पाकिस्तान के पूर्व मंत्री फवाद हुसैन चौधरी द्वारा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का उल्लेख करते हुए की गई टिप्पणी भारत के लोकसभा चुनावों में हस्तक्षेप की ऐसी कोशिश है, जिसे बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करना चाहिए। उसके जवाब में केजरीवाल की टिप्पणी उचित और संतुलित थी। हालांकि अगर केजरीवाल उस टिप्पणी का जवाब नहीं देते तो भाजपा को उन पर हमला करने का एक मौका और मिल जाता। फवाद हुसैन जब सत्ता में भागीदार थे तो उन्होंने भारत के विरोध में कई जहरीले बयान दिए थे। उन्होंने संसद में स्वीकार किया था कि पुलवामा हमले के पीछे उनके देश का हाथ था। हालांकि बाद में वे अपने बयान से पलट गए थे। अब, जबकि भारत में चुनाव हो रहे हैं तो फवाद को शांति और सद्भाव बहुत अच्छे लगने लगे हैं। वे 'नफरत' और 'कट्टरपंथी ताकतों' को हराने का आह्वान कर रहे हैं! फवाद भूल गए हैं कि भारत ने तो हमेशा ही शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने की कोशिशें की हैं, जबकि उनके देश ने दहशत और धमाकों से दुश्मनी पैदा करने और उसे सींचने का काम किया है। आज फवाद को भारत में चुनावों की बड़ी फिक्र हो रही है! वे खुद को शांति के दूत की तरह पेश कर रहे हैं। बेहतर होता कि फवाद अपने देश में भी शांति की स्थापना की कुछ कोशिश करते। वहां ऐसी शक्तियों को प्रोत्साहित करते, जो सद्भाव को बढ़ावा दें। पाकिस्तानियों के साथ एक बहुत बड़ी समस्या है, जिसकी हमें जानकारी होनी चाहिए। वहां नेताओं, सैन्य अधिकारियों से लेकर आम जनता तक को 'सेकुलरिज्म' की बड़ी फिक्र रहती है। बस, शर्त यह है कि वह 'सेकुलरिज्म' किसी अन्य देश में हो, पाकिस्तान में न हो।
ये टीवी चैनलों की बहसों में, सोशल मीडिया पर चर्चा में बहुत फर्राटेदार उपदेश देते हुए कहते हैं कि 'अमेरिका में 'सेकुलरिज्म' कमजोर हो रहा है, ब्रिटेन में 'सेकुलरिज्म' कमजोर हो रहा है, भारत में भी 'सेकुलरिज्म' कमजोर हो रहा है ...!' इनसे कोई कहे कि 'अगर पूरी दुनिया में 'सेकुलरिज्म' कमजोर हो रहा है तो आप अपने देश पाकिस्तान को 'सेकुलर' घोषित कर एक मिसाल कायम क्यों नहीं कर देते?' तो ये तुरंत बगलें झांकने लगते हैं और कहते हैं- 'नहीं, नहीं, नहीं ... हम ऐसा नहीं कर सकते।' पाकिस्तानी खुद कट्टर और हिंसक बने रहना चाहते हैं, लेकिन दुनिया के अन्य देशों में इन्हें सद्भाव चाहिए, सेकुलरिज्म चाहिए। ये अपने देश में भेदभाव जारी रखना चाहते हैं, लेकिन अन्य देशों में इन्हें समानता और विशेषाधिकार चाहिएं। ये पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को सुकून की सांस लेने की भी इजाजत नहीं देते, लेकिन अन्य देशों में इन्हें नरम रवैए वाली सरकारें चाहिएं। ये पाकिस्तान में ईशनिंदा के नाम पर अल्पसंख्यकों के मोहल्ले फूंक देते हैं, लेकिन खुद के लिए यह ख्वाहिश रखते हैं कि दुनिया के जिस देश में भी जाएं, वहां की सरकारें फूलों के हार पहनाकर इनका स्वागत करें और अपनी आस्था व संस्कृति पर अभद्र टीका-टिप्पणियां करने की भरपूर आज़ादी भी दें। जब से सोशल मीडिया आया है, पाकिस्तान में एक ऐसी मंडली उभरकर सामने आ गई है, जो खुद को शांति की पैरोकार बताती है। कोई पहली बार इनके आलेख पढ़े या वीडियो देख ले तो भ्रम का शिकार हो जाए कि इतने बड़े 'शांतिप्रेमी' के बारे में मुझे अब तक पता क्यों न चला! लेकिन इनके पुराने वीडियो और सोशल मीडिया पोस्ट देखकर यह भ्रम ताश के महल की तरह धराशायी हो जाता है। इनमें से ज्यादातर लोग वे हैं, जो अतीत में सनातन धर्म, परंपराओं, हमारे देवी-देवताओं और मान्यताओं पर घोर आपत्तिजनक टिप्पणियां करते थे। जब कभी भारतीय सुरक्षा बल पाकिस्तानी आतंकवादियों का संहार करते थे तो ये उन्हें कोसते थे। ये आतंकवादियों को अपना हीरो मानते हुए पोस्ट करते थे। अब सोशल मीडिया पर 'कमाई' के रास्ते खुल गए हैं तो ये 'शांतिप्रेमी' बन गए। फवाद हुसैन भी इसी श्रेणी के 'शांतिप्रेमी' हैं। भविष्य में ऐसे और 'शांतिप्रेमी' प्रकट होंगे, जिनके मायाजाल से हमें सावधान रहना है। अगर किसी पाकिस्तानी नेता, अफसर, पत्रकार और कार्यकर्ता को 'सद्भाव' एवं 'सेकुलरिज्म' की इतनी ज्यादा परवाह है तो इन्हें पहले अपने मोहल्ले में लागू करके दिखाएं।