साइबर ठगी: कठोर दंड जरूरी

तकनीक का विस्तार होने के साथ धोखाधड़ी के मामले बढ़े हैं

लोगों को लूटने के लिए नए-नए तरीके निकाल रहे साइबर ठग

देश में वित्तीय धोखाधड़ी के मामलों का बढ़ना एक बड़ी चुनौती है। लोकल सर्किल्स एजेंसी के इस सर्वे के आंकड़े पर सवाल उठाए जा सकते हैं, जिसके अनुसार पिछले तीन वर्षों में 47 प्रतिशत भारतीयों ने एक या अधिक वित्तीय धोखाधड़ी का अनुभव किया, लेकिन इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि जिस तरह तकनीक का विस्तार हुआ है, धोखाधड़ी के मामले उतनी तेजी से बढ़े हैं। यही नहीं, ठगी की रकम में भी जोरदार बढ़ोतरी दिखाई दे रही है। हर जमाने में ठग और धोखेबाज रहे हैं। जब भारत में इंटरनेट और स्मार्टफोन का इतना विस्तार नहीं हुआ था, तब भी ठगी की घटनाएं होती थीं। उस दौरान ठगी की ज्यादातर राशि कुछ हजार रुपए तक होती थी। अब यह आंकड़ा लाखों-करोड़ों तक जा पहुंचा है। आश्चर्य होता है कि उच्च शिक्षित और बड़े पदों पर कार्यरत/सेवानिवृत्त लोग भी धोखेबाजों के झांसे में आ जाते हैं। पिछले दिनों एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर और उसके परिवार के सदस्यों से साइबर ठगों ने 5.14 करोड़ रुपए ठग लिए थे। एक ज्योतिषी, जिनका देश-विदेश में खासा नाम है, उन्हें किसी साइबर ठग ने डेढ़ लाख रुपए का चूना लगा दिया। ठगी का एक मामला तो सोशल मीडिया पर काफी चर्चा में रहा था। एक वरिष्ठ बैंककर्मी, जिनके बारे में यह माना जा सकता है कि उन्हें साइबर सुरक्षा संबंधी जानकारी आम लोगों से ज्यादा होगी, के खाते से साइबर ठगों ने 90,000 रुपए निकाल लिए थे। बैंककर्मी को ‘भोजन की एक थाली पर दूसरी थाली मुफ्त’ पाने का लालच देकर मोबाइल फोन में एक ऐप डाउनलोड कराया गया, जिसके बाद साइबर ठग उनकी मेहनत की कमाई ले उड़े।

कुछ साइबर ठग तो इतने बेखौफ हो गए हैं कि जब उन्हें चेतावनी दी जाती है कि आपकी शिकायत पुलिस से करेंगे, तो उनका जवाब होता है- 'जरूर कीजिए, हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता!' वे फख्र के साथ बताते हैं कि उन्होंने कई बार पुलिसकर्मियों या उनके परिवार के सदस्यों को इसी भांति शिकार बनाया है। हालत यह है कि अब कई लोग डिजिटल पेमेंट के बजाय नकद लेनदेन को प्राथमिकता देने लगे हैं। साइबर ठगों ने इतना उत्पात मचाया है कि सुरक्षा एजेंसियों के प्रयास उनके सामने नाकाफी लगते हैं। देश में मोबाइल सिम और बैंक खातों के जरिए सरकारी एजेंसियां यह पता लगा सकती हैं कि कहां से किसे फोन किया गया और कितनी राशि कहां से आई, किसे भेजी गई ... इसके बावजूद ठग अपना 'कपट धंधा' धड़ल्ले से चला रहे हैं। साइबर ठग, लोगों को लूटने के लिए नए-नए तरीके निकाल लेते हैं। जब तक पुलिस को उनके तरीकों का पता चलता है और वह लोगों को जागरूक करती है, ठग कोई दूसरा तरीका खोज लेते हैं। जब राम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा समारोह हुआ तो क्यूआर कोड के नाम पर कई लोगों को ठगने की कोशिशें हुई थीं। हाल में राजग सरकार के मंत्रियों का शपथग्रहण हुआ तो कथित 'मुफ्त इंटरनेट योजना' के नाम पर वायरस युक्त लिंक सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुए थे। कभी मंदिरों में वीआईपी दर्शन के नाम पर, कभी महिलाओं को मुफ्त सोलर चूल्हा देने के नाम पर, तो कभी शेयर बाजार में मोटा मुनाफा देने के नाम पर ठगी का सिलसिला बदस्तूर जारी है। साइबर ठग सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। यह जानते हुए भी कि इससे एजेंसियों का उन तक पहुंचना आसान हो सकता है, वे डरते नहीं हैं। सेना और प्रशासन से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी भी साइबर ठगी के शिकार हो चुके हैं। ऐसे में आम आदमी की कमाई कितनी सुरक्षित है? केंद्र सरकार को इस दिशा में बड़ा कदम उठाना चाहिए। देश ने समय-समय पर आतंकवाद पर बड़े प्रहार किए हैं, साइबर ठगों को भी उसी स्तर पर दंडित करने की जरूरत है।

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