट्टरपंथ और आतंकवाद फैलाने वाले तत्त्वों से खूब सख्ती के साथ  निपटा जाए। न्याय समय पर मिलना चाहिए। उससे जनसामान्य का विश्वास और मजबूत होना चाहिए।

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