फिर निशाने पर ईवीएम

विपक्ष के कई नेताओं को आज भी ईवीएम में खोट नजर आ रहा है

जब चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को अपना दावा साबित करने के लिए कहा था तो कौन साबित कर पाया?

लोकसभा चुनाव नतीजे आने के बाद ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठने बंद हो गए थे। विपक्ष इस बात को लेकर हर्षित था कि उसकी सीटों में अच्छा-खासा इजाफा हो गया और भाजपा का विजयरथ बहुमत के आंकड़े से पहले रुक गया। अब अरबपति उद्योगपति एलन मस्क के दावे के बाद ईवीएम फिर निशाने पर आ गई है। विपक्ष को भी अचानक याद आ गया कि अरे! सीटें बढ़ीं सो बढ़ीं, ईवीएम पर हमला बंद नहीं होना चाहिए था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी इसकी तुलना ‘ब्लैक बॉक्स’ से कर रहे हैं, जिसकी जांच करने की किसी को इजाजत नहीं है। क्या राहुल रायबरेली और वायनाड लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में इस्तेमाल की गईं ईवीएम के लिए भी यही कहना चाहेंगे, जहां से वे जीतकर आए हैं? विपक्ष के कई नेताओं को आज भी ईवीएम में खोट नजर आ रहा है, जबकि इन्हीं मशीनों के बटन दबाए जाने के बाद उनके दलों के कई उम्मीदवार जीते हैं, अब मुस्कुराते हुए फोटो खिंचवा रहे हैं! अगर ईवीएम के संबंध में एक बार मान लें कि इसमें हेरफेर हो जाती है, तो इंडि गठबंधन के नेता चुनावों में कैसे जीत जाते हैं, कई राज्यों में उनकी सरकारें क्यों हैं? पंजाब, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना ... ऐसे राज्य हैं, जहां सत्तारूढ़ दलों के नेताओं ने ईवीएम के खिलाफ कभी-न-कभी आवाज़ जरूर उठाई है। जब नतीजे अपने पक्ष में आते हैं ईवीएम ठीक है, जब नतीजे पक्ष में नहीं आते तो ईवीएम खराब है! विपक्ष के कई नेता दावा कर रहे हैं कि ईवीएम को अनलॉक करने के लिए ओटीपी लगता है। इस दावे को सोशल मीडिया पर इतने जोर-शोर से फैलाया जा रहा है कि कई लोग इसे सच मानने लगे हैं। जबकि चुनाव आयोग साफ कह चुका है कि ईवीएम को अनलॉक करने के लिए किसी भी ओटीपी का इस्तेमाल नहीं किया जाता और यह मशीन किसी से कनेक्ट नहीं रहती है!

एलन मस्क द्वारा अपने आधिकारिक एक्स अकाउंट पर की गई पोस्ट कि ‘हमें ईवीएम को खत्म कर देना चाहिए। मनुष्यों या कृत्रिम मेधा (एआई) द्वारा हैक किए जाने का जोखिम हालांकि छोटा है, फिर भी बहुत अधिक है’, को लोगों ने ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया। बेहतर होता कि मस्क कोई ठोस सबूत भी पेश करते। भारत में लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद पूरे आंकड़े अभी तक ईवीएम में सुरक्षित हैं। मस्क अपने दफ्तर में बैठे-बैठे किन्हीं 10 लोकसभा सीटों के चुनाव नतीजों को बदलकर दिखाते। यही नहीं, वे सोशल मीडिया पर इसका सीधा प्रसारण भी करते। कोई यह दलील न दे कि अमेरिका में बैठकर यहां रखी मशीन को कैसे हैक किया जा सकता है? जब अमेरिका में अपने घर में बैठा कोई हैकर दुनिया के कई देशों की वेबसाइटों को निशाना बना सकता है तो यह फॉर्मूला ईवीएम पर लागू करके देख लें। पूर्व में जब चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को अपना दावा साबित करने के लिए कहा था तो कौन साबित कर पाया? जब मामला उच्चतम न्यायालय में था तो विपक्ष ठोस सबूत क्यों नहीं दे पाया? भारत में अपना दावा सच्चा साबित करने के लिए इससे बड़ा मंच और क्या हो सकता था? अगर एक भी व्यक्ति यह साबित कर देता तो अगले दिन सभी अखबारों के पहले पन्ने पर मोटे-मोटे अक्षरों में यही खबर छपी होती। उस सुनहरे मौके को हाथ से क्यों जाने दिया गया? भारत में ईवीएम के जरिए कितने ही चुनाव (विधानसभा और लोकसभा के) हो चुके हैं। उनमें किसकी ड्यूटी लगती है? सरकारी कर्मचारियों की। इस बात से तो सभी सहमत होंगे कि सरकारी कर्मचारी किसी एक दल को वोट नहीं देते। प्राय: सत्तारूढ़ दल की नीतियों से उन्हें शिकायतें रहती हैं। अगर ईवीएम में हेरफेर का कोई एक मामला भी होता तो उसका भंडाफोड़ होने में देर नहीं लगती। विपक्षी नेता एक तरफ तो कहते हैं कि भाजपा हार गई, बहुमत से चूक गई, जनता ने मोदी को नकारा और हमें स्वीकारा है; दूसरी तरफ कहते हैं कि ईवीएम में गड़बड़ है। यह तो वही बात हुई कि 'गीत बहुत मधुर है और अत्यंत बेसुरा भी है', 'तेज भागो और धीरे भी चलो!' दोनों बातें एकसाथ कैसे संभव हैं? इस पर गौर करना चाहिए।

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