एक कदम और बढ़ाएं

उज्ज्वला योजना के कारण लोगों को काफी राहत मिली है, लेकिन मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए कीमतें ज्यादा ही हैं

अगर ईंधन की कीमतें इसी तरह बढ़ती रहीं तो हमें इसका दूसरा विकल्प खोजना चाहिए, खासकर रसोई गैस का

भारत में ईंधन की मांग लगातार बढ़ने का सीधा-सा अर्थ यह है कि देश प्रगति कर रहा है। दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए हमें इस तरह तैयारी करनी होगी, जिससे न तो आर्थिक गतिविधियों के चक्र की रफ्तार कम हो और न ही विदेशी मुद्रा भंडार से अत्यधिक राशि खर्च हो। अभी हर साल देश के खजाने से मोटी रकम ईंधन बिल चुकाने में जा रही है। हमारी मेहनत की कमाई का एक बड़ा हिस्सा तो तेल खरीदने के बदले सऊदी अरब, रूस, इराक, यूएई जैसे देशों के खाते में चला जाता है। वहीं, गैस खरीदने के लिए भी सऊदी अरब, कतर, ओमान और कुवैत जैसे देशों पर निर्भरता है। कोरोना काल के बाद रसोई गैस की कीमतें काफी बढ़ गई हैं। हालांकि उज्ज्वला योजना के कारण लोगों को काफी राहत मिली है, लेकिन मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए कीमतें ज्यादा ही हैं। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने तो यह कहा है कि भारत इस दशक के उत्तरार्ध में ईंधन की मांग में अग्रणी बन जाएगा। हर साल जब विपक्ष महंगाई को लेकर सरकार को घेरता है तो विरोध-प्रदर्शन के दौरान गैस सिलेंडर जरूर रखता है। वह सिलेंडर की कीमतों का उल्लेख करते हुए कहता है कि महंगाई ने रसोई का बजट बिगाड़ दिया है। हालांकि वह यह नहीं बताता कि अगर खुद सत्ता में आएगा तो कौनसा फॉर्मूला लगाकर गैस सिलेंडर की कीमतें कम करेगा? एक सीधा-सा तर्क यह दिया जाता है कि ईंधन की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार और विभिन्न परिस्थितियों के आधार पर निर्धारित होती हैं। अगर चीज़ बाहर से ही महंगी आएगी तो यहां लोगों को सस्ती कैसे दी जाएगी? बात काफी हद तक सही है।

अगर ईंधन की कीमतें इसी तरह बढ़ती रहीं तो हमें इसका दूसरा विकल्प खोजना चाहिए, खासकर रसोई गैस का। राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र कहते हैं कि 'प्रकृति के संतुलन को क्षति पहुंचाए बगैर विकास होना चाहिए', लेकिन कड़वी हकीकत है कि इस राज्य में ईंधन के लिए पेड़ों को बहुत नुकसान पहुंचाया गया है, पहुंचाया जा रहा है। यही स्थिति कई राज्यों में है। इस साल जितनी भयंकर गर्मी पड़ रही है, उसने एक बार फिर पेड़-पौधों की अहमियत साबित कर दी है। यहां केंद्रीय राज्य मंत्री श्रीपद नाइक का यह बयान उम्मीद जगाने वाला है कि 'ऊर्जा उत्पादन के परंपरागत तरीकों पर निर्भरता घटाने पर जोर रहेगा ... यह हमारे पर्यावरण और आने वाली पीढ़ियों के हित के लिए आवश्यक है।' बेशक सरकार ने देश के गांव-ढाणियों तक गैस सिलेंडर पहुंचाकर गृहिणियों के लिए काफी आसानी पैदा कर दी है। उन्हें धुएं से निजात मिली है। अब एक कदम और आगे बढ़ाने का समय है। सरकार को चाहिए कि रसोईघरों में सौर ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहित करे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूर्व में रसोईघरों में सौर ऊर्जा के उपयोग का आह्वान कर चुके हैं। उन्होंने सितंबर 2017 में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अधिकारियों को संबोधित करते हुए रसोई ईंधन के लिए ऐसा समाधान पेश करने के लिए कहा था, जो इस्तेमाल करने में आसान हो और वह पारंपरिक चूल्हों की जगह ले सके। इसके बाद एक सोलर स्टोव का नाम भी काफी चर्चा में रहा था, लेकिन उसके बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं मिली। लोग सोशल मीडिया पर उसके वीडियो देखते हैं, उसे खरीदने की इच्छा व्यक्त करते हैं, कीमत पूछते हैं, लेकिन यह आसानी से मिल नहीं रहा है। ध्यान रखें कि इस बाजार पर चीन की पैनी नजर है। वह मौके का फायदा उठाते हुए अपना दबदबा बनाए, उससे पहले ही भारत सरकार को बड़ा कदम उठाना चाहिए। रसोईघरों में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने से करोड़ों परिवारों को राहत मिलेगी। साथ ही देश तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर तेजी से अग्रसर होगा।

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