बेंगलूरु/दक्षिण भारत। अनुलोम-विलोम को सबसे सरल प्राणायाम माना जाता है। इसे हर उम्र के योगाभ्यासी कर सकते हैं। यह तन और मन में संतुलन लाता है। इससे शरीर के कई रोग दूर होते हैं, वहीं मन को शांति मिलती है।
अनुलोम-विलोम करने से नाड़ियों का शोधन होता है। इससे व्यक्ति श्वास संबंधी रोगों, कब्ज, अनिद्रा, अत्यधिक थकान आदि से राहत पाता है। कई योगाभ्यासियों ने पाया है कि अपनी दिनचर्या और खानपान में सुधार करने के साथ अनुलोम-विलोम किया जाए तो मधुमेह में काफी आराम मिलता है। इससे पेट की अनावश्यक चर्बी दूर होती है।
कैसे करें अनुलोम-विलोम?
- सबसे पहले ध्यान मुद्रा में बैठ जाएं।
- अब बाएं हाथ से ज्ञान मुद्रा बनाएं।
- दाएं हाथ के अंगूठे से दाईं नासिका को बंद करें और बाईं नासिका से धीरे-धीरे सांस अंदर खींचें।
- सांस अंदर भरें तब पेट फुलाएं और फिर छाती फुलाएं।
- कुछ क्षण बाद बाईं नासिका बंद करें और दाईं नासिका से सांस छोड़ें।
- इस दौरान छाती से हवा बाहर आएगी। उसके बाद पेट अंदर जाएगा।
- अब आगे इसी प्रक्रिया को दोहराएं।
ये रखें सावधानियां
- सांस लेते और छोड़ते समय आवाज़ नहीं होनी चाहिए।
- अभ्यास के दौरान ज्यादा समय तक सांस न रोकें।
- शुरुआत में अनुलोम-विलोम का अभ्यास पांच मिनट तक करें। बाद में इसे दस मिनट तक कर सकते हैं।
- अनुलोम-विलोम सुबह खाली पेट करना लाभदायक होता है।
- जल्दबाजी में अभ्यास नहीं करना चाहिए।
- जिन्हें कमजोरी महसूस हो रही है, वे ज्यादा जोर से सांस न खींचें।
- जहां आटा, सीमेंट, धूल या किसी अन्य वस्तु के बारीक कण हवा में उड़ रहे हों, वहां अनुलोम-विलोम न करें।
- जहां वातावरण में धुआं फैला हो, वहां भी इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।
ये होते हैं लाभ
- यह श्वसन तंत्र, हृदय, पाचन तंत्र को लाभ पहुंचाता है।
- इससे शरीर में नई ऊर्जा आती है।
- रक्त परिसंचरण सुधरता है।
- मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।
- यह मधुमेह के रोगियों के लिए वरदान माना जाता है।
- यह प्राणायाम सिरदर्द, चर्मरोग, कमजोर प्रतिरोधक क्षमता में लाभदायक है।
- इसके निरंतर अभ्यास से याददाश्त अच्छी होती है।