भारत के लोकसभा चुनाव में 64.2 करोड़ लोगों के मतदान के साथ विश्व कीर्तिमान का बनना अत्यंत प्रशंसनीय है। निश्चित रूप से यह देश के लोकतंत्र की एक बड़ी उपलब्धि है। दुनिया इस आंकड़े को देखकर हैरान है। कई देशों की इतनी जनसंख्या नहीं है, जितनी बड़ी तादाद में यहां लोगों ने वोट डाल दिए! इतना बड़ा देश, जहां दूर-दराज के इलाकों में विषम भौगोलिक परिस्थितियां भी हैं, वहां करोड़ों लोगों के लिए मतदान से संबंधित सुविधाओं का इंतजाम करना कोई आसान काम नहीं है। ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, इटली ... जैसे साधन-संपन्न और कम क्षेत्रफल वाले देशों की सरकारी मशीनरी कुछ करोड़ आबादी के लिए चुनावी इंतजाम करने में हांफने लगती हैं। वहीं, भारत में चुनाव आयोग ने उन देशों की कुल आबादी से कई गुणा ज्यादा मतदाताओं के लिए काफी अच्छे इंतजाम किए और उन्हें मतदान करने के लिए प्रोत्साहित किया। जो बुजुर्ग स्वास्थ्य संबंधी कारणों से मतदान केंद्रों तक नहीं पहुंच सकते थे, उन्हें घर से मतदान करने की सुविधा दी गई। लोकतंत्र में एक-एक वोट महत्त्वपूर्ण है। कोई भी मतदाता इससे वंचित नहीं रहना चाहिए। चुनाव आयोग ने मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए भरपूर कोशिशें कीं। कई मतदान केंद्रों पर लोगों ने खूब वोट डाले। इन सबके बावजूद यह कहना गलत नहीं होगा कि अभी काफी गुंजाइश है। पहले चरण में कम मतदान की खबरें चर्चा में रही थीं। जैसे-जैसे चरण आगे बढ़ते गए, मतदान प्रतिशत में सुधार हुआ। देश के लोकतंत्र को इस चुनाव के अनुभवों का लाभ आगे भी मिलना चाहिए।
ऐसे कौनसे उपाय और किए जा सकते हैं, जिनसे मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी हो? प्रतिकूल मौसम, पारिवारिक कार्यक्रम, पढ़ाई और कामकाज के सिलसिले में अन्य शहर या राज्य में निवास करने समेत कई कारण हैं, जो मतदान प्रतिशत बढ़ाने में बाधा डालते हैं। जिस तरह आयु व स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहे बुजुर्गों के लिए घर से मतदान की व्यवस्था की गई, क्या उसी तरह उन मतदाताओं के लिए भी उनके मौजूदा निवास स्थान के आस-पास कोई व्यवस्था की जा सकती है, जो पढ़ाई, रोजगार और अन्य कारणों से मतदान के दिन अपने गांव या शहर नहीं जा सकते? आज किसी मतदान केंद्र पर 60 प्रतिशत वोट पड़ जाते हैं तो यह माना जाता है कि 'अच्छा मतदान' हो गया। इतना प्रचार करने, इतने संसाधन लगाने और इतनी मेहनत करने के बाद किसी केंद्र पर 60 प्रतिशत तक मतदान होता है तो इसे संतोषजनक ही मानना चाहिए। लोकसभा चुनाव पर देश के जितने संसाधन खर्च हो रहे हैं, उन पर गौर करें तो यह आंकड़ा कम से कम 90 प्रतिशत तक पहुंचना चाहिए। मतदान के पात्र लोगों के जितने ज्यादा वोट डलेंगे, लोकतंत्र की तस्वीर उतनी ही ज्यादा उज्ज्वल होगी। बेशक इस चुनाव के हर चरण के साथ चुनाव आयोग की क्षमता, सामर्थ्य और कार्यकुशलता पर लोगों का भरोसा ज्यादा मजबूत हुआ। कुछ नेताओं ने जरूर ईवीएम पर सवाल उठाए, लेकिन मतदाता पूरी तरह आश्वस्त नजर आए। मतगणना के दौरान और उसके बाद राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों, नेताओं और कार्यकर्ताओं को चाहिए कि वे अपनी भावनाओं को काबू में रखें। अगर जीत जाएं तो विनम्रता दिखाएं और सबकी भलाई के लिए काम करें। अगर नतीजे मनोनुकूल न आएं तो ईवीएम में दोष ढूंढ़ने के बजाय जनता से जुड़ाव पर ध्यान दें, जनमहत्त्व के मुद्दे उठाएं, रचनात्मक समाधान पेश करें और अगली बार अपने प्रदर्शन में सुधार करें। चुनावी राजनीति का उद्देश्य वाहवाही पाना और दबदबा बढ़ाना नहीं, बल्कि जनकल्याण होना चाहिए। अगर कोई राजनीति में न रहना चाहे तो भी जनकल्याण करने के अनेक मार्ग हैं।