पहाड़ी इलाकों में उपयोग के बाद छोड़ा गया प्लास्टिक पर्यावरण के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिला प्रशासन ने पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए केदारनाथ धाम को प्लास्टिक-मुक्त बनाने की जो मुहिम शुरू की है, उससे सबको प्रेरणा लेनी चाहिए। प्रशासन ने यात्रा के मार्ग पर प्लास्टिक की बोतलें इकट्ठी करने के लिए दो वेंडिंग मशीनें लगा दीं और यात्रियों को बोतलें जमा कराने पर आर्थिक प्रोत्साहन देना शुरू कर दिया। इसके तहत यात्री क्यूआर कोड युक्त प्लास्टिक बोतल जमा करवाकर 10 रुपए वापस प्राप्त कर सकते हैं। यह राशि डिजिटल माध्यम से बैंक खाते में भेज दी जाती है। इस तरह डिजिटल पेमेंट को भी बढ़ावा मिल रहा है। देश में कई समस्याओं का समाधान इसी तरह रचनात्मक ढंग से किया जा सकता है। कुछ समस्याएं तो ऐसी हैं, जिनका समाधान करने के लिए सरकारों ने दंडात्मक प्रावधान लागू किए, लेकिन नतीजा 'ढाक के तीन पात' जैसा ही रहा। नियम-कानूनों का उद्देश्य एक आदर्श समाज का निर्माण करना भी होना चाहिए। बेशक जो व्यक्ति जानबूझकर बार-बार नियम तोड़े, देश को नुकसान पहुंचाए, अपनी और दूसरों की जान जोखिम में डाले, उसके साथ सख्ती बरतनी ही होगी, लेकिन जो व्यक्ति नियमों का पालन करे, जिसकी मंशा किसी को नुकसान पहुंचाने की न हो, जो देश के उत्थान में योगदान देना चाहे, उसे प्रोत्साहन मिलना ही चाहिए। यह अपने नागरिकों में किया गया एक तरह का निवेश है, जो कई तरह के फायदों के रूप में लौटकर जरूर आएगा।
उदाहरण के लिए, जो व्यक्ति यातायात के नियमों का पालन करे, बिजली-पानी आदि के बिल समय पर जमा कराए, जो टिकट लेकर ट्रेनों-बसों में यात्रा करे, जो आपराधिक गतिविधियों से दूर रहे, जो आयकर समेत सभी कर ईमानदारी से चुकाए, जो डिजिटल पेमेंट को प्राथमिकता दे, जो स्वच्छता को बढ़ावा दे, उसे और उसके परिवार को सरकार की ओर से प्रोत्साहन जरूर मिलना चाहिए। उसे कई तरह के शुल्क में रियायत मिले, बैंक व डाकघर में जमा पर ज्यादा ब्याज मिले। अगर वह ऋण ले तो उसमें छूट मिले। उसे रसोई गैस, पेट्रोल-डीजल की कीमतों में रियायत दी जाए। उसके बच्चों को भी सरकारी नौकरी में कुछ सहूलियत मिले। जब लोगों को यह लगेगा कि नियमों का पालन करना किसी बाध्यता का नाम नहीं है, बल्कि इसके ढेरों फायदे हैं, तो वे खुद आगे बढ़कर नियमों का पालन करेंगे। इन दिनों वायु प्रदूषण को लेकर दुनियाभर के विशेषज्ञ चिंतित हैं। पौधे लगाने पर जोर दिया जा रहा है। हर कोई जानता है कि आज के पौधे भविष्य में पेड़ बनकर वायु को निर्मल बनाएंगे, लेकिन कितने लोग पौधे लगाते हैं और उनमें से कितने हैं, जो लगाए गए पौधों की संभाल करते हैं? इसका रचनात्मक समाधान यह हो सकता है कि पौधे लगाने को विद्यार्थियों की अंकतालिका से जोड़ दिया जाए। जो विद्यार्थी अपने स्कूल के प्रांगण या घर में खाली जगह पर कम से कम दो छायादार/फलदार पौधे लगाए, उन्हें समय-समय पर खाद-पानी दे और उनका पूरा ध्यान रखे तो उसे अंकों में लाभ मिलना चाहिए। ऐसे पौधों का निरीक्षण किया जाए। कृषि वैज्ञानिक और प्रशासनिक अधिकारी भी वहां जाएं। वे अपने सुझाव दें। वे पौधों और विद्यार्थियों के साथ सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करें। ऐसी तस्वीरों का रिकॉर्ड रखा जाए। उनकी एक वेबसाइट बनाकर विद्यार्थियों के प्रयासों और पौधे लगाने के अनुभवों को साझा किया जाए। आप देखेंगे कि इस प्रयास से एक दशक में ही देश बहुत हरा-भरा हो जाएगा। बस, लोगों को प्रोत्साहन देने और आधुनिक तकनीक का रचनात्मक ढंग से उपयोग करने की जरूरत है। सरकारों को इस दिशा में कदम उठाना चाहिए।