बेहतर भविष्य की उम्मीद

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने अभिभाषण में अत्यंत महत्त्वपूर्ण बिंदुओं का उल्लेख किया

देश की एकता, अखंडता और सद्भाव से खिलवाड़ करने की इजाजत किसी को नहीं मिलनी चाहिए

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित करते हुए अपने अभिभाषण में अत्यंत महत्त्वपूर्ण बिंदुओं का उल्लेख किया है, जो बेहतर भविष्य की उम्मीद भी जगाते हैं। आज पूरा विश्व भारत को ऐसे देश के रूप में देख रहा है, जिसमें भरपूर संभावनाएं छिपी हैं। चाहे हमारी अर्थव्यवस्था हो, युवाशक्ति हो, अंतरिक्ष अनुसंधान हो या डिजिटलीकरण का विस्तार हो ... हर कोई स्वीकार कर रहा है कि भारत में विश्व को अचंभित कर देने की शक्ति व सामर्थ्य है। राष्ट्रपति का यह कथन अत्यंत प्रासंगिक है कि 'आने वाला समय हरित युग का है।' हर साल जिस तरह मौसमी चुनौतियां सामने आ रही हैं, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण प्रदूषण के कारण बीमारियां बढ़ रही हैं, फलों और सब्जियों के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, उसके मद्देनजर हमें हरित युग के लिए गंभीरता से प्रयास करने होंगे। शहर हो या गांव, लोगों को स्वच्छ वातावरण उपलब्ध कराना होगा, स्वच्छता पर जोर देना होगा। राष्ट्रपति के इस अभिभाषण की गूंज 'सरहद' पार भी जरूर सुनाई देगी। उन्होंने जिस तरह कश्मीर घाटी में रिकॉर्ड मतदान का जिक्र किया, उससे पाकिस्तान और चीन जरूर तिलमिलाए होंगे। बेशक इससे देश के दुश्मनों को करारा जवाब मिला है। अनुच्छेद 370 के लागू रहते जम्मू-कश्मीर में परिस्थितियां काफी जटिल थीं। अब वहां भारत का संविधान पूरी तरह लागू हो गया है। इससे जम्मू-कश्मीर की छवि बदली है। पहले यह माना जाता था कि वहां हड़ताल-प्रदर्शन ही होते रहते हैं। लोकसभा चुनावों में अलगाववादी ताकतें मतदान का बहिष्कार करती थीं और उसके बाद दुनिया में दुष्प्रचार करती थीं कि यह कश्मीरियों की 'इच्छा' की अभिव्यक्ति है। इस बार लोकसभा चुनाव के लिए मतदान के दौरान जिस तरह लोग उमड़े, वह अद्भुत दृश्य था। इससे अलगाववादी पस्त हैं। आतंकवादियों के आका परेशान हैं। भविष्य में जब मतदान का आंकड़ा और बढ़ेगा तो भारतविरोधी तत्त्वों की रही-सही हिम्मत भी जवाब दे जाएगी।

राष्ट्रपति ने हाल में परीक्षाओं के पेपर लीक होने की घटनाओं की जांच कराने और दोषियों को सजा दिलाने की सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराकर परीक्षार्थियों के हितों का ध्यान रखा है। कोई विद्यार्थी सालभर पढ़ाई करता है, परीक्षा देता है और जब उसे पता चलता है कि कुछ शातिर लोगों ने पेपर का पहले ही सौदा कर दिया तो इससे उसे निराशा होती है। यह एक कड़ी तपस्या के अंतिम क्षणों में विघ्न पड़ने जैसा है। इन बच्चों का क्या दोष है कि ये इसका खामियाजा भुगतें? जो पेपर लीक करते या कराते हैं, बदले में धन लेते हैं, उन सबको कड़ा सबक मिलना ही चाहिए। मेहनती विद्यार्थियों के हितों की रक्षा के लिए जरूरी है कि पेपर लीक की घटनाओं से जुड़े हर दोषी को सख्त सजा मिले। यह भारतीय शिक्षा और परीक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता का भी सवाल है। राष्ट्रपति ने एक और जिस ज्वलंत समस्या का उल्लेख किया, वह है- दुष्प्रचार की चुनौती। बेशक इससे निपटने के लिए हमें नए रास्ते खोजने की जरूरत है। आज सोशल मीडिया के जरिए दुष्प्रचार का सिलसिला बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है। इससे अफवाहें फैलाकर लोगों को भ्रमित किया जा रहा है। यही नहीं, लोगों को आर्थिक हानि भी हो रही है, जिसके पीड़ितों में सामान्य व्यक्ति से लेकर उच्च शिक्षित तक शामिल हैं। एक दशक पहले जब सोशल मीडिया का भारत में विस्तार हो रहा था, तब शायद ही किसी ने इस बारे में सोचा होगा। अब सोशल मीडिया 'खतरनाक' जगह बनता जा रहा है। दुष्प्रचार करने वाली ताकतें इसे हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रही हैं। सोशल मीडिया मंचों को अधिक सुरक्षित और जवाबदेह बनाने की जरूरत है। देश की एकता, अखंडता और सद्भाव से खिलवाड़ करने की इजाजत किसी को नहीं मिलनी चाहिए।

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