देश के कई इलाकों में भीषण गर्मी से लोग बेहाल हैं। हर दिन यह पढ़ने-सुनने को मिल रहा है कि पारा चढ़ता ही जा रहा है, तापमान ने नया रिकॉर्ड बना दिया है। हर कोई कह रहा है कि ऐसी गर्मी पहले कभी महसूस नहीं की। रोजाना ही कहीं-न-कहीं आग लग रही है, जिससे बड़ा नुकसान हो रहा है। एसी-कूलर और शीतल पेय की मांग बढ़ गई है। इनकी दुकानों पर भीड़ उमड़ रही है। अगर एक-डेढ़ दशक पहले इससे आधी भीड़ नर्सरी में उमड़ती तो हालात ऐसे नहीं होते। वैज्ञानिक कई वर्षों से कह रहे हैं कि धरती का तापमान बढ़ रहा है। अधिक गर्म दुनिया हमारे लिए अधिक समस्याएं पैदा करेगी, लेकिन कितने लोग इन बातों को गंभीरता से लेते हैं और उनमें से कितने इन पर अमल करते हैं? प्राय: यह माना जाता है कि पर्यावरण की सुरक्षा जैसे काम सिर्फ सरकार के होते हैं, लेकिन आश्चर्य की बात है कि चुनावों में न तो राजनीतिक दल इस मुद्दे को गंभीरता से उठाते हैं और न ही मतदाता अब तक हासिल की गईं उपलब्धियों के बारे में उनसे पूछते हैं! ऐसे में पर्यावरण का मुद्दा तापमान के नए रिकॉर्ड तक ही सीमित रह जाता है। 'विकास' के मुद्दे की चर्चा हो रही है, होनी चाहिए, लेकिन 'विकास' कैसा हो, इसकी चर्चा कम हो रही है। गगनचुंबी इमारतें, चौड़ी सड़कें, रात को भी दिन का आभास कराती कृत्रिम रोशनी, महंगी गाड़ियां ... ये विकास के सिर्फ एक पहलू को दिखाती हैं। दूसरा पहलू कहीं गायब-सा हो गया है। 'विकास' की इस भाग-दौड़ में हमने कितने छायादार या फलदार पौधे लगाए? गांवों-शहरों में सड़कों का जाल बिछाने के साथ ही वर्षाजल के रिसाव के लिए कितनी जगह छोड़ी गई? जिस तरह देश की आबादी बढ़ रही है, उसके लिए स्वच्छ हवा, निर्मल जल की उपलब्धता के कितने प्रबंध किए गए?
‘सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरन्मेंट’ (सीएसई) की नई रिपोर्ट में यह बात स्वीकारी गई है कि कंक्रीटीकरण और आर्द्रता का स्तर बढ़ने से भारत के महानगरों में गर्मी बढ़ रही है। एक दशक पहले की तरह रात का मौसम ठंडा नहीं हो रहा है। होगा भी कैसे, इस अवधि में पर्यावरण को नुकसान जो पहुंचाया गया है। दो दशक पहले गर्मियों के मौसम में कस्बों और गांवों में लोग रात को छतों पर सुकून से सोते थे। आसमान में तारे साफ नजर आते थे। अब हालात बदल गए हैं। रातें काफी गर्म हो गई हैं। विशेषज्ञों का यह कहना सत्य है कि गर्म रातें दोपहर के चरम तापमान जितनी ही खतरनाक होती हैं। अगर रातभर तापमान अधिक रहता है तो लोगों को दिन की गर्मी से उबरने का मौका कम मिलता है। अत्यधिक गर्म मौसम लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। वाटरलू विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पर्यावरण और मानसिक स्वास्थ्य के बीच संबंधों को लेकर जो निष्कर्ष प्रस्तुत किया, उस पर सबको ध्यान देना चाहिए- 'गर्मी का तनाव, गर्मी की थकावट और हीट स्ट्रोक की आशंका अत्यधिक गर्मी के खतरे हैं। फिर भी अत्यधिक गर्मी में शारीरिक स्वास्थ्य ही एकमात्र कारक नहीं है, मानसिक स्वास्थ्य भी ख़राब हो सकता है। बहुत से लोग गर्मी के महीनों के दौरान रात को नींद नहीं आने के साथ-साथ ज्यादा गर्मी लगने से असहज और असुविधा महसूस कर सकते हैं।' वहीं, यह भी पाया गया कि 'गर्मी की लहरों के दौरान मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं के साथ अस्पताल पहुंचने वाले लोगों की संख्या बढ़ जाती है। अब अत्यधिक गर्मी को ध्यान में रखते हुए अपनी तैयारियों को बढ़ाने के लिए कदम उठाने का समय आ गया है।' ये कदम क्या होने चाहिएं? इनके जवाब ढूंढ़ना मुश्किल काम नहीं है। चिलचिलाती धूप में अन्य जगह तापमान काफी ज्यादा होता है, वहीं उस जगह तापमान तीन डिग्री से. तक कम देखने को मिलता है, जहां पेड़ों की घनी छांव हो। हमें धरती को बचाने के प्रयास बहुत गंभीरता से करने होंगे। ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाकर उनकी देखभाल करनी होगी। प्रदूषण को नियंत्रित करना होगा। अन्यथा आगामी दशकों में धरती पर जीवन कई गंभीर खतरों से घिर सकता है।