जन-जन का आंदोलन

ऐसी प्रथाओं को अपनाना होगा, जो कार्बन उत्सर्जन में कटौती कर सकें

पर्यावरण संरक्षण को जन-जन का आंदोलन बनाना होगा ... उसी से धरती बचेगी, लोग बचेंगे

इस बार चुनावी मौसम में सियासी पारा चढ़ने के साथ ही मौसम के मिज़ाज ने लोगों का कड़ा इम्तिहान लिया। गर्मी ने जितने पसीने छुड़ाए, उसे ध्यान में रखते हुए हमें भविष्य के लिए ऐसे प्रयास करने होंगे, जो धरती को बचाने में प्रभावी सिद्ध हों। पौधे लगाने, पर्यावरण का संरक्षण करने जैसी बातें भाषणों, निबंधों, उपदेशों और रिपोर्टों से निकलकर धरती पर क्रियान्वित होती दिखाई दें तो उनका फायदा होगा। इस सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए अभियान ‘एक पेड़ मां के नाम’ की प्रासंगिकता बढ़ जाती है, क्योंकि यह एक तरफ तो माता और संतान के रिश्तों को नए आयाम देता है, दूसरी तरफ धरती को हरी-भरी बनाकर पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देता है। दुनियाभर में 'विकास' और 'आधुनिकता' के नाम पर जिस तरह पेड़ काटे गए, प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन किया गया, वह आज बहुत महंगा पड़ रहा है। हर साल वायु प्रदूषण के बारे में जानकारी देने वाली रिपोर्टें बताती हैं कि हवा में जहर घुलता जा रहा है। अगर अब न चेते तो भविष्य घोर कष्टमय होगा। देश के कई इलाकों में भूजल स्तर अत्यधिक चिंताजनक स्तर तक गिर चुका है। किसानों ने मजबूरन ऐसे कुओं को बंद कर रोजगार के अन्य रास्ते खोजने शुरू कर दिए हैं। कहीं अतिवृष्टि से जनजीवन प्रभावित हो रहा है तो कहीं अनावृष्टि से लोग लाचार हैं। वैज्ञानिक कह रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन के असर की चपेट में सब आएंगे। कई देशों के समुद्र तटीय इलाके जलमग्न हो सकते हैं। अनाज, सब्जियों, फलों और फूलों की उपज घट सकती है, उनकी गुणवत्ता कमजोर हो सकती है। इन खतरों को टालना है तो हमें अपनी जीवनशैली बदलनी होगी। ऐसी प्रथाओं को अपनाना होगा, जो कार्बन उत्सर्जन में कटौती कर सकें। ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने होंगे और उनकी देखभाल करनी होगी।

लोकसभा चुनाव के लिए मतदान के दौरान भी कुछ बूथों पर पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के प्रयास हुए, जिनसे मतदाताओं में बहुत अच्छा संदेश गया। उत्तर प्रदेश के महराजगंज में जिला प्रशासन ने ऐसे 'ग्रीन बूथों' पर आए 1,500 से ज्यादा मतदाताओं को पौधे वितरित किए। इसी तरह वैष्णो देवी मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में पौधे भेंट करने का निर्णय अत्यंत प्रशंसनीय है। इस संदेश का अन्य स्वरूपों में भी प्रचार-प्रसार करने की जरूरत है। विभिन्न शुभ अवसरों पर दिए जाने वाले तोहफों में पौधों को शामिल करना चाहिए। जन्मदिन, विवाह, सालगिरह, गृहप्रवेश ... जैसे अवसरों पर पौधे लगाने का चलन क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। यही नहीं, स्वर्गवासी हो चुके बड़े-बुजुर्गों की याद में पौधे लगाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी जा सकती है। लोगों को प्रकृति से जोड़ने की जरूरत है। यह समझाना होगा कि पर्यावरण संरक्षण हम सबकी जिम्मेदारी है। वायुमंडल में ऑक्सीजन और अन्य गैसों का आदर्श स्तर बनने में कई सदियां लगी थीं। अगर गैसों का संतुलन बिगड़ा, जो कि बिगड़ रहा है, तो उसका खामियाजा सबको भुगतना होगा। बेशक धरती पर पौधे लगाए भी जा रहे हैं। कई लोग इसे एक मिशन की तरह लेकर आगे बढ़ रहे हैं। उन्हें प्रोत्साहित करने की जरूरत है। साथ ही, जो पौधे लगा दिए, उनकी देखभाल की ओर खास ध्यान देने की जरूरत है। प्राय: लोग पौधे तो लगा देते हैं, लेकिन बाद में उनकी उचित देखभाल नहीं करते। इससे वे पौधे पनप नहीं पाते। किस जगह कौनसे पौधे लगाएं, उन्नत किस्म के पौधे कहां मिलेंगे, खाद-पानी देने की आधुनिक व सरल विधियां कौनसी हैं, पौधों की देखभाल कैसे करें ... जैसे सवालों के जवाब आसानी से नहीं मिलते। लोगों की इन तक पहुंच आसान होनी चाहिए। पर्यावरण संरक्षण को जन-जन का आंदोलन बनाना होगा। उसी से धरती बचेगी, लोग बचेंगे।

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