बिहार में साल 2016 में शराब पर लगाए गए प्रतिबंध के परिणामों के संबंध में ‘द लांसेट रीजनल हेल्थ साउथ-ईस्ट एशिया जर्नल’ में प्रकाशित नए अध्ययन के निष्कर्ष उम्मीद जगाने वाले हैं। शराब जैसी बुराई को रोकने के प्रयास सख्ती से किए जाएं तो लंबी अवधि में जनता को उनके लाभ मिलते ही हैं। लांसेट का यह अध्ययन भी इन शब्दों में इसकी पुष्टि करता है- 'बिहार में साल 2016 में शराब पर लगाए गए प्रतिबंध से रोज और साप्ताहिक रूप से शराब पीने के मामलों में 24 लाख की कमी दर्ज की गई और अंतरंग साथी द्वारा हिंसा के मामलों में 21 लाख की कमी आई है।' शराब एक ऐसी बुराई है, जो अनेक बुराइयों को जन्म देती है। जो व्यक्ति इसका सेवन करता है, उसके स्वास्थ्य और धन को नुकसान पहुंचाती है। ऐसे परिवारों में कलह का माहौल होता है, जिससे महिलाएं और बच्चे बुरी तरह प्रभावित होते हैं। शराब की बोतलों ने कई परिवारों को उजाड़ दिया। आश्चर्य होता है कि इस बुराई को बढ़ावा देने वाले कई गीत आज भी बहुत चाव से सुने जाते हैं, ब्याह-शादी और खुशी के मौकों पर परिवार के परिवार इन पर थिरकते हैं! ऐसे गीतों के लिए खास फरमाइश की जाती है। 'आधुनिक' पार्टियों में शराब के सेवन से दूर रहने वाले व्यक्ति को ऐसे देखा जाता है, गोया वह किसी अन्य ग्रह से आया हो। लोगों ने शराब के पक्ष में कई कुतर्क गढ़ रखे हैं, जिनका वे जोर-शोर से हवाला देते हैं। उनका किसी वैज्ञानिक अध्ययन से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं होता, लेकिन बहुत लोग उन पर विश्वास करते हैं और खुद को झूठी दिलासा देते हैं।
लांसेट के अध्ययन की ये पंक्तियां सरकारों को शराब पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक पुख्ता आधार दे सकती हैं- 'प्रतिबंध के बाद ...प्रवृत्ति बदल गई और बिहार में कम से कम साप्ताहिक रूप से शराब के सेवन में 7.8 प्रतिशत तक की गिरावट आई, जबकि पड़ोसी राज्यों में यह बढ़कर 10.4 प्रतिशत हो गई। ... बिहार में महिलाओं के खिलाफ शारीरिक हिंसा में कमी के सबूत भी मिले और भावनात्मक हिंसा में 4.6 प्रतिशत अंकों की गिरावट और यौन हिंसा में 3.6 प्रतिशत अंकों की गिरावट दर्ज की गई।’ प्राय: शराब पर प्रतिबंध की बातें तो खूब होती हैं, लेकिन सरकारें इस दिशा में कम ही इच्छाशक्ति दिखा पाती हैं। अगर शराबबंदी लागू कर भी दें तो इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि लोग तुरंत नशे से दूर हो जाएंगे। यह एक लंबी लड़ाई है, जिसे कई स्तरों पर लड़ना होगा। अतीत में ऐसा देखा गया है कि शराब पर प्रतिबंध के बाद तस्करी के मामले बढ़ गए। लोग सीमावर्ती राज्य में जाकर शराब पीने लगे। अगर सरकार ने उन राज्यों से लगती सीमाओं की कड़ी निगरानी शुरू कर दी तो अपने यहां शराब माफिया पनपने लगा, कच्ची शराब की भट्टियां लग गईं। यह शराब चोरी-छिपे और काफी ऊंची कीमत पर पहुंचाई जाने लगी। इस बीच कुछ भ्रष्ट अधिकारी भी जमकर चांदी कूटते हैं। अगर जहरीली शराब बन गई तो एक ही दिन में दर्जनों लोग काल के ग्रास बन जाते हैं। उसका ठीकरा भी सरकार के सिर फोड़ा जाता है। अगर सरकार ऐसी भट्टियों पर सख्ती करना शुरू कर दे और शराब मिलना लगभग असंभव हो जाए तो लोग नशे के दूसरे विकल्प अपनाने लगते हैं। सरकार कहां तक रोकेगी? शराब हो या कोई अन्य मादक पदार्थ, उस पर प्रतिबंध लगाने का स्वागत होना चाहिए, लेकिन जब तक लोग इच्छाशक्ति नहीं दिखाएंगे, खुद को ऐसे पदार्थों से दूर नहीं करेंगे, सरकारों के प्रयास अधिक कारगर नहीं होंगे। शराब, गांजा, भांग, तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट, गुटखा ... समेत तमाम नशीले पदार्थ नुकसान ही करते हैं। लोगों, खासकर किशोरों और युवाओं को इनसे दूर रहने का संकल्प लेना चाहिए।