प्राचीन काल के युद्धों और रणनीतियों पर आधारित भारतीय सेना का 'प्रोजेक्ट उद्भव' देश की सैन्य क्षमताओं को बेहतर बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। हमें अपने इतिहास से सीखना चाहिए, उसके अनुभवों का उपयोग करना चाहिए। हमें ब्रिटिश साम्राज्यवाद के दौर में जो इतिहास पढ़ाना शुरू किया गया, उसमें साजिशन बार-बार इस बात पर जोर दिया गया कि विदेशी आक्रांता बड़े बहादुर थे और युद्धकला से संबंधित हमारा कोई इतिहास ही नहीं है! जबकि यह सरासर झूठ है। रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथों में युद्ध, उसके उद्देश्यों, घोषणाओं, तरीकों आदि के बारे में बहुत विस्तार से वर्णन मिलता है। 'चक्रव्यूह' जैसी रणनीति के बारे में अध्ययन करें तो पता चलता है कि इसकी रचना करने वाले कितने बड़े योद्धा थे! हनुमानजी का आकाश मार्ग से जाना, लंका-दहन करना ... इन सब घटनाओं पर काफी अनुचित टीका-टिप्पणियां की गईं, लेकिन यह एयर स्ट्राइक का शानदार उदाहरण था। महान उद्देश्य के लिए जाने वाले गुप्तचर के सामने कैसी बाधाएं आती हैं, शत्रु के क्षेत्र में कैसे प्रवेश करना चाहिए, अगर वहां कार्रवाई करने की जरूरत पड़ जाए तो कैसे करनी चाहिए, वहां सज्जन और दुर्जन के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए ... यह सब जानना हो तो सुंदरकांड पढ़ना चाहिए। वहां इन सभी सवालों के जवाब हनुमानजी से मिल जाएंगे। शासक वर्ग को किस तरह सावधान रहना चाहिए, अगर शत्रु अचानक मधुर व्यवहार करने लग जाए तो उससे क्या समझना चाहिए, संकट टालने में गुप्तचरों की क्या भूमिका होती है ... यह जानना हो तो महाभारत में वर्णित लाक्षागृह प्रकरण जरूर पढ़ना चाहिए।
आज पाकिस्तान, अमेरिका, चीन समेत कई देशों की खुफिया एजेंसियां हनीट्रैप के जरिए दूसरों के राज़ हासिल करने की कोशिशें कर रही हैं। पिछले दो-ढाई वर्षों से सोशल मीडिया पर इसकी काफी चर्चा हो रही है। प्राय: लोगों को लगता है कि यह जासूसी करने का कोई नया तरीका है, लेकिन ऐसी बात नहीं है। हमारे ग्रंथों में इसका स्पष्ट वर्णन मिलता है। 'मायावी' शक्तियों द्वारा रूप बदलने, किसी को रिझाने, लुभाने, धोखे में डालने जैसे कार्य प्राचीन काल में भी होते थे। इनसे बचने के लिए दृष्टि पर नियंत्रण, मन पर नियंत्रण जैसी कई सावधानियों और शिक्षाओं का उल्लेख हमारे ग्रंथों में मिलता है। सुरक्षा बलों और अस्त्र-शस्त्र के अनुसंधान से जुड़े कर्मचारियों-अधिकारियों को उनके बारे में कुछ जानकारी जरूर होनी चाहिए, ताकि वे शत्रु देशों के जाल में कभी न फंसें। हमें अपने इतिहास से अनभिज्ञ नहीं रहना चाहिए। उसके जो अध्याय हमारे पराक्रम, शौर्य और विजय की गाथा गाते हैं, उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। इसके साथ ही उन अध्यायों से सबक लेने से पीछे नहीं रहना चाहिए, जो हमारी कमियां और गलतियां बताते हैं। यह एक कड़वी हकीकत है कि इतने महान योद्धाओं का देश होने के बावजूद हम पर ऐसे-ऐसे विदेशी आक्रांताओं ने शासन किया, जिनकी हैसियत मामूली लुटेरों से ज्यादा कुछ नहीं थी। हमने आक्रांताओं को शिकस्त देकर उन्हें माफ भी किया, लेकिन जब उनका दांव लगा तो उन्होंने हम पर जुल्म-ज्यादती करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। आक्रांताओं ने हमारे वैभव को तो चोट पहुंचाई ही, वे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने से भी पीछे नहीं रहे थे। हमारे पूर्वजों की आंखों के सामने काबुल और कंधार हमसे 'दूर' चले गए। लाहौर, कराची, पेशावर जैसे शहरों का हमसे छिन जाना कल की बात है। जिन हिंगलाज और ढाकेश्वरी माता के दर्शन के लिए हमारे दादा-परदादा बेरोक-टोक जा सकते थे, आज वहां जाने के लिए हमें वीजा-पासपोर्ट की जरूरत पड़ती है। जिस शारदा पीठ में मां सरस्वती की वंदना के लिए मधुर मंत्र गूंजते थे, आज वहां (पीओके) खूंखार आतंकवादी दनदना रहे हैं। यह 'बदलाव' रातोंरात नहीं आया है। हमें इसके कारणों का पता लगाना चाहिए। प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए। 'सच्चा' इतिहास जानना चाहिए। हमें ऐसे कदम उठाने चाहिएं, जिनसे देश को सुरक्षित व अखंड रखते हुए वह सब हासिल करें, जो किसी कालखंड में हमने गंवा दिया था।