जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक आरआर स्वैन ने यह कहते हुए कड़वी हकीकत बयान की है कि इस केंद्रशासित प्रदेश में (कुछ लोगों की वजह से) इंटरनेट आतंकवाद और अलगाववाद को बढ़ावा देने का माध्यम बन रहा है। इंटरनेट एक ऐसा माध्यम है, जिसका सदुपयोग किया जाए तो यह कई फायदे लेकर आता है। अगर इसका दुरुपयोग किया जाए तो नुकसान भी बड़े पहुंचाता है। यह विज्ञान का ऐसा वरदान है, जो गलत हाथों में नहीं पड़ना चाहिए। जम्मू-कश्मीर ने आतंकवाद का बहुत दर्दनाक दौर देखा है। अब यहां शांति की पुनर्स्थापना हो रही है तो वह आतंकवादियों और अलगाववादियों की आंखों में खटक रही है। वे इंटरनेट को ऐसे हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे जम्मू-कश्मीर में अशांति का दौर फिर लौट आए। सुरक्षा बल इस बात से परिचित हैं, इसलिए इंटरनेट के इस्तेमाल को लेकर सावधानी बरती जा रही है। बेशक इंटरनेट पर लिखने, पढ़ने, बोलने, देखने ... की आज़ादी होनी चाहिए, लेकिन इसके पीछे कोई गलत मंशा नहीं होनी चाहिए। पिछले दशक के मध्य में जब सोशल मीडिया का तेजी से विस्तार हो रहा था, समान रुचि वाले लोग उस पर ग्रुप बनाकर बातचीत शुरू कर रहे थे, तब अलगाववादियों व आतंकवादियों के आकाओं के इशारे पर ऐसे ग्रुप भी बनाए गए और धड़ल्ले से चलाए गए, जिनमें भारत की एकता व अखंडता के खिलाफ बातें होती थीं। किशोरों व युवाओं को पत्थरबाजी के लिए उकसाने के वास्ते ग्रुप बनाए गए, जिनके नाम भी ऐसे रखे गए, जिन्हें पढ़कर यह आसानी से पता नहीं चलता था कि इनका मकसद पत्थरबाजी को बढ़ावा देना है। उन ग्रुप्स में मैसेज भी खास कोडवर्ड में डाले जाते थे, जिससे पकड़े जाने का खतरा कम होता था और संबंधित सोशल मीडिया मंच के नियमों के उल्लंघन से भी बच जाते थे। जब कभी सुरक्षा बलों का वाहन निकलता या कहीं मुठभेड़ होती तो उन ग्रुप्स में पोस्ट डाल दी जाती थी। उसके बाद पत्थरबाजों के उन्मादी झुंड निकल आते थे।
इंटरनेट के जरिए अलगाववाद व आतंकवाद फैलाने और उससे जुड़े लोगों के साथ सहानुभूति रखने के कई मामले सामने आ चुके हैं। चिंता की बात यह है कि इनमें उच्च शिक्षित और तकनीकी दृष्टि से अधिक सक्षम युवा भी लिप्त पाए गए हैं। पश्चिम बंगाल पुलिस के विशेष कार्यबल ने बांग्लादेश के आतंकवादी संगठन से जुड़े होने के आरोप में जिस युवक को गिरफ्तार किया, वह कंप्यूटर विज्ञान का छात्र निकला! वह युवक पश्चिमी और पूर्वी बर्धमान जिले के युवाओं को आतंकवादी संगठन में भर्ती कराने की कोशिश कर रहा था। एनआईए ने साल 2016 में कांकसा इलाके से एक छात्र को गिरफ्तार किया था, जिस पर पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई से संबंध रखने का आरोप लगाया गया था। इस साल मार्च में आईआईटी-गुवाहाटी के दो छात्रों का कथित तौर पर आईएसआईएस के प्रति 'निष्ठा रखने' का मामला खूब चर्चा में रहा था। करीब दो दशक पहले यह तर्क दिया जाता था कि 'कुछ युवाओं के कट्टरपंथ और आतंकवाद से प्रभावित होने या इनके संगठनों में शामिल होने की बड़ी वजह इनका शिक्षा से दूर होना है ... ये कम पढ़े-लिखे होते हैं, लिहाजा कट्टरपंथी तत्त्व इन्हें आसानी से बरगला लेते हैं।' अब यह तर्क ग़लत सिद्ध होता जा रहा है। यह देखा गया है कि आईएसआईएस जैसे खूंखार आतंकवादी संगठनों में शामिल होने के लिए दुनियाभर से जो लोग गए, उनमें कई डॉक्टर, इंजीनियर, तकनीकी विशेषज्ञ और अंग्रेजी समेत कई भाषाओं के जानकार थे! इसलिए यह कहना जरूरी है कि शिक्षा के साथ संस्कार होने चाहिएं। किताबी ज्ञान देने के साथ मानवता, करुणा और दया का पाठ भी पढ़ाना चाहिए। युवाओं को गुमराह करने वाले तत्त्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के साथ ही इंटरनेट पर परोसी जाने वाली ऐसी हर सामग्री की निगरानी बढ़ानी चाहिए, जो देश की एकता, अखंडता और सद्भाव के लिए खतरा हो।