पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ द्वारा 'आतंकवाद के खिलाफ एकजुट' होने का किया गया आह्वान अत्यंत हास्यास्पद है। शहबाज यह क्यों भूल जाते हैं कि उनका देश तो खुद आतंकवाद का बहुत बड़ा हिमायती है? उनके इस बयान का क्या औचित्य है? अतीत में अफगानिस्तान, भारत, फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका ... जैसे देशों में हुईं कई आतंकवादी घटनाओं के तार पाक से जाकर ही क्यों मिले? जब दूसरों के यहां बम धमाके होते हैं तो पाकिस्तान को इसमें 'अच्छा आतंकवाद' नजर आता है, लेकिन जब ये ही धमाके टीटीपी के आतंकवादी पाक में करते हैं तो उसे 'बुरा आतंकवाद' समझा जाता है। ये दोहरे मापदंड क्यों? शहबाज को यह कहने के बजाय कि 'आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई हमारा सामूहिक कर्तव्य और देश की सभी संस्थाओं का प्राथमिक दायित्व है .. यह आपके और मेरे बारे में नहीं, बल्कि हमारे बारे में है .. हमें इसे साथ मिलकर खत्म करना होगा’, अपने 'राष्ट्रीय अपराधों' को स्वीकार करना चाहिए। आज शहबाज टीटीपी और अन्य आतंकवादी संगठनों को कोसते हुए यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि पाकिस्तान आतंकवाद से सर्वाधिक पीड़ित है, जबकि इस बात को नज़र-अंदाज़ कर रहे हैं कि आतंकवाद के 'विषवृक्ष' का बीज उनके ही देश ने बोया और उसे खाद-पानी देने में फौज और सरकारों ने बड़ी भूमिका निभाई थी। पाक में शरीफ खानदान ने वर्षों राज किया है, जिसने आतंकवाद को परवान चढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। शहबाज का यह बयान कि 'पाकिस्तान पिछले ढाई दशकों से आतंकवाद का सामना कर रहा है और अपराध, मादक पदार्थ, तस्करी, उग्रवाद और धार्मिक आतंकवाद की संलिप्तता के कारण इससे निपटना जटिल हो गया है', पर यह कहावत बिल्कुल ठीक बैठती है- बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय!
पाकिस्तान के ये हालात कई वर्षों के 'गंभीर अपराधों' का नतीजा है। उसने आतंकवादी संगठन बनाए थे, ताकि वे भारत को परेशान करें। उन्होंने भारत का नुकसान किया भी, लेकिन कालांतर में पाक को बहुत बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ा। आज पाकिस्तान में शायद ही कोई हफ्ता ऐसा गुजरता है, जब आतंकवादी हमले या बम धमाके न हों। वास्तव में पाक फौज और सरकार की छत्रछाया में पले-बढ़े ये आतंकवादी संगठन अब वहां सत्ता पाने का सपना देख रहे हैं। अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद पाकिस्तानी तालिबान और अन्य आतंकवादी संगठनों को लगता है कि वे यही सब पाक में दोहरा सकते हैं! जब अगस्त 2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा किया तो दुनिया में सबसे ज्यादा खुशियां पाकिस्तान में मनाई जा रही थीं। कई 'रक्षा विशेषज्ञों' ने टीवी स्टूडियो में बैठकर दावा किया था कि अब तालिबान के लड़ाके हमारा हुक्म मानेंगे और भारत पर हमला करेंगे। हालांकि हुआ इसके ठीक उलट! तालिबान और पाकिस्तानी सुरक्षा बलों के बीच आए दिन गोलीबारी होती रहती है। पाकिस्तान के शहरों में आतंकवादी हमले बढ़ गए हैं। अफगान सीमा से अफीम और अन्य मादक पदार्थों की तस्करी बढ़ गई है। यह जहर शहरों से लेकर सुदूर गांवों तक पहुंच गया है। एक ओर जहां तस्कर और अन्य अपराधी इससे मोटी कमाई कर रहे हैं, वहीं युवा वर्ग नशे के दलदल में धंसता जा रहा है। मादक पदार्थों की तस्करी आतंकवादी संगठनों की कमाई का भी बड़ा जरिया है। उनके आका यह रकम अपने ऐशो-आराम के अलावा युवाओं को गुमराह करने पर खर्च करते हैं। पाकिस्तानी सरकार 16 दिसंबर, 2014 को पेशावर स्कूल हमले के मद्देनजर आतंकवाद को खत्म करने के लिए 20 सूत्री एनएपी एजेंडे की तो बात करती है, लेकिन जिन आतंकवादियों ने मासूम बच्चों का खून बहाया, उनसे सांठगांठ रखती है। जब आतंकवाद से लड़ने की नीयत ही न हो तो वही होगा, जो आज पाकिस्तान में हो रहा है। शहबाज शरीफ कितने ही 'आह्वान' करते रहें, उनसे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।