कोशिशों से आएगा बदलाव

इस समय दुनिया पर पर्यावरण प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन जैसे संकट मंडरा रहे हैं

भारत के कृषि क्षेत्र में बहुत शक्ति व सामर्थ्य है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' कार्यक्रम की 111वीं कड़ी में फिर एक बार ऐसे 'नायकों' का हौसला बढ़ाया है, जो धरातल पर सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिशें कर रहे हैं। मोदी ने उन्हें जो मंच दिया, उससे निश्चित रूप से अन्य लोगों में भी ऐसे बदलाव लाने की ललक पैदा होगी। इस समय दुनिया पर पर्यावरण प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन जैसे संकट मंडरा रहे हैं। वैज्ञानिक वर्षों से कह रहे हैं कि मनुष्य को बचाना है तो पर्यावरण संरक्षण करना होगा, ज्यादा से ज्यादा ऐसे पौधे लगाने होंगे, जो भविष्य में छायादार/फलदार पेड़ बनें। प्रधानमंत्री मोदी ने 'एक पेड़ मां के नाम' अभियान को जिस तरह प्रकृति और ममत्व से जोड़ा है, वह धरती माता और उसकी संतानों, दोनों के भविष्य को सुरक्षित बनाएगा। इस समय देश के कई इलाकों में मानसून पहुंच चुका है। इसका लाभ प्राप्त करना चाहिए। आज मां के सम्मान अथवा याद में पौधे लगाएंगे, उनकी देखभाल करेंगे तो वे कुछ वर्षों में पेड़ बन जाएंगे। हाल में तापमान ने जो रिकॉर्ड बनाए, वह बहुत तकलीफदेह अनुभव था। अगर भविष्य में ऐसे हालात को टालना चाहते हैं तो 'एक पेड़ मां के नाम' अभियान को आगे बढ़ाने की जरूरत है। प्रधानमंत्री ने केरल के अट्टापडी में बनाए जाने वाले कार्थुम्बी छातों का जिस तरह जिक्र किया, उससे इनकी देश-विदेश से मांग में अच्छी बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है। भारत के हर जिले में ऐसी कई चीजें बनती हैं, जिनकी खूबियों की जानकारी बड़े स्तर पर दी जाए तो उससे न केवल बिक्री बढ़ेगी, बल्कि लोगों को भी ज्यादा रोजगार मिलेगा। कई बार गुणवत्तापूर्ण चीजें भी बाजार में इसलिए जगह नहीं बना पातीं, क्योंकि उनके बारे में जानकारी सीमित क्षेत्र तक ही होती है। 'मन की बात' कार्यक्रम ऐसे उद्योगों को ताकत दे सकता है।

प्रधानमंत्री ने अराकू कॉफ़ी को भी नई पहचान दे दी है। देश-दुनिया में कॉफी पीने वाले कई लोगों को इसके बारे में पहली बार जानकारी 'मन की बात' से ही मिली है। वे अब इंटरनेट पर इसके बारे में सर्च कर रहे हैं। 'लोकल को ग्लोबल' बनाने की मुहिम के तहत पुलवामा के स्नो पीज़ की पहली खेप का लंदन जाना देश के कृषि क्षेत्र के लिए गर्व की बात है। प्रधानमंत्री ने सत्य कहा कि जम्मू-कश्मीर ने जो कर दिखाया, वह देशभर के लोगों के लिए एक मिसाल है। भारत के कृषि क्षेत्र में बहुत शक्ति व सामर्थ्य है। हमें मिट्टी की गुणवत्ता को बढ़ाते हुए उन फसलों की खेती पर जोर देना होगा, जिनसे किसानों की आमदनी बढ़ सके। गेहूं, चावल, दालों के अलावा फलों और सब्जियों में नए प्रयोगों की बहुत गुंजाइश है। इजराइल इसका बहुत अच्छा उदाहरण है, जिसने बंजर जमीन की उत्पादकता बढ़ाते हुए वहां अंगूर, संतरा, खजूर आदि की खेती को नए आयाम दिए। इस उपज से अरबों रुपए के उद्योग चल रहे हैं। इजराइल में जगह कम होने के कारण कई घरों-दफ्तरों की दीवारों और छतों तक का इस्तेमाल फल-सब्जियां उगाने के लिए किया जा रहा है। भारत में कृषि भूमि की ऐसी कमी नहीं है। अगर आधुनिक तरीकों से खेती के लिए सही समय पर सही जानकारी मिल जाए और उपज की अच्छे दामों पर बिक्री के लिए बाजार मिल जाए तो युवाओं की रुचि भी इस क्षेत्र में बढ़ेगी। देशभर में इतने होटल, रेस्टोरेंट और ढाबे हैं, अगर उन्हें किसानों से सीधे जोड़ दें तो रोजगार के अनेक अवसरों का सृजन किया जा सकता है। बेंगलूरु के कब्बन पार्क में संस्कृत में बातचीत करने की परंपरा अत्यंत प्रशंसनीय है। ऐसा प्रयोग (विभिन्न विषयों को शामिल करते हुए) देशभर के पार्कों में शुरू किया जाए तो ये क्षेत्र ज्ञान के नए केंद्र बनकर उभर सकते हैं।

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