सेहत का सुरक्षा चक्र: रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मददगार है योग

लंबी अवधि तक तनावग्रस्त होना प्रतिरोधक तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव डालता है

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बेंगलूरु/दक्षिण भारत। रोगप्रतिरोधक क्षमता का क्या महत्त्व होता है, यह हमने कोरोना काल में बखूबी जाना। जिन लोगों में यह क्षमता अच्छी होती है, वे जल्दी बीमार नहीं पड़ते। अगर कभी बीमारी की चपेट में आ जाते हैं तो उनके स्वस्थ होने की संभावना ज्यादा होती है।

विशेषज्ञों का कहना है कि लंबी अवधि तक तनावग्रस्त होना प्रतिरोधक तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। जब रोगप्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर होती है तो ऐसे व्यक्ति बीमारी के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। वहीं, योग को तनाव दूर करने के लिए वैज्ञानिक रूप से समर्थित वैकल्पिक उपचार माना जाता है, जो निरंतर अभ्यास से प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है।

इस विषय पर कई शोध जारी हैं, लेकिन कुछ अध्ययनों में योगाभ्यास (विशेष रूप से लंबे समय तक लगातार) और बेहतर प्रतिरोधक क्षमता के बीच स्पष्ट संबंध पाया गया है।

जर्नल ऑफ बिहेवियरल मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध से पता चलता है कि योग हमारी रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देने और शरीर में उत्तेजना को कम करने में सहायक हो सकता है।

साइकोलॉजी टुडे के अनुसार, मनोवैज्ञानिक तनाव शरीर की कई प्रणालियों को प्रभावित कर सकता है, जिसमें प्रतिरोधक क्षमता का कमजोर होना शामिल है। शोधकर्ताओं ने सामूहिक रूप से किन्हीं 15 परीक्षणों की समीक्षा की, जिनमें यह जांच की गई कि क्या योगासनों के नियमित अभ्यास से प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो सकती है?

साइकोलॉजी टुडे के अनुसार, परीक्षणों का औसत नमूना आकार 70 था। इन योग परीक्षणों में वैज्ञानिकों ने रक्त या लार में परिसंचारी प्रो-इन्फ्लेमेटरी मार्करों, जैसे- साइटोकाइंस, सी-रिएक्टिव प्रोटीन (सीआरपी), साथ ही प्रतिरक्षा कोशिकाओं की संख्या, एंटीबॉडी और प्रतिरक्षा कोशिकाओं में जीन अभिव्यक्ति के मार्करों के स्तर को मापकर प्रतिक्रिया की जांच की।

शोधकर्ताओं ने एक समग्र पैटर्न पाया कि योग प्रो-इंफ्लेमेटरी मार्करों को कम करता है, जिसमें आईएल-1बीटा नामक साइटोकाइन की कमी के सबसे मजबूत सबूत हैं। अन्य प्रकार के प्रो-इंफ्लेमेटरी मार्करों के संबंध में भी आशाजनक परिणाम मिले हैं।

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